Lok Sabha Session: 18वीं लोकसभा का पहला सत्र 24 जून शुरू होने जा रहा है. इसके लिए सात बार के सांसद भर्तृहरि महताब को प्रोटेम स्पीकर बनाया गया है. उनकी सहायता के लिए राष्ट्रपति ने 5 सांसदों का पैनल बनाया है. अब माना जा रहा है विपक्ष प्रोटेम स्पीकर की नियुक्ति के विरोध में इस जिम्मेदारी को लेने से पीछे हट सकता है. हालांकि, कांग्रेस और INDIA गठबंधन की ओर से इसे लेकर कोई आधिकारिक सूचना नहीं दी गई है.
20 जून को राष्ट्रपति ने लोकसभा सदस्य भर्तृहरि महताब को संविधान के अनुच्छेद 95(1) के तहत प्रोटेम स्पीकर नियुक्त किया था. उनके साथ ही संविधान के अनुच्छेद 99 के तहत लोकसभा के 5 सदस्यों प्रोटेम स्पीकर की सहायता करने के लिए नियुक्त किया गया था. इसके बाद से ही विपक्ष विरोध कर रहा है.
कांग्रेस सांसद के. सुरेश
डीएमके सांसद टी.आर. बालू
तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) सांसद सुदीप बंद्योपाध्याय
भाजपा सांसद राधा मोहन सिंह
भाजपा सांसद फग्गन सिंह कुलस्ते
प्रोटेम स्पीकर की सहायता पैनल में विपक्ष के 3 सांसद है. इसमें कोडिकुन्निल सुरेश, टीआर बालू और सुदीप बंद्योपाध्याय शामिल हैं. इन्हें भी नवनिर्वाचित सांसदों को शपथ दिलाने में प्रोटेम स्पीकर महताब की सहायता करनी है. सियासी बाजार में चर्चा हो रही है कि विपक्ष विरोध में अपनी भूमिका को अस्वीकार कर सकता है.
कांग्रेस ने भर्तृहरि महताब को प्रोटेम स्पीकर बनाए जाने पर सवाल उठाए हैं. कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा कि परंपरा के अनुसार जिस सांसद का कार्यकाल सबसे अधिक है उसे प्रोटेम स्पीकर बनाया जाता है. 18वीं लोकसभा में कांग्रेस के के. सुरशे और BJP के वीरेंद्र कुमार हैं. ये दोनों अपना 8वां कार्यकाल पूरी कर रहे हैं. वीरेंद्र कुमार केंद्रीय मंत्री हैं ऐसे में के. सुरेश को प्रोटेम स्पीकर बनाया जाना चाहिए था पर भाजपा ने जाति के कारण उन्हें इग्नोर किया है.
विपक्ष के आरोपों पर संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने महताब की नियुक्ति को उचित ठहराया है. उन्होंने कहा कि वेस्टमिंस्टर सिस्टम के अनुसार उनको नियुक्ति दी गई है. वो बिना रुकावट के सबसे लंबे समय तक सेवा देने वाले सांसद हैं. रिजिजू ने कहा कि महताब बिना किसी ब्रेक के सात बार लोकसभा के सदस्य हैं. अगर हम मंत्रियों को छोड़ दें तो वे सबसे लंबे समय के सांसद हैं. के सुरेश के बारे में उन्होंने कहा कि उनके कुल आठ कार्यकाल हैं लेकिन 2004 और 1998 में ब्रेक है. ऐसे में नियमों को न जानने वाले ही नियुक्ति पर सवाल उठा रहे हैं.