भारत के आर्थिक विकास की दर, आने वाले कई साल तक थमने वाली नहीं है. यह दुनिया की सबसे बड़ी उभरती अर्थव्यवस्था बनी रहेगी लेकिन इसके कुछ जोखिम भी होंगे. देश में आर्थिक असमानता है जैसी है, लगभग वैसी ही रहेगी. अर्थव्यवस्था और पॉलिसी मेकर्स का दावा है कि भारत के बढ़ते आर्थिक विकास के यहां की आर्थिक असमानता कम नहीं होगी. भारत में अमीरी और गरीबी की जो खाई है, वह आसानी से पटने वाली नहीं है.
रॉयटर्स की एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि बीते वित्त वर्ष में 8% से अधिक आर्थिक वृद्धि के बाद भी भारत की गरीबी नहीं मिटी है. मुंबई का शेयर मार्केट ग्लोबल है लेकिन देश के 81 करोड़ से ज्यादा लोगों को मुफ्त अनाज देना पड़ता है. इसका मतलब ये है कि वे अनाज खरीदने में सक्षम नहीं हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तीसरे बार भी प्रधानमंत्री बने हैं. गठबंधन में होने के बाद भी ऐसा नहीं लगता कि वे समझौते की सरकार चला रहे हैं, ऐसे में क्या अब भी कोई बड़े बदलाव नजर नहीं आएंगे. आखिर क्यों, आइए जानते हैं.
- 2014 से 2019 तक भारत ने कई आर्थिक सुधार किए. कई वैश्विक मंचों पर भारत की शानदार जीत हुई लेकिन इससे अमीरी और गरीबी की खाई नहीं पटी. पीएम मोदी की सीटें कम होने की एक वजह बढ़ती बेरोजगारी की दर और आर्थिक असामनता रही.
- 15 मई से18 जून तक के बीच कराए गए रॉयटर्स के सर्वेक्षण में दावा किया गया कि 51 में से 43, लगभग 85% इकोनॉमिस्ट ने दावा किया है कि उन्हें भरोसा नहीं है कि अगले 5 साल में आर्थिक असमानता घटेगी.
- सर्वे में 21 एक्सपर्ट्स ने दावा किया है कि आर्थिक असमानता नहीं मिटेगी. 6 ने कहा कि मिटेगी और 2 ने कहा है कि वे संशय में हैं.
- एक्सपर्ट्स का मानना है कि आर्थिक असमानता दूर करना केंद्र का लक्ष्य नहीं है. अभी सारा जोर, आर्थिक विकास पर है.
IIT में इकोनॉमिस्ट रीतिका खेरा का दावा है कि असामनता ऐसी चीज नहीं है जो खुद दूर हो जाएगी. इसके लिए सक्रिय सरकारी हस्तक्षेप जरूरी है. वर्ल्ड इनइक्वेलिटी लैब की मार्च में एक रिपोर्ट आई, जिसमें दावा किया गया है कि भारत में आर्थिक असमानता की दर ज्यादा है.
- जॉन्स हॉपकिंस विश्वविद्यालय में प्रोफेसर नागपुरानंद प्रभाला का कहना है कि भारत में करोड़पतियों की संख्या ज्यादा है लेकिन ऐसे करोड़ों लोग हैं जो 100 दिन के रोजगार के लिए सरकार पर निर्भर हैं, जिनकी कमाई 300 से भी ज्यादा नहीं है. ये लोग अमेरिकी रुपयों की तुलना में 4 डॉलर में गड्ढे खोदते हैं, कुआं खोदते हैं और गड्ढे भरते हैं.
- सेंटर फॉर स्टडीज इन सोशल साइंसेज में इडंस्ट्रियल इकॉनमी के प्रोफेसर सैबल कर का कहना है कि मौजूदा सरकार की कार्यप्रणाली ऐसी है कि जिसने मध्यम आय वर्ग के लोगों की कमाई तोड़ दी है. क्रोनी कैपिटलिज्म और क्रॉस सब्सिडी पर निर्भर लोग हैं. सामाजिक और आर्थिक स्वतंत्रता कम है, जिसे बदलने की जरूरत है. अगर ये बदलाव नहीं दिखे असमानता और बढ़ेगी.
- भारतीय अर्थव्यवस्था समावेशी नहीं है. आर्थिक विकास का मूल्यांकन करें तो सर्वे में शामिल लोगों ने कहा है कि यह समावेशी नहीं है. 60 अर्थ विशेषज्ञों में से 32 का दावा है कि भारत अगले 5 साल तक जीडीपी ग्रोथ को बरकरार रखेगा, उससे आगे निकलेगा लेकिन अगर भारत ने समावेशी विकास पर काम नहीं किया तो असमानता नहीं घटेगी.