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जातीय जनगणना के बाद बिहार की सियासत में अंगड़ाई के संकेत, चुनावी लड़ाई में इन आंकड़ों के क्या है सियासी मायने!

Bihar Caste Survey: गांधी जयंती यानी 2 अक्टूबर को बिहार सरकार ने जातीय जनगणना की रिपोर्ट जारी कर दी है. इस रिपोर्ट के जारी होने के बाद बिहार की सियासत और सामाजिक ताने- बाने में व्यापक स्तर पर परिवर्तन की चर्चा विमर्श के केंद्र में है.

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Edited By: Avinash Kumar Singh
जातीय जनगणना के बाद बिहार की सियासत में अंगड़ाई के संकेत, चुनावी लड़ाई में इन आंकड़ों के क्या है सियासी मायने!

नई दिल्ली: गांधी जयंती यानी 2 अक्टूबर को बिहार सरकार ने जातीय जनगणना की रिपोर्ट जारी कर दी है. इस रिपोर्ट के जारी होने के बाद बिहार की सियासत और सामाजिक ताने- बाने में व्यापक स्तर पर परिवर्तन की चर्चा विमर्श के केंद्र में है. बिहार सरकार के इस कदम को जहां समाजिक न्याय की प्रतिबद्धता को तौर पर देखा जा रहा है, वहीं इस मुद्दे पर सियासत का चुनावी चक्रव्यूह भी रचा जाने लगा है.

देश में जातीय जनगणना की मांग लंबे समय से उठती रही है. आजादी के बाद जब पहली बार जनगणना हुई थी तो जातीय जनगणना की मांग उठी थी, लेकिन तत्कालीन गृहमंत्री सरदार पटेल ने प्रस्ताव खारिज कर दिया. उनका ऐसा मानना था कि इससे देश का ताना-बाना बिगड़ सकता है. इसके बाद समय-समय पर तमाम क्षेत्रीय दलों और अब कांग्रेस पार्टी की ओर से जातिगत जनगणना की मांग जोर-शोर से उठायी जाने लगी है.

जातीय जनगणना पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी का रूख

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने ऐलान कर दिया है कि अगर केंद्र में उनकी सरकार बनती है तो पहली प्राथमिकता जातीय जनगणना का रहेगा. अगर हम बीते कुछ सालों में नजर डाले तो जातीय जनगणना कई पार्टियों के लिए चुनावी मोहरे के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है. ऐसे में बिहार सरकार ने जातीय जनगणना की रिपोर्ट सार्वजनिक करके बड़ा मास्टरस्ट्रोक चला है.

विपक्षी गठबंधन INDIA की बैठक में भी जातिगत जनगणना की उठी मांग

बीते दिनों 18 जुलाई 2023 को बेंगलुरु में हुई विपक्षी गठबंधन INDIA की बैठक में भी जातिगत जनगणना की मांग की गई थी. इसके पक्ष में यह तर्क दिए जा रहा हैं कि विकास कार्यक्रम बनाने और सरकारी नीतियों और योजनाओं के लिए जातिगत जनगणना बहुत जरूरी है. इससे पता चलेगा कि कौन सी जाति पिछड़ेपन का शिकार है और किन जातियों को विकास की मुख्यधारा में अभी आना बाकि है. विपक्षी दलों का यह भी मानना है कि जब एससी-एसटी की जनगणना होती है तो बाकी जातियों के लिए क्यों नहीं.साल 2011 की जनगणना के दौरान भी राजनीतिक दलों ने जातीय जनगणना की फिर से मांग उठाई थी.

बिहार सरकार के जातीय जनगणना का आकड़ा किया जारी

दरअसल बिहार सरकार के विकास आयुक्त विवेक सिंह की ओर से जारी आंकड़ों के अनुसार राज्य की कुल जनसंख्या 13.07 करोड़ से अधिक है. इस डेटा के अनुसार राज्य में पिछड़ा वर्ग 27.13 प्रतिशत, अत्यंत पिछड़ा वर्ग 36.01 प्रतिशत और सामान्य वर्ग 15.52 प्रतिशत है.

बिहार में हिंदू समुदाय की आबादी 81.9%, मुस्लिम की आबादी 17.7%, ईसाई 0.05%, सिख- 0.01%, बौद्ध 0.08%, जैन 0.0096% और अन्य धर्म के लोगों की आबादी 0.12% है. बिहार की कुल 13 करोड़ से ज्यादा की आबादी में 10.07 करोड़ हिंदू और मुस्लिम की आबादी 2.31 करोड़ है. यादवों की तादाद 14 फीसदी है. पिछड़ा वर्ग की आबादी 27 फीसदी है. अत्यंत पिछड़ा वर्ग की आबादी 36 फीसदी है. ब्राम्हाणों की आबादी 3.3 फीसदी है. कुर्मी की आबादी 2.87 फीसदी है.

सूबे की राजनीतिक मानचित्र पर जातीय जनगणना का गहरा असर

जातीय जनगणना का रिपोर्ट सामने आने के बाद आने वाले दिनों में बिहार की सियासत में बड़ा उलटफेर देखने को मिलेगा. बिहार में जातीय जनगणना के आंकड़े सामने आने के बाद लालू, नीतीश कुमार जैसे नेता पिछड़ों, अतिपिछड़ों और दलितों की हिस्सेदारी बढ़ाने की मांग कर सकते हैं. इसके अलावा इन नेताओं की ओर से आरक्षण में बढ़ोत्तरी की डिमांड भी की जा सकती है. जिससे बिहार समेत देश की समाजिक और राजनीतिक मानचित्र पर इसका गहरा असर पड़ेगा.

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