Hindu Sena In Court: हिंदू सेना की ओर से अजमेर की एक सिविल अदालत में दायर मुकदमे में मांग की गई है कि ऐतिहासिक ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती दरगाह को 'भगवान श्री संकटमोचन महादेव विराजमान मंदिर' घोषित किया जाए. तर्क दिया गया है कि ये दरगाह एक शिव मंदिर के स्थल पर बनाया गया था. हिंदू सेना की इस याचिका के बाद देश भर के मुसलमानों में आक्रोश फैल गया है. विभिन्न संगठनों और व्यक्तियों ने इसे समुदाय को निशाना बनाने और सांप्रदायिक विभाजन पैदा करने का जानबूझकर किया गया प्रयास करार दिया है.
हिंदू सेना प्रमुख विष्णु गुप्ता की ओर से मंगलवार को दायर किए गए इस मुकदमे की सुनवाई बुधवार को होनी थी, लेकिन अधिकार क्षेत्र के मुद्दों पर इसे 10 अक्टूबर तक के लिए टाल दिया गया. ये गलती से अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट संख्या-3 की अदालत के बजाय मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत में दायर किया गया था. इसके बाद याचिकाकर्ता ने एक आवेदन दायर कर अनुरोध किया कि मुकदमे को उचित अदालत में स्थानांतरित किया जाए.
अदालत अभी यह तय नहीं कर पाई है कि याचिका को स्थानांतरित किया जा सकता है या यह स्वीकार्य है. याचिकाकर्ता के वकील शशि रंजन कुमार सिंह ने दावा किया कि मुकदमा प्रामाणिक स्रोतों से प्राप्त तथ्यों पर आधारित है. याचिकाकर्ता ने मांग की है कि परिसर से सूफी दरगाह को हटाया जाए, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को वाराणसी में ज्ञानवापी सर्वेक्षण की तर्ज पर स्थल पर सर्वेक्षण करने का निर्देश दिया जाए और उस स्थान पर एक शिव मंदिर का पुनर्निर्माण किया जाए.
याचिका में दावा किया गया है कि ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती मोहम्मद गौरी (12-13वीं सदी के अफगान शासक) के साथ अजमेर आए थे, जिन्होंने पृथ्वीराज चौहान की हत्या के बाद संकट मोचन महादेव मंदिर सहित कई मंदिरों को नष्ट कर दिया था. हिंदू सेना ने किताबों और कथित 'साक्ष्य' का हवाला देते हुए दावा किया कि अजमेर दरगाह के मुख्य प्रवेश द्वार की छत का डिज़ाइन हिंदू संरचना जैसा दिखता है और ऐतिहासिक अभिलेखों से पता चलता है कि इस जगह पर शिव मंदिर था.
इस घटनाक्रम पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए दरगाह के खादिमों (पुजारियों) के संगठन अंजुमन सैयद जादगान के सचिव सैयद सरवर चिश्ती ने बुधवार को कहा कि ये एक तुच्छ दावा है और ख्वाजा गरीब नवाज की पवित्र दरगाह पर हमला है. इसने हिंदू और मुस्लिम दोनों ही धर्मावलंबियों की भावनाओं को गहरी ठेस पहुंचाई है. शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के प्रति हमारी प्रतिबद्धता को कायरता नहीं समझा जाना चाहिए.
एआईएमआईएम के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने टाइम्स ऑफ इंडिया से कहा कि क्या यह वही दरगाह नहीं है जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हर साल उर्स के दौरान चादर भेजते रहे हैं? यह याचिका उपासना स्थल अधिनियम (विशेष प्रावधान), 1991 का खुला उल्लंघन है. ऐसी तुच्छ याचिकाओं के पीछे जो लोग और संगठन हैं, उन्हें भाजपा का समर्थन प्राप्त है. यह विभिन्न धर्मों से आने वाले सूफीवाद के अनुयायियों की गरिमा पर हमला है. यह देश की बहुलतावाद और संविधान पर हमला है.
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के प्रवक्ता सैयद कासिम रसूल इलियास ने कहा कि अजमेर दरगाह की स्थिति को चुनौती देने वाली याचिका हमारी दरगाहों और मस्जिदों को निशाना बनाने की एक बड़ी साजिश का हिस्सा है.