मारुति सुजुकी आज देश की सबसे बड़ी कार निर्माता कंपनियों में से एक है. इसकी शुरुआत 'मारुति' के नाम से भारत में हुई थी. इसके पहले मैनेजिंग डायरेक्टर पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के पुत्र संजय गांधी थे. इस कंपनी की भारत में स्थापना का किस्सा काफी मजेदार रहा है. अपने बेखौफ अंदाज के लिए मशहूर रहे संजय गांधी राजनीति के अलावा दूसरे कामों में भी न तो किसी की सुनते थे और न ही इसके असर के बारे में सोचते थे. विदेश से इंटर्नशिप करके लौटे संजय गांधी का सपना भारत की कार बनाने का था. उस वक्त की सरकार ने संजय गांधी को यह सपना पूरा करने की भरपूर आजादी भी दी.
सत्ता के दुरुपयोग के आरोपों के बीच गुड़गांव में मारुति कंपनी की नींव रखी गई, संजय गांधी इसके अगुवा बने लेकिन जीते जी उनका यह ख्वाब कभी पूरा नहीं हो पाया. 1980 में एक हादसे में जान गंवाने वाले संजय गांधी का सपना जब साकार हुआ तो वह इस दुनिया में नहीं थे. अपने बेटे की याद में इंदिरा गांधी अपने दूसरे बेटे यानी राजीव गांधी के साथ मारुति की फैक्ट्री भी पहुंचीं और पहले ग्राहक को कार की चाबी सौंपी.
दरअसल, दून स्कूल से ड्रॉप आउट होने के बाद संजय गांधी UK चले गए थे और वहां रोल्स रॉयस में उन्होंने इंटर्नशिप भी की थी. इसके बाद जब वह 1966 में भारत आए, तो उन्होंने भारत की आम जनता के लिए कार बनाने के बारे में सोचना शुरू किया. मारुति का इतिहास 1970 में शुरू हुआ, जब निजी लिमिटेड कंपनी "मारुति टेक्निकल सर्विस प्राइवेट लिमिटेड (MTSPL) की शुरुआत 16 नवम्बर 1970 को हुई थी. इस कंपनी का उद्देश्य एक पूर्ण स्वदेशी मोटर कार बनाने के लिए डिजाइन, निर्माण और अन्य चीजों के लिए तकनीकी जानकारी प्रदान करना था.
सरकार ने संजय गांधी को बना दिया MD
अपनी इसी सोच का जिक्र संजय गांधी ने अपनी मां से किया. जो उस वक्त भारत की प्रधानमंत्री भी थीं. संजय गांधी के सुझाव के आधार पर ही इंदिरा गांधी ने कैबिनेट में कार निर्माण के लिए सरकारी कंपनी के गठन का प्रस्ताव रखा था. इसके बाद 4 जून 1971 को 'मारुति मोटर्स लिमिटेड' नामक एक कंपनी का गठन किया गया और इसके एमडी के तौर पर संजय गांधी को जिम्मेदारी सौंपी गई थी.
हालांकि, उस वक्त विपक्ष ने इसे लेकर काफी सवाल भी उठाया था. विपक्ष का मानना था कि संजय गांधी या फिर कंपनी के किसी भी सदस्य के पास कार बनाने का कोई भी अनुभव नहीं है तो यह कैसे संभव हो सकता है. कॉन्ट्रैक्ट के अनुसार, सरकार ने मारुति को देश में प्रति वर्ष सस्ती कीमत वाली 50 हजार कार बनाने की मंजूरी दी थी. साथ में कार बनाने के लिए संजय गांधी ने जर्मनी की कार निर्माता कम्पनी वॉक्सवैगन से भी बातचीत की थी लेकिन उस वक्त इन दोनों कंपनियों की बात आपस में नहीं बन पाई. संजय गांधी ने कई कार निर्माता कंपनियों से साथ काम करने की बात की लेकिन कहीं भी बात नही बन पाई. यही वजह थी कि उस वक्त मारुति का प्रोजेक्ट लटक गया.
जनता पार्टी सरकार कर दिया शटडाउन
साल 1977 में सत्ता में आई जनता पार्टी सरकार ने मारुति प्रोजेक्ट को शटडाउन कर दिया था. जांच से गुजरने के बाद मारुति लिमिटेड की जांच रिपोर्ट जस्टिस ए सी गुप्ता की अध्यक्षता में साल 1978 में सौंपी गई. उसके बाद साल 1980 में एक बार फिर इंदिरा गांधी सत्ता में लौटी लेकिन कुछ ही महीने बाद मारुति के एमडी संजय गांधी की हवाई दुर्घटना में मृत्यु हो गई. इस घटना के लगभग एक साल बाद भारत की केंद्र सरकार ने मारुति लिमिटेड को क्षति से बचाने के लिए, मारुति उद्योग लिमिटेड का सहारा लिया. जिसकी स्थापना उसी वर्ष हुई थी.
साल 1982 में मारुति उद्योग लिमिटेड और जापान की सुजुकी के बीच एक लाइसेंस और संयुक्त उद्यम समझौते (JVA) पर हस्ताक्षर किए गए. जिसके बाद दिसंबर 1983 में मारुति मोटर्स ने अपनी पहली कार मारुति 800 को लॉन्च किया. मारुति 800 के पहले ग्राहक को कार की चाभी देने के लिए इंदिरा गांधी और उनके बेटे राजीव गांधी गुड़गांव स्थित प्लांट गए थे. यहां से मारुति सुजुकी की पहली कार भारत के बाजार में उतरी. जिसे भारतीय बाजार में पहली बार 47 हजार 500 रुपये की राशि के साथ उतारा गया था. वर्तमान में मारुति-सुजुकी में सुजुकी मोटर कॉर्पोरेशन की 56.2% की हिस्सेदारी है.