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'ला इलाहा इल्लल्लाह, मुहम्मद रसूलुल्लाह... मैंने कलमा का पाठ किया इसलिए बच गया', पहलगाम आतंकी हमले में बचे प्रोफेसर ने सुनाई आपबीती

Pahalgam Attack: भारतीय सेना की चिनार कॉर्प्स की ओर से बताया गया कि आतंकियों की तलाश के लिए बड़े स्तर पर अभियान चलाया जा रहा है और दोषियों को जल्द पकड़ने की कोशिशें जारी हैं.

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Edited By: Gyanendra Tiwari
I recited Kalma and hence survived professor who survived Pahalgam terror attack narrates his ordeal
Courtesy: Social Media

Pahalgam Attack: जम्मू-कश्मीर के पहलगाम इलाके में हुए भीषण आतंकी हमले ने पूरे देश को हिला कर रख दिया. इस हमले में कई निर्दोष पर्यटक मारे गए, लेकिन असम यूनिवर्सिटी के बंगाली विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर देबाशीष भट्टाचार्य किसी चमत्कार से बच निकले. उन्होंने अपनी दिल दहला देने वाली आपबीती साझा की.

"कलमा पढ़ा और जान बची"

प्रोफेसर देबाशीष अपने परिवार के साथ बैसरान के पास एक पेड़ के नीचे आराम कर रहे थे. तभी उन्होंने आसपास कुछ लोगों को कलमा पढ़ते हुए सुना. उन्होंने बताया, “मैं भी अनायास ही कलमा पढ़ने लगा. तभी एक आतंकी, जो सेना की वर्दी जैसी पोशाक में था, हमारे पास आया और मेरे पास लेटे व्यक्ति को गोली मार दी.”

आतंकी ने फिर देबाशीष की ओर रुख किया और पूछा, “क्या कर रहे हो?” डर के मारे उन्होंने और तेज आवाज में कलमा दोहराया. उन्होंने कहा, “मुझे नहीं पता क्यों, पर शायद मेरी आवाज सुनकर वह मुझे छोड़कर आगे बढ़ गया.”

मौका देखकर देबाशीष ने अपने परिवार को उठाया और पहाड़ की ओर चढ़ाई शुरू की. उन्होंने बताया कि उन्होंने घोड़ों के खुरों के निशानों का पीछा किया और दो घंटे तक लगातार चलते रहे. रास्ते में एक घुड़सवार मिला, जिससे मदद लेकर वे किसी तरह होटल वापस पहुंचे.

हमले का भयावह दृश्य

बैसरान में हुए इस हमले में कम से कम 26 लोगों की जान गई. मारे गए लोगों में दो विदेशी नागरिक – एक यूएई और एक नेपाल से थे, साथ ही दो स्थानीय लोग भी शामिल थे. हमले की जिम्मेदारी प्रतिबंधित आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा से जुड़े ग्रुप 'रेजिस्टेंस फ्रंट' ने ली है.

प्रारंभिक जांच में सामने आया कि आतंकियों ने पहले लोगों को पुरुष और महिला समूहों में बांटा, फिर पहचान पक्की करने के बाद चुन-चुन कर हत्या की. कुछ को दूर से गोली मारी गई, जबकि कई लोग खून बहने से मर गए. हमले की जगह भी ऐसी चुनी गई थी जहां से मदद देर से पहुंचे.

"अब भी यकीन नहीं होता कि मैं जिंदा हूं"

प्रोफेसर देबाशीष और उनका परिवार फिलहाल श्रीनगर में है और सुरक्षित घर लौटने का इंतज़ार कर रहा है. उन्होंने कहा, "यह सब किसी सपने जैसा लगता है. अब भी यकीन नहीं होता कि हम इस हमले से बच पाए."