चंद्रबाबू की गिरफ्तारी और जनसेना का मास्टर स्ट्रोक, कैसे एक ही रात में पवन ने कर दिया NDA का कल्याण

Pawan Kalyan: आंध्र प्रदेश की राजनीति में पवन कल्याण नए हीरो बनकर उभरे हैं. 2019 के चुनाव में जीरो सीटों पर सिमटने वाली जनसेना पार्टी इस बार 21 विधानसभा सीटें और दो लोकसभा सीटें जीतकर आंध्र प्रदेश में बड़ी राजनीतिक ताकत बनकर उभरी है. पवन कल्याण का जलवा यह है कि खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कहते हैं कि यह पवन नहीं 'आंधी' है. वही, पवन कल्याण भविष्य में भी आंध्र प्रदेश में और बड़ी ताकत बनकर उभर सकते हैं.

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Nilesh Mishra

आज चंद्रबाबू नायडू आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री बन गए हैं. ठीक 9 महीने पहले वह जेल में थे. जेल में उनसे मिलने पहुंचे जनसेना पार्टी के मुखिया पवन कल्याण ने कुछ ऐसा करिश्मा कर दिया कि आंध्र प्रदेश से दिल्ली तक की राजनीति बदल गई. 2019 में सत्ता से बाहर होने के बाद हाशिए पर चले गए चंद्रबाबू नायडू से जेल में मुलाकात के बाद पवन कल्याण ने ऐलान कर दिया था कि उनकी पार्टी आगामी विधानसभा चुनाव में तेलुगू देशम पार्टी (टीडीपी) के साथ मिलकर चुनाव लड़ेगी. पवन कल्याण ही वह जरिया बने जिससे टीडीपी और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने फिर से हाथ मिला लिया. खुद पवन कल्याण की जनसेना ने अपनी सभी 21 विधानसभा और 2 लोकसभा सीटों पर चुनाव जीत लिया.

नायडू से मुलाकात करने के बाद पवन कल्याण ने कहा था, 'मैं सोच रहा था कि क्या चुनाव से पहले टीडीपी और जनसेना को साथ आना चाहिए? मैं एनडीए में हूं और मेरी अपील है कि YSR कांग्रेस के अत्याचारों के खिलाफ लड़ने के लिए एनडीए, जनसेना और टीडीपी एकसाथ आएं. आंध्र प्रदेश अब YSR कांग्रेस का शासन बर्दास्त नहीं कर सकता.' जब पवन कल्याण यह ऐलान कर रहे थे तो उनके बगल में चंद्रबाबू नायडू के बेटे नारा लोकेश भी खड़े थे.

कापू वोटर्स से बदल दिया खेल

दक्षिण भारत में फिल्मी सितारों को जाति और धर्म से काफी ऊपर माना जाता है. यही वजह रही कि आंध्र प्रदेश में दशकों से चले आ रहे कापू और कम्मा समुदाय के संघर्ष को पवन कल्याण ने कम कर दिया. दरअसल, टीडीपी को कम्मा समुदाय की पार्टी माना जाता है और कापू समुदाय के लोग उसे वोट नहीं देते. यहीं पर पवन कल्याण ने कड़ी का काम किया. खदु कापू समुदाय से आने वाले पवन कल्याण ने उन जगहों पर अपने कैंडिडेट उतारे जहां कापू समुदाय मजबूत स्थिति में है. इसका नतीजा यह हुआ कि वाईएसआर कांग्रेस के पैर उखड़ गए.

कैसा रहा राजनीतिक करियर?

पवन कल्याण और उनका परिवार राजनीति में पहले भी हाथ आजमा चुका है. साल 2008 में उनके बड़े भाई चिरंजीवी ने प्रजा राज्यम पार्टी बनाई. पवन कल्याण इसकी यूथ विंग के मुखिया बने. साल 2011 में चिरंजीवी ने अपनी पार्टी का कांग्रेस में विलय कर दिया और खुद भी कांग्रेस में शामिल हो गए. हालांकि, पवन कांग्रेस में नहीं गए और उन्होंने राजनीति से ही किनारा कर लिया. साल 2014 में खुद पवन कल्याण ने जन सेना पार्टी बनाई. उन्होंने तब भी टीडीपी को सपोर्ट किया और चुनाव में नहीं उतरे.

Pawan Kalyan Roadshow Jan Sena

हालांकि, गाहे-बगाहे वह कांग्रेस का विरोध जरूर करते रहे. वह टीडीपी का समर्थन करते रहे, साल 2018 में फैल रही किडनी की बीमारी के विरोध में वह टीडीपी सरकार के खिलाफ ही भूख हड़ताल पर भी बैठे. कई अन्य मुद्दों को लेकर भी पवन कल्याण ने आंदोलन किए. अवैध खनन, मजदूरों की समस्याओं और किसानों के लिए भी पवन कल्याण ने कई बार आवाज उठाई.

2019 में मिली हार

साल 2019 में पवन कल्याण की जनसेना पार्टी चुनाव में उतरी. आंध्र प्रदेश के विधानसभा चुनाव में जनसेना ने कुल 140 सीटों पर चुनाव लड़ा. खुद पवन कल्याण दो-दो सीटों से चुनाव लड़े लेकिन न तो जनसेना का खाता खुला और न ही पवन कल्याण कहीं से जीत पाए. अगले ही साल यानी 2020 में पवन कल्याण ने बीजेपी के हाथ मिला लिया था. अब 2024 में पवन कल्याण ने खुद भी चुनाव जीता और अपनी पार्टी की उन सभी सीटों पर चुनाव जिताया, जहां-जहां वह चुनाव लड़ी थी. 

Pawan Kalyan on Hunger Strike Jan Sena

क्यों गिरफ्तार हुए थे चंद्रबाबू नायडू?

आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके चंद्रबाबू नायडू पूरे प्रदेश में यात्रा निकाल रहे थे. 8 सितंबर को जनसभा के बाद वह अपनी वैनिटी वैन में आराम कर रहे थे. 9 सितंबर को सुबह आंध्र प्रदेश सीआईडी ने उनकी वैन को घेर लिया और भ्रष्टाचार के आरोप में गिरफ्तार कर लिया. आंध्र प्रदेश बीजेपी की अध्यक्ष पुरंदेश्वरी ने भी इसका विरोध किया. बाद में बताया गया कि 250 करोड़ रुपये के कौशल विकास घोटाले में चंद्रबाबू नायडू को मुख्य आरोपी बनाया गया है. 

लगभग दो महीने जेल में रहने के बाद आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट ने चंद्रबाबू नायडू को 31 अक्टूबर 2023 को जमानत दे दी. हालांकि, तब उनको स्वास्थ्य कारणों से चार हफ्ते की अंतरिम जमानत मिली थी और किसी भी राजनीतिक गतिविधि में न शामिल होने को कहा गया था. 20 नवंबर 2023 को उन्हें नियमित जमानत मिल गई और इसी के साथ वह राजनीतिक तौर पर भी सक्रिय हो गए.