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एक तरफ राहुल, एक तरफ अखिलेश, बीच में अवधेश, कौन तय करता है सांसदों के बैठने की जगह?

Lok Sabha Sitting Arrangement:  लोकसभा भवन यानी संसद में कौन सा सांसद कहां बैठेगा. इसका निर्धारण लोकसभा में प्रक्रिया और संचालन के नियम 4 के निर्देश क्लॉज 122(ए) के तहत किया जाता है. लोकसभा स्पीकर भी अपने हिसाब से सांसदों को सीट अलॉट कर सकता है. इस बार फ्रंट की 20 सीटों में से एनडीए को 11 और इंडिया गठबंधन को 9 सीटें दी गई हैं. आइए जानते हैं कि आखिर फ्रंट में किस पार्टी को कितनी सीटें मिलेंगी इसका निर्धारण कैसे किया जाता है. 

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Edited By: Gyanendra Tiwari
Lok Sabha
Courtesy: Social Media

Lok Sabha Sitting Arrangement: लोकसभा चुनावी नतीजों ने एनडीए को बहुमत मिला. नरेंद्र मोदी तीसरी बार प्रधानमंत्री बने और इसी के साथ उनकी तीसरी सरकारी पारी की शुरुआत हो गई. इसी कड़ी में सोमवार से संसद सत्र भी शुरू हो चुका है. सांसदों ने सांसद पद की शपथ भी ली. लोकसभा स्पीकर का चुनाव भी हो गया. बीजेपी के ओम बिरला स्पीकर बन गए हैं. इस बार लोकसभा में विपक्ष के सांसदों की संख्या बढ़ी है. नए संसद भवन में सभी सांसदों के बैठने का निर्धारण भी हो चुका है.

बीते दिनों एक तस्वीर सामने आई थी, जिसमें फैजाबाद (अयोध्या) सांसद अवधेश प्रसाद यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के साथ बैठे नजर आए. अवधेश के दूसरे साइड एक सीट छोड़कर राहुल गांधी बैठे थे. अब ऐसे में सवाल ये उठता है कि आखिर लोकसभा में सांसद किस सीट पर बैठेंगे कौन तय करता है? आइए इस सवाल का जवाब जानते हैं.

कैसे तय होती है सांसद की सीट?

लोकसभा में कौन सा सांसद कहां बैठेंगे यह नियम के अनुसार तय होता है. अपने मनमुताबिक कोई भी सांसद कहीं भी नहीं बैठ सकता है. नियमों के अनुसार ही सत्तापक्ष और विपक्ष के सांसद बैठते हैं. लोकसभा में प्रक्रिया और संचालन के नियम 4 के निर्देश क्लॉज 122(ए) में सांसदों के बैठने का जिक्र किया गया है. 

सांसद में सांसदों के सीट का चुनाव उनकी पार्टी द्वारा हासिल की गई लोकसभा सीट के अनुसार तय होता है. स्पीकर की चेयर के दाहिने साइड सत्ता पक्ष के सांसद तो बाईं ओर विपक्ष के सांसद बैठते हैं. वहीं, स्पीकर के सामने भी एक टेबल होती है. इस टेबल पर लोकसभा सचिवालय के अधिकारी बैठे होते हैं. ये अधिकारी लोकसभा की कार्यवाही का लेखा जोखा रखते हैं.

इस फॉर्मूले के तहत मिलती है आगे की सीट

लोकसभा में कुल 8 ब्लॉक और 12 रो हैं. ये स्पीकर के राइट टू लेफ्ट है. एक रो में 20 सीटें होती हैं. जिस पार्टी के जितने सांसद होते हैं उससे रो की कुल सीटों से गुणा करके फिर लोकसभा के सांसदों की कुल संख्या से भाग दिया जाता है. इसके तहत जो भी नंबर निकलता है उस पार्टी का आगे की रो में उतनी ही सीटें मिलती है. सचिवालय की ओर से पार्टी को बता दिया जाता है कि उसके कितने सांसद आगे की सीट पर बैठेंगे. इसके बाद पार्टी अपने से डिसाइड करती है कि उसका कौन सा सांसद कहां बैठेगा.

उदाहरण से समझिए किस पार्टी को कितनी फ्रंट सीट मिलती है

बीजेपी ने इस बार लोकसभा में 240 सीटें प्राप्त की फ्रंट की कुल 20 सीटें हैं. तो बीस से गुणा करने पर 4800 आएगा. अब इसे 543 से भाग दे दीजिए. इस हिसाब से 8 सीटें आएंगी. 5 से ज्यादा सीटें जीतने वाली पार्टियों पर ही ये फॉर्मूला लागू होता है. इसके अलावा स्पीकर भी अपने अनुसार सांसदों की सीटों का बंटवारा कर सकता है.

अनुभवी और वरिष्ठ सांसदों को प्राथमिकता

मुख्य तौर पर अनुभवी, वरिष्ठ सांसदों और पूर्व प्रधानमंत्रियों को आगे की सीट दी जाती है. साल 2014 में मुलायम सिंह और एचडी देवगौड़ा को आगे की सीट दी गई थी. लोकसभा में उनकी 5 से कम सीटें आई थी इसके बावजूद उन्हें आगे इसलिए बैठाया क्योंकि दोनों सांसद वरिष्ट थे. वहीं, एचडी देवगौड़ा भारत के पूर्व पीएम भी रह चुके हैं.

फैजाबाद से सांसद अवधेश कुमार को आगें की सीट पर वरिष्ठता के आधार पर बैठाया गया है.

फ्रंट सीट पर किस पार्टी को कितनी सीटें

फ्रंट की 20 सीटों में से एनडीए को 11 (इसमें बीजेपी को 11), इंडिया गठबंधन को 9 (कांग्रेस को 4) सीटें दी गई हैं.