इंडियन मेडिकल एसोसिएशन यानी IMA की एक स्टडी में सामने आया है कि 3 में से एक महिला डॉक्टर को रात की शिफ्ट के दौरान असुरक्षा महसूस होती है. ये महिला डॉक्टर खुद को इतना असुरक्षित महसूस करती हैं कि कुछ तो सेल्फ डिफेंस के लिए हथियार रखने तक की जरूरत महसूस करती हैं.
IMA की ओर से कोलकाता में आरजी कर मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल में ट्रेनी महिला डॉक्टर के साथ रेप और मर्डर के बाद नाइट शिफ्ट के दौरान डॉक्टरों की सुरक्षा संबंधी चिंताओं को जानने के लिए एक ऑनलाइन सर्वे कराया. इसमें पाया गया कि 45 प्रतिशत उत्तरदाताओं को नाइट शिफ्ट के दौरान ड्यूटी रूम उपलब्ध नहीं था.
ऑनलाइन सर्वे में 22 से अधिक राज्यों के डॉक्टरों ने पार्टिसिपेट किया, जिनमें से 85 प्रतिशत 35 साल से कम उम्र के थे, जबकि 61 प्रतिशत ट्रेनी या पोस्ट ग्रेजुएट ट्रेनी थे. सर्वे के निष्कर्षों से पता चला कि कई डॉक्टरों ने असुरक्षित (24.1 प्रतिशत) या बहुत असुरक्षित (11.4 प्रतिशत) महसूस करने की बात कही, जो कुल उत्तर देने वालों का वन थर्ड है. असुरक्षित महसूस करने वालों का अनुपात महिलाओं में अधिक था.
20-30 साल की उम्र के डॉक्टरों में सुरक्षा की भावना सबसे कम थी और इस समूह में अधिकांश ट्रेनी और पोस्ट ग्रेजुएट शामिल थे. नाइट शिफ्ट के दौरान 45 फीसदी उत्तर देने वालों को ड्यूटी रूम उपलब्ध नहीं था. जिन लोगों के पास ड्यूटी रूम तक पहुंच थी, उनमें सुरक्षा की भावना अधिक थी.
सर्वेक्षण में पाया गया कि ड्यूटी रूम अक्सर भीड़भाड़, गोपनीयता की कमी और ताले न लगे होने के कारण अपर्याप्त होते थे, जिससे डॉक्टरों को ऑप्शनल रेस्ट एरिया ढूंढने पड़ते थे और उपलब्ध ड्यूटी रूमों में से एक तिहाई में अटैच्ड बाथरूम नहीं था.
निष्कर्षों में कहा गया है कि आधे से अधिक मामलों (53 प्रतिशत) में ड्यूटी रूम वार्ड या इमरजेंसी एरिया से दूर था. रिपोर्ट में कहा गया है कि उपलब्ध ड्यूटी रूमों में से लगभग एक तिहाई में अटैच्ड बाथरूम नहीं था, जिसका अर्थ है कि डॉक्टरों को इन सुविधाओं का उपयोग करने के लिए देर रात को बाहर जाना पड़ता था.
सुरक्षा बढ़ाने के लिए डॉक्टरों ने सुझाव दिए, जिनमें ट्रेंड सुरक्षा कर्मियों की संख्या बढ़ाना, सीसीटीवी कैमरे लगाना, उचित प्रकाश व्यवस्था सुनिश्चित करना, केंद्रीय सुरक्षा अधिनियम (सीपीए) को लागू करना, विजिटर्स की संख्या सीमित करना, अलार्म सिस्टम लगाना और ताले समेत सुरक्षित ड्यूटी रूम जैसी बुनियादी सुविधाएं प्रदान करना शामिल हैं.
डॉक्टर जयदेवन ने कहा कि ये ऑनलाइन सर्वेक्षण पूरे भारत में सरकारी और प्राइवेट दोनों तरह के डॉक्टरों से गूगल फॉर्म के जरिए कराया गया. 24 घंटे के भीतर 3,885 प्रतिक्रियाएं मिलीं. स्टडी में कहा गया है कि देश भर में डॉक्टर, विशेषकर महिलाएं, नाइट शिफ्ट के दौरान असुरक्षित महसूस करती हैं. स्टडी में इस बात पर भी जोर दिया गया कि हेल्थ केयर सेंटर्स में सुरक्षा कर्मियों और उपकरणों में सुधार की पर्याप्त गुंजाइश है.
सुरक्षित, स्वच्छ और सुलभ ड्यूटी रूम, बाथरूम, खाना और पीने का पानी सुनिश्चित करने के लिए बुनियादी ढांचे में संशोधन आवश्यक है. इसमें कहा गया है कि मरीज की देखभाल क्षेत्रों में पर्याप्त स्टाफिंग, प्रभावी ट्राइएजिंग और भीड़ नियंत्रण भी आवश्यक है, ताकि ये सुनिश्चित किया जा सके कि डॉक्टर खतरा महसूस किए बिना प्रत्येक मरीज पर ध्यान दे सकें.
एक डॉक्टर ने स्वीकार किया कि वे हमेशा अपने हैंडबैग में एक फोल्डेबल चाकू और मिर्च स्प्रे रखती थी, क्योंकि ड्यूटी रूम अंधेरे और सुनसान एरिया में था. इमरजेंसी डिपोर्टमेंट में काम करने वाले डॉक्टरों ने बताया कि उन्हें नशे में या नशे में धुत लोगों से मौखिक और शारीरिक धमकियां मिलती थीं. एक अन्य डॉक्टर ने बताया कि उसे भीड़ भरे इमरजेंसी रूम में बार-बार बैड टच का सामना करना पड़ा.
कुछ छोटे अस्पतालों में स्थिति और भी खराब है, जहां स्टाफ सीमित है और सुरक्षा भी नहीं है. कोलकाता कांड के बाद देश भर के डॉक्टरों ने सभी हेल्थ केयर सेंटर्स में हिंसा पर रोक लगाने, एयरपोर्ट जैसे सुरक्षा उपाय लागू करने, सेफ वर्क प्लेस इन्वायरमेंट और बेहतर रोगी देखभाल सुनिश्चित करने के लिए एक केंद्रीय सुरक्षा कानून की मांग की है.
वहीं, सप्रीम कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेते हुए आश्वासन दिया है कि डॉक्टरों और मेडिकल प्रोफेशनल्स को आश्वस्त रहना चाहिए कि उनकी चिंताओं पर सुप्रीम कोर्ट की ओर से ध्यान दिया जा रहा है और अलग-अलग एक्सपर्ट्स से भी राय ली जा रही है.