Air India: कच्चा घर, चिट्ठियों की ढुलाई और टाटा का नाम, यूं हुई थी एयर इंडिया की शुरुआत
History of Air India: भारत की घरेलू विमानन कंपनी एयर इंडिया एक बार फिर से टाटा ग्रुप के ही हाथ में है. जब इसकी शुरुआत हुई थी तब भी टाटा ने ही पहला विमान उड़ाया था.
भारत आज विश्व का तीसरा सबसे बड़ा घरेलू विमानन बाजार बन गया है. भारत में रोज लगभग लाखों लोग राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हवाई यात्रा कर रहे हैं. देश की अर्थव्यवस्था में भी इसका एक अहम योगदान है. इन दिनों एयर लाइन कंपनी एयर इंडिया एक्सप्रेस खूब चर्चा में है. यह कंपनी टाटा ग्रुप के मालिकाना हक वाली एयर इंडिया की सहयोगी कंपनी है. एयर इंडिया भारत में कई दशकों से हवाई सेवाएं दे रही है लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत में हवाई जहाज का इतिहास क्या है और इसकी शुरुआत कैसे हुई.
भारत में हवाई सेवा की शुरुआत अप्रैल 1932 में हुई. टाटा एयरलाइंस के नाम से मशहूर एयर इंडिया की स्थापना उस समय के जाने माने उद्योगपति जेआरडी टाटा ने की थी. जेआरडी टाटा को जहाज उड़ाने का बड़ा शौक था. 15 साल की उम्र में टाटा ने पहला बार जहाज उड़ाया. आज के समय में एयर इंडिया कंपनी का मालिकाना हक एक बार फिर से टाटा ग्रुप के पास ही पहुंच गया है.
चिट्ठियां ढोने का काम करती थी एयर इंडिया
एयर इंडिया ने अपनी पहली कमर्शियल उड़ान 15 अक्टूबर 1932 को भरी जब सिंगल इंजन वाले हवाई जहाज को अहमदाबाद से कराची होते हुए मुंबई ले जाया गया. तब हवाई जहाज का इस्तेमाल इंसानों को ले जाने के बजाय चिट्ठियों की ढुलाई में किया गया. बाद में इसका इस्तेमाल नियमित रूप से डाक लाने और ले जाने के लिए किया जाने लगा. उस समय की ब्रिटिश सरकार टाटा एअरलाइंस को हर चिट्ठी पर चार आने (25 पैसे) देती थी. उसमें भी डाक टिकट खुद चिपकाना पड़ता था.
मिट्टी के मकान से संचालित होती थी एयर इंडिया
अपने शुरुआती दौर में टाटा एयरलांइस मुंबई के जुहू में मिट्टी के एक मकान से संचालित होती थी. इसी मकान के सामने एक बड़े मैदान में इसका रनवे बनाया गया था. जब कभी बारिश होती तो मैदान में पानी भर जाता और उड़ान में बाधा आ जाती थी. बाद में इस समस्या से निपटने के लिए जेआरडी टाटा हवाई जहाज को पूना से संचालित करने लगे. उस वक्त टाटा एयरलाइंस के पास दो छोटे सिंगल इंजन वाले हवाई जहाज, तीन मैकेनिक और दो पायलट थे.
साल 1933 में इसने अपनी तकनीकी दक्षता में सुधार किया. उस साल के अपने पहले संचालन में टाटा एयरलाइंस के जहाज ने 155 यात्रियों और 9.72 टन चिट्ठियों के साथ उड़ान भरी. उस साला टाटा के विमानों ने लगभग 260,000 किलोमीटर की उड़ान भरी. होमी भरूचा टाटा एयरलांइस के पहले पायलट जबकि जेआरडी टाटा और विसेंट दूसरे और तीसरे पायलट थे.
दूसरे विश्व युद्ध में निभाई अहम भूमिका
एयर इंडिया ने अपनी पहली घरेलू उड़ान बॉम्बे से तिरुवनंतपुरम के बीच भरी. समय के साथ इस एयर लाइन ने लगातार अपनी तकनीक में सुधार किया. दूसरे विश्व युद्ध के दौरान एयरलाइन ने सैनिकों की आवाजाही, जरूरी सामानों को पहुंचाने, शरणार्थियों के बचाव और विमानों के रखरखाव में मदद की. युद्ध के बाद भारत में इसे कमर्शियल सेवा के रूप में महत्व दिया जाने लगा.
कैसे पड़ा एयर इंडिया का नाम?
1946 में जब टाटा संस लिमिटेड ने टाटा एअर लाइंस के नाम को बदलने के बारे में सोचा तो उस समय टाटा एयरलाइंस का नाम रखने के लिए कंपनी को कंफ्यूजन था. कंपनी के पास नाम रखने के लिए चार नाम थे लेकिन कौन सा नाम बेहतर रहेगा इसे लेकर कंपनी को मुश्किल आ रही थी. नाम को इंडियन एयरलाइन्स, एयर इंडिया, पैन इंडियन एयरलाइन्स और ट्रांस-इंडियन एयरलाइन्स में से चुना जाना था. टाटा संगठन के दिमाग में एक विचार आया कि इन नामों पर अपने कर्मचारियों से सर्वे कराया जाए. इसके लिए सैंपल ओपिनियन सर्वे का माध्यम चुना गया. टाटा कर्मचारियों के बीच उनके मत लेने के लिए वोटिंग पेपर बांटे गए. पहली बार में ही एयर इंडिया नाम को सबसे ज्यादा वोट मिले. इस तरह टाटा एयरलाइंस का नाम एयर इंडिया पड़ा.
सरकार खुद से संचालित करने लगी एयर इंडिया
आजादी के बाद साल 1947 में सरकार ने एयर इंडिया में अपनी भागीदारी को बढ़ाकर 49 फीसदी कर लिया. साल 1953 में सरकार ने एयर कॉरपोरेशन एक्ट पास किया और इस कंपनी में सबसे ज्यादा हिस्सेदारी खरीद ली. इस प्रकार एयर इंडिया पूरी तरह से सरकार के स्वामित्व में आ गई. हालांकि, इसके संस्थापक जेआरडी टाटा 1977 तक इसके अध्यक्ष बने रहे. 21 फरवरी 1960 को एयर इंडिया ने गौरी शंकर नाम से अपना पहला बोइंग 707-420 नाम से अपने बेड़े में जेट विमान शामिल किया. इस तरह एयर इंडिया अपने बेड़े में जेट शामिल करने वाली एशिया की पहली एयरलाइन बन गई. साल 1994 में सरकार द्वारा निजी एयरलाइनों को मंजूरी देने के बाद, एयर इडिंया को तमाम एयरलाइनों का मुकाबला करना पड़ा. ओपन मार्केट में इस कंपनी की हिस्स्दारी घटने लगी. नतीजा यह निकला कि 2007 में एयर इंडिया को घाटा सहना पड़ा.
कैसे घाटे में चली गई एयर इंडिया
सरकारी आकड़ों के मुताबिक, 2018-19 में एयर इंड़िया के संसाधनों का कम इस्तेमाल और उसे चलाने के लिए लगने वाले इंधन के दाम में बढ़ोतरी के कारण एयर इंडिया को लगभग 8556.35 करोड़ रुपये के नुकसान का सामना करना पड़ा जो कि एयर इंडिया का अभी तक का सबसे बड़ा घाटा था. इसके अलावा एयर इंडिया लगभग 9 हजार करोड़ रुपये के कर्ज से भी जूझ रही थी. कर्ज में डूबी एयर इंडिया को उबारने के लिए इसके निजीकरण का फैसला लिया गया.
एयर इंडिया की घर वापसी
कर्ज में डूबी एयर इंडिया से सरकार निपटने के लिए इसके निजीकरण का फैसला लिया लेकिन सरकार को इसके खरीदार नहीं मिले. आखिर में टाटा ने खुद अपनी इस पुरानी कंपनी में दिलचस्पी दिखाई. 2021 में सरकार ने औपचारिक रूप से एयर इंडिया को टाटा को सौंप दिया. करीब सात दशक के बाद एअर इंडिया की घर वापसी हो गई.