History of Somnath Temple: सोमनाथ मंदिर के इतिहास में कई चढ़ाव-उतार आए हैं, और इसमें कोई शक नहीं है कि इसे कई बार क्षतिग्रस्त किया गया है और फिर से बनाया गया है. हालांकि, यह दावा करना मुश्किल है कि इसे ठीक 17 बार तोड़ा गया और 17 बार बनाया गया. विभिन्न इतिहासकारों के अलग-अलग अनुमान हैं कि मंदिर कितनी बार क्षतिग्रस्त हुआ था और फिर से बनाया गया था. यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि मंदिर के इतिहास के कुछ हिस्सों पर विवाद है, और अलग-अलग इतिहासकारों के अलग-अलग दृष्टिकोण हैं.
हालांकि, इस बात से कोई इंकार नहीं है कि सोमनाथ मंदिर ने सदियों से आक्रमणों और विनाश का सामना किया है, और यह हिंदू धर्म के सबसे महत्वपूर्ण तीर्थस्थलों में से एक है. कुछ इतिहासकारों का मानना है कि मंदिर को वास्तव में केवल दो या तीन बार पूरी तरह से नष्ट कर दिया गया था, जबकि अन्य का मानना है कि यह संख्या पांच से आठ के बीच हो सकती है. यह महत्वपूर्ण है कि हम इन संख्याओं को सटीक के बजाय अनुमान के रूप में लें.
सोमनाथ मंदिर के इतिहास में एक जटिल अध्याय है, जिसमें 1509 ईस्वी में मंदिर के विध्वंस और उसके स्थान पर एक मस्जिद के निर्माण के बाद उसके हटाने का प्रकरण भी शामिल है. हालांकि, "हटाने" शब्द का प्रयोग इस संदर्भ में सावधानी से करना चाहिए, क्योंकि यह एक जटिल प्रक्रिया थी और इसमें बल प्रयोग शामिल नहीं था.
1947 में भारत के स्वतंत्रता के बाद, सोमनाथ मंदिर के फिर से बनाने का आह्वान जोर पकड़ने लगा. 1950 के दशक की शुरुआत में, भारतीय पुरातत्व विभाग ने साइट का सर्वेक्षण किया और पाया कि मस्जिद के नीचे मंदिर के अवशेष मौजूद थे. सरकार और हिंदू महासभा के बीच चर्चा के बाद, यह निर्णय लिया गया कि मस्जिद को हटा दिया जाएगा और उसके स्थान पर एक नए मंदिर का निर्माण किया जाएगा.
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि मस्जिद को हटाने की प्रक्रिया शांतिपूर्ण ढंग से की गई थी. सरकार ने मुस्लिम समुदाय के नेताओं के साथ बातचीत की और उन्हें एक वैकल्पिक स्थल पर एक नई मस्जिद बनाने के लिए मुआवजा देने की पेशकश की. 1964 में, मस्जिद को धीरे-धीरे dismantled किया गया और उसके पत्थरों को सावधानी से हटा दिया गया. इन पत्थरों का उपयोग एक नए संग्रहालय के निर्माण में किया गया था, जो सोमनाथ मंदिर के इतिहास को प्रदर्शित करता है.
1951 में, मंदिर के मूल स्थान पर एक नए सोमनाथ मंदिर का निर्माण शुरू हुआ. 1955 में इस मंदिर का उद्घाटन किया गया और आज यह हिंदू धर्म के सबसे पवित्र तीर्थस्थलों में से एक है.