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कभी थे किंग मेकर, अभी साथ छोड़ रहे 'अपने', हरियाणा में दुष्यंत चौटाला का कैसे बिगड़ा खेल?

हरियाणा की सियासत में दुष्यंत चौटाला का कभी क्रेज था. उनका उभार अचानक हुआ था और राज्य में वैकल्पिक राजनीति के सबसे बड़े चेहरे बन गए थे. उन्होंने भारतीय जनता पार्टी के साथ गठबंधन किया. अनबन होने पर राहें अलग कर लीं लेकिन अब उनके विधायक ही साथ छोड़ने लगे हैं. नई राजनीति में उनके साथ क्या होगा, यह देखने वाली बात होगी.

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Edited By: India Daily Live
Dushyant Chautala
Courtesy: Social Media

हरियाणा की राजनीति और दुष्यंत चौटाला. युवा तुर्क पर हर किसी को भरोसा था और एक बार को तो ये लगा कि अगले मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला ही होंगे. उन्होंने साल 2019 में उनका उभार करिश्माई था. 87 विधानसभा सीटों वाले राज्य में उन्होंने 10 सीटों पर जीत हासिल की थी. वे राज्य में वैकल्पिक राजनीति के चेहरे थे लेकिन बीजेपी से गठबंधन के बाद हालात बदल गए. वे तत्काल डिप्टी सीएम तो बन गए लेकिन जनता उनसे खुश नहीं थी. अब तो जीते हुए विधायक भी. एक-एक करके दुष्यंत चौटाला अकेले पड़ते जा रहे हैं.

दिसंबर 2023 से पहले दुष्यंत चौटाला ने बीजेपी से अपनी राहें अलग कर लीं. उन्होंने राजस्थान विधासनभा चुनावों में कुल 19 उम्मीदवार उतारे. सारे उम्मीदवारों की जमानत तक जब्त हो गई. चुनाव आयोग ने हरियाणा में विधानसभा चुनावों का ऐलान कर दिया है. 1 अक्टूबर को चुनाव होंगे, अब सबकी नजरें एक बार फिर दुष्यंत चौटाला पर टिक गई हैं. साल 2019 के किंगमेकर, इस बार क्या बनेंगे, हर कोई जानना चाहता है. 

जन नायक जनता पार्टी (JJP) के दम से भारतीय जनता पार्टी (BJP) सरकार बना पाई थी लेकिन राहें अलग हो गईं. लोकसभा चुनावों में राहें अलग हुईं तो उनके सामने नई चुनौतियां पैदा  हो गई हैं.

जो साथी थे, अब सियासी दुश्मन हैं

JJP का अब सीधा मुकाबला बीजेपी से होगा. कभी सहयोगी रहे, अब चुनावी अखाड़े में सामने होंगे. कांग्रेस भी इस चुनाव में बहुत मजबूत स्थिति में है. सामने आम आदमी पार्टी (AAP) भी है, जिसने साल 2022 में हुए पंजाब विधानसभा चुनावों में झंडे गाड़े थे. दुष्यंत चौटाला के राज्य में लोगों के पास इतने विकल्प हैं कि उन्हें खुद को प्रासंगिक रखने के लिए भी नया दांव चलना होगा.

कैसे घट रहा है जेजेपी का जनाधार?

साल 2019 में जेजेपी के पास कुल 14.9 फीसदी वोट शेयर थे, उन्होंने 10 सीटें जीत ली थीं. 87 विधानसभाओं वाले राज्य में यह बड़ी छलांग थी, जिसने सीधे उन्हें किंग मेकर की भूमिका में खड़ा कर दिया. इसका इनाम ये रहा कि पहले ही प्रयास में सीधे मजबूत डिप्टी सीएम बन गए, जिनकी राज्य में मजबूत भूमिका थी. साल 2024 के लोकसभा चुनाव में पूरी सियासत बदल गई. उन्होंने 10 लोकसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे लेकिन उन्हें 0.87 प्रतिशत से भी कम वोट हासिल हुए. एक भी उम्मीदवार जीत नहीं पाया. 

हरियाणा डिरेल, राजस्थान में आजमाया दांव

दिसंबर 2023 में दुष्यंत चौटाला ने पार्टी के विस्तार पर जोर दिया. वे राजस्थान में 19 उम्मीदवार उतार बैठे. सारे के सारे उम्मीदवार अपनी सीट तक नहीं बचा पाए. जेजेपी का वोट प्रतिशत 0.14 प्रतिशत रहा, नोटा भी उनसे ज्यादा वोट 0.96 प्रतिशत पाया. 

अपने ही दुष्यंत चौटाला का साथ छोड़ रहे 

जेजेपी का आलम ये है कि 5 विधायक भारतीय जनता पार्टी से जा मिले हैं. पार्टी ने विधानसभा स्पीकर ज्ञान चंद गुप्त से विधायकी रद्द करने की मांग की है. बड़वाल से विधायक जोगी राम सिहाग और नरवाना से विधायक राम निवास के अयोग्ता की मांग जोर-शोर से उठाई गई है. चुनाव आयोग ने इससे बहुत पहले ही चुनाव की तारीखों का ऐलान कर दिया. जेजपी के तीन अन्य विधायक राजमुकार गौतम, देवेंद्र सिंह बबली और ईश्वर सिंह भी बगावती तेवर दिखा चुके हैं. 

देखिए कब-कब दुष्यंत को लगे झटके 

अप्रैल में दुष्यंत चौटाला को एक और झटका लगा. जेजेपी के राज्य अध्यक्ष निशान सिंह ने ही पार्टी छोड़ दी, कांग्रेस में शामिल हो गए. शुक्रवार को जेजेपी विधायक अनूप धनक ने पार्टी छोड़ दी. अब वे बीजेपी के दुलारे हो रहे हैं. शनिवार को जेजेपी के 2 विधायकों ने इस्तीफा दे दिया. ईश्वर सिंह और देवेंद्र सिंह बबली ने राहें जुदा कर लीं. देवेंद्र सिंह, दुष्यंत चौटाला के करीबी सहयोगी रहे हैं और मनोहर लाल खट्टर सरकार में मंत्री रह चुके हैं. साल 2020-21 के किसान आंदोलन के दौरान वे अपनी पार्टी के रुख पर सवाल खड़े कर चुके हैं. दुष्यंत चौटाला के अपने ही दगा दे रहे हैं. 

क्या नए सिरे से बन रही पार्टी?

लोकसभा चुनाव 2024 के बाद जेजेपी ने अपने सभी राज्य इकाइयों को भंग कर दिया था. दुष्यंत चौटाला, उनते पिता अजय चौटा और दूसरे नेता पार्टी के पुनर्गठन पर काम करने लगे. शुक्रवार को चुनाव आयोग ने ऐलान किया तो जेजेपी ने 50 पद धारकों के नाम का ऐलान किया. 

बीजेपी से अलग होना आएगा काम?

इंडियन नेशनल लोक दल (इनेलो) के विकल्प में तैयार हुई ये पार्टी चौटाला परिवार में बगवात से पैदा हुई, अब बगावत की ही भेंट चढ़ रही है. दुष्ंयत चौटाला अब बीजेपी के धुर आलोचक हो गए हैं. साल 2021-22 के दौरान ही किसान तबका उनसे नाराज था और बीजेपी के साथ होने पर सवाल खड़े कर रहा था. वे बीजेपी से अलग अलग हुए लेकिन तब, जब उनका समय अनुकूल नहीं रहा. 

क्या फिर बन पाएंगे किंग मेकर?

दुष्यंत चौटाला ने चुनाव के फैसले के बाद यह ऐलान किया है कि राज्य की सभी 90 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ेंगे. वे अगले 45 दिनों तक के लिए 24 घंटे काम करेंगे. उनका कहना है कि लोग भूपेंद्र हुड्डा के 10 साल के जनता विरोधी सरकार को नहीं भूले हैं. अब देखने वाली बात ये होगी कि उन्हें अपने मिशन में कामयाबी मिल पाती है या नहीं.