menu-icon
India Daily

जब भारत ने कर दिए थे पाकिस्तान के दो टुकड़े, पढ़िए बांग्लादेश के बनने की कहानी

History of Bangladesh: भारत और पाकिस्तान की दुश्मनी उसी वक्त से शुरू हो गई थी जब से देश का विभाजन हुआ था. हालांकि, हर बार पाकिस्तान को मुंह की खानी पड़ी थी.

auth-image
Edited By: India Daily Live
1971 War of India Pakistan
Courtesy: Social Media

भारत अपने पड़ोसी देशों के साथ हमेशा से शांतिपूर्ण रिश्ते चाहता है. अपनी अखंडता और स्वतंत्र अधिकार को बनाए रखते हुए भारत की कभी भी किसी पड़ोसी मुल्क को दबाने या अपने क्षेत्र विस्तार की मानसिकता नहीं रही है. जब भी भारत के पड़ोसी मुल्कों को उसकी जरूरत पड़ी उसने हमेशा उदारता दिखाते हुए और एक कदम आगे बढ़कर मदद की है लेकिन अगर किसी पड़ोसी मुल्क ने अपनी सीमा लांघी है या धैर्य की परीक्षा ली है, तो भारत ने सही वक्त पर करारा जवाब भी दिया है. मौजूदा समय में भी भारत इसी सिद्धांत पर चलता है और कहीं पर बेवजह दखल नहीं करता है.

साल 1947 में भारत की आजादी के साथ ही विभाजन का दर्द भी मिला था. उसी वक्त से पाकिस्तान ने अपनी नापाक हरकतें शुरू कर दी थीं. इसका अंजाम उसी के लिए बुरा साबित हुआ और साल 1971 में पाकिस्तान को ऐसा दर्द मिला जो आज तक भुलाए नहीं भूलता. बात है 1971 में हुए भारत-पाकिस्तान युद्ध और फिर पाकिस्तान के विभाजन की. साल 1971 की विजय गाथा भारतीय सैनिकों के अदम्य साहस और शौर्य की ऐसी कहानी है, जिसने पूरी दुनिया के सामने भारत की ताकत दिखाई और विश्व के मानचित्र को भी बदल डाला था.   

अत्याचार के गुस्से से पैदा हुआ बांग्लादेश

दरअसल, 1947 में भारत से अलग होने के बाद पाकिस्तान के दो हिस्से थे. पश्चिमी पाकिस्तान (मौजूदा पाकिस्तान) और पूर्वी पाकिस्तान जिसे अब बांग्लादेश कहा जाता है. पश्चिमी पाकिस्तान (मौजूदा पाकिस्तान) की ओर से लगातार उपेक्षा, सियासी तिरस्कार और शोषण ने पूर्वी पाकिस्तान यानी बांग्लादेश के लोगों को आक्रोश और घृणा से भर दिया था. पाकिस्तान के खिलाफ मुक्ति संग्राम इसी का नतीजा था.

साल 1948 में उर्दू को पाकिस्तान की राष्ट्रीय भाषा का दर्जा दिया गया. बांग्लाभाषी लोगों में इसे लेकर गुस्सा भड़क उठा. ढाका में छात्रों के एक बड़े समूह ने बांग्ला को बराबरी का दर्जा दिए जाने की मांग करते हुए विरोध प्रदर्शन किया. पुलिस ने निहत्थे छात्रों पर गोलियां चलाईं. कई निहत्थे लोग इस गोलीबारी में मारे गए. इसके बाद बांग्ला आंदोलन हिंसक हो गया. इस आंदोलन ने भाषायी पहचान को लेकर अलग देश की मांग के बीज बो दिए. इस आंदोलन ने बंगाली राष्ट्रीय अभिमान को जन्म दिया और फिर शुरू हुई अलग राष्ट्र बनाने की मांग.

1970 का पाकिस्तान चुनाव और शेख मुजीबुर रहमान की जीत

जिस घटना ने बांग्लादेश के लोगों को अलग राष्ट्र बनाने पर मजबूर कर दिया, वह था 1970 में हुआ पाकिस्तान का आम चुनाव.  इस चुनाव के नतीजों ने पाकिस्तान का विघटन तय कर दिया. दरअसल, शेख मुजीबुर रहमान की पार्टी अवामी लीग को इस चुनाव में पूर्वी पाकिस्तान में सबसे ज़्यादा सीट मिली लेकिन पश्चिम में ज़ुल्फिक़ार अली भुट्टो की पाकिस्तान पीपल्स पार्टी (PPP) को ज़्यादा सीटें हासिल हुई. पूर्वी पाकिस्तान की 169 में से 167 सीट मुजीबुर रहमान की पार्टी को मिली. 313 सीटों वाली पाकिस्तानी संसद में मुजीब के पास सरकार बनाने के लिए पूर्ण बहुमत था. ऐसी स्थिति में जुल्फिकार अली भुट्टो ने चुनाव परिणाम को ही मानने से ही इनकार कर दिया. 

इसके खिलाफ 7 मार्च 1971 को ढाका में एक विशाल रैली का आयोजन किया गया. इसके बाद शुरू हुआ बांग्ला मुक्ति संग्राम. सबसे पहले बांग्लादेश मुक्तिवाहिनी का गठन हुआ. पाकिस्तान ने भारत पर पूर्वी पाकिस्तान के नेताओं को बरगलाने का आरोप लगाया. पाकिस्तानी फौज ने पूर्व के हिस्से में रहने वाले आम लोगों पर जुल्म ढाने शुरू किए. लाखों की तादाद में लोग भारत की सीमाओं में घुसने लगे. इस बीच पाकिस्तान ने भारत के कई हिस्सों पर हमला कर दिया. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने ऐलान किया कि बांग्लादेश की लड़ाई अब भारत की लड़ाई है. 

भारत ने बांग्लादेश को दिलाई आजादी

दरअसल, पाकिस्तान ने शुरू से ही अपने दूसरे भाग यानी पूर्वी पाकिस्तान पर सामाजिक और राजनैतिक दबाव बनाना शुरू कर दिया था. पूर्वी पाकिस्तान संसाधन में पाकिस्तान से बेहतर था लेकिन राजनीति में उसका प्रतिनिधित्व बेहद कम था. पूर्वी पाकिस्तान यानी आज के बांग्लादेश ने आवाज उठाई तो उस पर जुल्म ढाए गए. ऐसे में मदद की गुहार हमेशा भारत से लगाई गई. भारत ने भी आगे बढ़कर बांग्लादेश को पाकिस्तान से आजाद कराने में हर सभंव मदद की थी. बांग्लादेश भी मानता है कि बिना भारत के योगदान के उसे आजादी नहीं मिलती.

शांति स्थापित करने के भारत के प्रयास के बावजूद जब पाकिस्तानी वायु सेना ने 3 दिसंबर 1971 को भारतीय वायुसेना के ठिकानों पर हमला बोल दिया, तब भारत को इस लड़ाई में सीधे तौर पर शामिल होना पड़ा. इसके साथ ही 1971 के भारत-पाक युद्ध की शुरुआत हो गई. पाकिस्तान, चीन, अमेरिका और अन्य इस्लामिक देश बांग्लादेश के गठन के खिलाफ थे लेकिन भारत ने पूर्वी पाकिस्तान के नेताओं और लोगों को पूरा सहयोग दिया ताकि वे पाकिस्तान के पंजे से छुटकारा पा सकें.

पाकिस्तान का शर्मनाक सरेंडर

13 दिनों तक चले इस युद्ध में भारतीय सेना की बहादुरी और शौर्य के सामने पाकिस्तान ने घुटने टेक दिए. 16 दिसंबर 1971 को शाम 4:35 बजे पाकिस्तान के लेफ्टिनेंट जनरल नियाजी ने 93 हजार सैनिकों के साथ भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण कर दिया और भारत के लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के सामने दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए. द्वितीय विश्व युद्ध के बाद का ये सबसे बड़ा सैन्य आत्मसमर्पण था. इसके साथ ही दुनिया के मानचित्र पर एक नए देश बांग्लादेश का उदय हुआ. 

साल 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में भारत की विजय और बांग्लादेश के निर्माण ने पूरी दुनिया में जहां भारत का मान और शान को बढ़ाया. भारत ने यह भी दिखा दिया कि मानवता की रक्षा और अपनी सुरक्षा के लिए वह पूरी तरह से सक्षम और समर्थ है. 1971 में बांग्लादेश का जन्म दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक घटनाओं में से एक थी. भारतीय सैनिकों ने जिस साहस से सिर्फ तेरह दिन में पाकिस्तान को घुटने टेकने को मजबूर कर दिया, उसके साथ ही दुनिया का नक्शा बदल गया और दुनिया के नक्शे पर बांग्लादेश नया देश बन गया.

बांग्लादेश बना नया देश

धर्म के आधार पर भारत से अलग हुए पश्चिमी पाकिस्तान ने तब के पूर्वी पाकिस्तान पर बेतहाशा जुल्म ढाए. नरसंहार, बलात्कार और मानवाधिकारों का उल्लंघन करने में पाकिस्तान ने सारी हदें पार कर दी थी. तब भारत बांग्लादेश मुक्ति संग्राम में न सिर्फ शामिल हुआ बल्कि पाकिस्तान को ऐसी करारी शिकस्त दी कि उसे पूर्वी पाकिस्तान से अपना अधिकार छोड़ना पड़ा. इसके बाद ही 16 दिसंबर 1971 के दिन भारतीय सेनाओं के पराक्रम और मजबूत संकल्प की बदौलत 24 सालों से अत्याचार सह रहे तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान के करोड़ों लोगों को मुक्ति मिली थी. 

यही नहीं भारतीय सेना के पराक्रम से दुनिया के मानचित्र पर 16 दिसंबर 1971 को बांग्लादेश के रूप में एक नए देश का जन्म हुआ. इसके बाद से 16 दिसंबर को हर साल भारत विजय दिवस मनाता है. विजय दिवस न केवल भारत की पाकिस्तान पर 1971 में शानदार जीत की याद दिलाता है बल्कि यह बांग्लादेश के जन्म की कहानी भी कहता है.

हीरो बनकर उभरे सैम मानकेशॉ

जब भारत-पाकिस्तान के बीच 1971 का युद्ध हुआ, उस वक्त भारतीय सेना के अध्यक्ष फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ थे. उनकी अगुवाई में ही भारत ने यह युद्ध लड़ा और ऐतिहासिक जीत हासिल की थी. सैम मानेकशॉ के सक्षम सैन्य नेतृत्व से 1971 के युद्ध में मिली जीत से राष्ट्र को आत्मविश्वास की एक नई भावना मिली. उनकी सेवाओं को देखते हुए राष्ट्रपति ने जनवरी 1973 में उन्हें फील्ड मार्शल बनाया.

सैम मानेकशॉ की रणनीतियों को जमीन पर उतारने वाले अधिकारियों ने भी दुनिया को दिखाया कि भारतीय सेना कुछ भी कर सकती है. मेजर जनरल जेएफ़आर जैकब, लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा, मेजर होशियार सिंह, सेकेंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल और लांस नायक अलबर्ट एक्का जैसे सैनिकों और अधिकारियों को आज भी उनके अतुलनीय योगदान के लिए भारत के साथ-साथ बांग्लादेश में भी याद किया जाता है.