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अगर आत्मनिर्भर नहीं है पत्नी तो पति को क्या करना चाहिए? सुप्रीम कोर्ट ने दिखाई राह

सुप्रीम कोर्ट ने उन पुरुषों का भी जिक्र किया, जो अपने जीवनसाथी के लिए संयुक्त बैंक अकाउंट खुलवाते हैं. उनके घरेलू खर्चों के लिए एटीएम कार्ड देते हैं. ऐसे पुरुष जो अपनी महिला साथी के प्रति सचेत हैं, कोर्ट ने उनकी तारीफ भी की है. कोर्ट ने कहा है कि ऐसे लोगों को खारिज नहीं करना चाहिए जो अपने पार्टनर के लिए समान अवसर मुहैया कराते हैं.

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Edited By: India Daily Live
Husband Wife relations
Courtesy: www.freepik.com

घर चलाना कितना मुश्किल काम होता है, इस सवाल का जवाब उन महिलाओं से बेहतर कोई नहीं समझ सकता, जिन्होंने काम करने और घर रहने के विकल्प में घर को चुना है. घर चलाना, एक क्रेडिटलेस जॉब है, जिसमें दुनिया के समझदार मर्दों को छोड़ दिया जाए, तो एक बड़ी आबादी को ऐसा ही लगता है कि ये भला कोई काम है. ऐसी महिलाओं के पास, अगर पार्टनर नासमझ है तो न तो पैसे होते हैं, न कोई सेविंग होती है. पति से न बनने की स्थिति में उनकी हालत दयनीय हो जाती है.

ऐसी ही महिलाओं के लिए सुप्रीम कोर्ट ने एक दिल छू लेने वाली बात कही है. सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम महिलाओं के अधिकार से जुड़ी हुई एक याचिका में कहा है कि हिंदुस्तानी पुरुषों को अपनी पत्नियों को आत्मनिर्भर बनानाचाहिए, उनके लिए आय के साथ उपलब्ध कराने चाहिए, जिससे उनकी अपनी जरूरतें तो पूरी हो सकें.

सुप्रीम कोर्ट में एक मुस्लिम महिला ने याचिका दायर कर CrPC की धारा 125 के तहत अपने पति से मेंटिनेंस मांगा था. जस्टिस बीवी नागरत्ना ने अपने फैसले में कहा, 'जिन महिलाओं के पास आय का स्वतंत्र स्रोत है, वे आर्थिक तौर पर संपन्न हो सकती हैं. वे अपने पति और उसके परिवार पर पूरी तरह से निर्भर नहीं हो सकती हैं. एक विवाहित महिला, जिसे गृहणी कहा जाता है, उसकी स्थिति क्या है, जिसके पास आय का कोई स्वतंत्र स्रोत नहीं है. वह अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए पति और उसके परिवार पर निर्भर है.'

'हिंदुस्तानी नारी, त्याग की प्रतिमूर्ति'

कोर्ट ने भी माना है कि हिंदुस्तानी विवाहित महिला अपने बच्चों और पति के प्रति प्रेम, देखभाल और स्नेह की प्रतिमूर्ति मानी जाती है. इसके बदले में वह अपने पति और उसके परिवार से शांति और सम्मान की भावना के अतिरिक्त कोई उम्मीद नहीं करती है, जो उसकी भावनात्मक सुरक्षा के लिए है.  

कोर्ट ने बताया कैसे पैसे बचाती हैं गृहणियां?

कोर्ट ने घरेलू महिलाओं की बचत की प्रवित्ति का जिक्र करते हुए कहा कि गृहणी अपने व्यक्तिगत खर्चे के लिए पति या उसके परिवार से पैसे मांगने की जगह, मासिक घरेलू बजट से ज्यादा से ज्यादा पैसे बचाने की कोशिश करती है.

'विवाहित पुरुषों को पता नहीं है महिलाओं की जरूरतें'

कोर्ट ने कहा, 'भारत में ज्यादातर विवाहित पुरुषों को यह एहसास नहीं है कि ऐसी महिलाओं को किस तरह की मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. खर्च के लिए उनके अनुरोध को पति या उसका परिवार ठुकरा सकता है. कुछ पतियों को यह तथ्य नहीं पता है कि पत्नी के पास वित्त का कोई स्वतंत्र स्रोत नहीं है, इसलिए वह न केवल भावनात्म रूप से बल्कि आर्थिक रूप से भी उस पर निर्भर है. 

'पत्नियों को सशक्त बनाएं पति'

कोर्ट ने कहा, 'हर विवाहित पुरुष को इसके लिए सतर्क होना चाहिए कि जिसके पास आय का स्वतंत्र स्रोत नहीं है, उसे वित्तीय तौर पर सश्क्त बनाना होगा. उसकी जरूरतों को पूरा करना होगा. उसकी व्यक्तिगत जरूरतों के लिए वित्तीय संसाधन उपलब्ध कराकर . ऐसा सशक्तीकरण ऐसी कमजोर पत्नी को परिवार में ज्यादा सुरक्षित स्थिति में रखेगा.'