RG Kar मामले में कोर्ट का बड़ा फैसला; बंगाल सरकार की मांग को किया इंकार, CBI की अर्जी स्वीकार

RG Kar Rape and Murder Case: कोलकाता उच्च न्यायालय ने आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में हुई बलात्कार और हत्या के मामले में दोषी संजय रॉय की आजीवन कारावास की सजा को चुनौती देने वाली पश्चिम बंगाल सरकार की याचिका को खारिज कर दिया है.

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RG Kar Rape and Murder Case: कोलकाता उच्च न्यायालय ने आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में हुई बलात्कार और हत्या के मामले में दोषी संजय रॉय की आजीवन कारावास की सजा को चुनौती देने वाली पश्चिम बंगाल सरकार की याचिका को खारिज कर दिया है. राज्य सरकार ने इस फैसले के खिलाफ अपील की थी, लेकिन अदालत ने इसे अस्वीकार कर दिया. हालांकि, अदालत ने केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) की अपील को मंजूरी दी, जिसमें संजय रॉय की सजा को बढ़ाने की मांग की गई थी.

कोलकाता अदालत द्वारा सजा का फैसला

21 जनवरी को कोलकाता की एक अदालत ने संजय रॉय को 31 वर्षीय डॉक्टर के बलात्कार और हत्या का दोषी पाया था और उसे बिना पैरोल के आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी. साथ ही अदालत ने रॉय पर 50,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया और पश्चिम बंगाल सरकार को पीड़िता के परिवार को 17 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया. यह अपराध 9 अगस्त को हुआ था, जब डॉक्टर का शव अस्पताल के एक सेमिनार रूम में मिला था. 

रॉय की पहचान और अपराध का खुलासा

संजय रॉय, जो पहले कोलकाता पुलिस में एक नागरिक स्वयंसेवक थे, को हत्या के एक दिन बाद गिरफ्तार कर लिया गया था. रॉय को अतिरिक्त जिला और सत्र न्यायाधीश अनिर्बान दास ने दोषी ठहराया था. इस अपराध ने पूरे देश में आक्रोश और विरोध प्रदर्शन को जन्म दिया था. 

CBI ने जुटाए थे महत्वपूर्ण सबूत

सीबीआई ने इस मामले में कई महत्वपूर्ण सबूतों का सहारा लिया, जिसमें डीएनए और टॉक्सिकोलॉजी रिपोर्ट्स, और सीसीटीवी फुटेज शामिल थे, जो रॉय को अपराध से जोड़ते थे. रॉय ने खुद को फंसाने का दावा किया, लेकिन जैविक प्रमाण, पीड़िता के शरीर पर पाए गए चोटों और अपराध स्थल पर पाए गए रॉय के व्यक्तिगत सामान ने उसके अपराध में शामिल होने की पुष्टि की. सीबीआई की जांच में 120 से अधिक गवाहों के बयान शामिल थे. 

अपराधी साबित हुआ था संजय रॉय

अदालत ने पाया कि पीड़िता की मौत गला घोंटने और मुँह दबाने के कारण हुई थी. रॉय को भारतीय दंड संहिता की धाराओं के तहत सजा सुनाई गई, जो आजीवन कारावास से लेकर मौत की सजा तक हो सकती है. अदालत ने यह भी कहा कि इस मामले में दंड का उद्देश्य न्याय की भावना को स्थापित करना था और दोषी को कड़ी सजा मिलनी चाहिए.