menu-icon
India Daily

हाईकोर्ट ने पादरी को गांव से दूर दफनाने का दिया आदेश, 20 दिन से रखी है लाश

पीठ ने कहा कि पादरी का शव उसे दफनाने के स्थान को लेकर विवाद के कारण सात जनवरी से शवगृह में रखा है और इसी बात को ध्यान में रखते हुए वह इस मामले को वृहद पीठ को नहीं भेजेगी.

auth-image
Edited By: Kamal Kumar Mishra
Court Order
Courtesy: x

छत्तीसगढ़: 27 जनवरी (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने उस पादरी को ईसाइयों के लिए निर्दिष्ट स्थान पर दफनाने का निर्देश देते हुए सोमवार को खंडित फैसला सुनाया जिसका शव सात जनवरी से छत्तीसगढ़ के एक शवगृह में रखा है.

न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना ने कहा कि धर्मांतरित ईसाई को परिवार की निजी कृषि भूमि पर दफनाया जाना चाहिए लेकिन न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा ने कहा कि शव को छत्तीसगढ़ में गांव से दूर एक निर्दिष्ट स्थान पर दफनाया जाना चाहिए.

पीठ ने कहा कि पादरी का शव उसे दफनाने के स्थान को लेकर विवाद के कारण सात जनवरी से शवगृह में रखा है और इसी बात को ध्यान में रखते हुए वह इस मामले को वृहद पीठ को नहीं भेजेगी. उसने निर्देश दिया कि शव को उस निर्दिष्ट स्थान पर दफनाया जाए, जो राज्य के छिंदवाड़ा गांव से 20 किलोमीटर दूर है.

पीठ ने कहा कि वह मामले के विशिष्ट तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए यह आदेश पारित कर रही है और उसने राज्य सरकार को पूरी सुरक्षा मुहैया कराने का निर्देश दिया ताकि कोई अप्रिय घटना न हो.

उच्चतम न्यायालय ने 22 जनवरी को कहा था कि उसे पादरी के शव को दफनाने के मामले में सौहार्दपूर्ण समाधान निकलने और पादरी का सम्मानजनक तरीके से अंतिम संस्कार किये जाने की उम्मीद है. न्यायालय ने पादरी के बेटे की याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.

पीठ ने रमेश बघेल नामक व्यक्ति की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह फैसला सुनाया. याचिकाकर्ता ने छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के एक आदेश को चुनौती दी है. उच्च न्यायालय ने रमेश के पादरी पिता के शव को गांव के कब्रिस्तान में ईसाइयों को दफनाने के लिए निर्दिष्ट क्षेत्र में दफनाने के अनुरोध संबंधी उसकी याचिका का निपटारा कर दिया था.

इससे पहले, उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि उसे यह देखकर दुख हुआ कि छत्तीसगढ़ के एक गांव में रहने वाले व्यक्ति को अपने पिता के शव को ईसाई रीति-रिवाजों के अनुसार दफनाने के लिए शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाना पड़ा क्योंकि अधिकारी इस मुद्दे को सुलझाने में विफल रहे.

बघेल ने दावा किया था कि छिंदवाड़ा गांव में एक कब्रिस्तान है जिसे ग्राम पंचायत ने शवों को दफनाने और अंतिम संस्कार के लिए मौखिक रूप से आवंटित किया है.

कब्रिस्तान में आदिवासियों के दफनाने, हिंदू धर्म के लोगों को दफनाने या उनका दाह संस्कार करने के अलावा ईसाई समुदाय के लोगों के लिए अलग-अलग क्षेत्र निर्धारित किए गए थे.

याचिका में कहा गया कि याचिकाकर्ता और उसके परिवार के सदस्य पादरी के पार्थिव शरीर को कब्रिस्तान में ईसाई लोगों के लिए निर्दिष्ट क्षेत्र में दफनाना चाहते थे.

इसमें कहा गया है, ‘‘यह बात सुनकर कुछ ग्रामीणों ने इसका कड़ा विरोध किया और याचिकाकर्ता एवं उसके परिवार को इस भूमि पर याचिकाकर्ता के पिता को दफनाने पर गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी दी. वे याचिकाकर्ता के परिवार को उसके निजी स्वामित्व वाली भूमि पर शव को दफनाने की भी अनुमति नहीं दे रहे हैं.’’

बघेल के अनुसार, ग्रामीणों का कहना है कि उनके गांव में किसी ईसाई को दफनाया नहीं जा सकता, चाहे वह गांव का कब्रिस्तान हो या निजी जमीन.

उन्होंने कहा, ‘‘जब गांव वाले हिंसक हो गए, तो याचिकाकर्ता के परिवार ने पुलिस को सूचना दी, जिसके बाद 30-35 पुलिसकर्मी गांव पहुंचे. पुलिस ने परिवार पर शव को गांव से बाहर ले जाने का दबाव भी बनाया.’’

(इस खबर को इंडिया डेली लाइव की टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की हुई है)