India Justice Report 2025: भारत न्याय रिपोर्ट (IJR) 2025 के मुताबिक देश के पुलिस बल में लैंगिक असमानता एक गंभीर मुद्दा है. रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि पुलिस सेवा में 1,000 से भी कम महिलाएं महानिदेशक और पुलिस अधीक्षक जैसे वरिष्ठ पदों पर हैं, जबकि 90 प्रतिशत महिला पुलिसकर्मी कांस्टेबल के रूप में काम कर रही हैं. टाटा ट्रस्ट द्वारा समर्थित यह रिपोर्ट पुलिस, न्यायपालिका, जेल और कानूनी सहायता जैसे क्षेत्रों में राज्यों के प्रदर्शन का विश्लेषण करती है.
रिपोर्ट के मुताबिक, पुलिस बल में कार्यरत 2.4 लाख महिलाओं में से केवल 960 भारतीय पुलिस सेवा (IPS) में हैं, जबकि 24,322 गैर-IPS अधिकारी जैसे उप-अधीक्षक, निरीक्षक या उप-निरीक्षक के पदों पर हैं. गैर-भारतीय पुलिस सेवा में 5,047 में सिर्फ महिलाऐं कार्यरत हैं. मध्य प्रदेश में 133 महिला उप पुलिस अधीक्षक हैं, जो सबसे अधिक है. अनुसूचित जातियों (SC) का प्रतिनिधित्व 17 प्रतिशत और अनुसूचित जनजातियों (ST) का 12 प्रतिशत है, जो उनकी जनसंख्या के अनुपात से कम है.
कर्नाटक का शीर्ष प्रदर्शन
IJR 2025 ने कर्नाटक को 18 बड़े और मध्यम आकार के राज्यों में न्याय प्रदान करने में शीर्ष स्थान दिया है. कर्नाटक ने 2022 से अपनी स्थिति बरकरार रखी है. इसके बाद आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, केरल और तमिलनाडु का स्थान रहा. इन दक्षिणी राज्यों ने विविधता, बुनियादी ढांचे और स्टाफिंग में बेहतर प्रदर्शन किया.
न्याय प्रणाली में चुनौतियां
रिपोर्ट ने न्याय प्रणाली की कई कमियों को उजागर किया. भारत में प्रति दस लाख लोगों पर केवल 15 जज हैं, जो विधि आयोग की 1987 की सिफारिश (50 जज) से काफी कम है. उच्च न्यायालयों में 33 प्रतिशत और जिला न्यायालयों में 21 प्रतिशत रिक्तियां हैं. इलाहाबाद और मध्य प्रदेश जैसे उच्च न्यायालयों में प्रत्येक जज पर 15,000 तक मामले हैं, जबकि जिला जज औसतन 2,200 मामलों को संभालते हैं.
बुनियादी ढांचे और कानूनी सहायता
78 प्रतिशत पुलिस स्टेशनों में महिला हेल्प डेस्क है. 86 प्रतिशत जेलों में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग सुविधा है. कानूनी सहायता पर प्रति व्यक्ति खर्च 2019-2023 के बीच दोगुना होकर ₹6.46 हो गया है. हालांकि, पैरालीगल स्वयंसेवकों की संख्या में 38 प्रतिशत की कमी आई है. अब प्रति लाख जनसंख्या पर केवल 3 पीएलवी हैं. जेलों में केवल 25 मनोवैज्ञानिक/मनोचिकित्सक उपलब्ध है.