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पत्नी की सहमति के बिना उसके साथ अप्राकृतिक यौन संबंध बनाना अपराध नहीं-HC

पीठ के न्यायाधीश ने कहा कि यदि पत्नी की आयु 15 वर्ष से कम नहीं है तो पति द्वारा अपनी पत्नी के साथ किया गया कोई भी यौन संबंध या यौन कृत्य बलात्कार नहीं कहा जा सकता, क्योंकि अप्राकृतिक कृत्य के लिए पत्नी की सहमति का अभाव अपना महत्व खो देता है.

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छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने बलात्कार और अन्य आरोपों में दोषी ठहराए गए जगदलपुर निवासी को बरी करते हुए कहा कि एक पुरुष द्वारा अपनी वयस्क पत्नी के साथ अप्राकृतिक कृत्य सहित यौन संबंध, चाहे वह उसकी सहमति के बिना भी क्यों न हो, अपराध नहीं माना जा सकता. न्यायमूर्ति नरेन्द्र कुमार व्यास ने उस व्यक्ति को बरी करते हुए ये टिप्पणियां कीं, जिसे 2017 में गिरफ्तार किया गया था और बस्तर जिले की एक निचली अदालत ने उसे पत्नी की मौत के बाद भारतीय दंड संहिता की धाराओं 376 (बलात्कार), 377 (अप्राकृतिक यौन संबंध) और 304 (गैर इरादतन हत्या) के तहत दोषी ठहराया था. 

एकल पीठ के न्यायाधीश ने कहा कि यदि पत्नी की आयु 15 वर्ष से कम नहीं है तो पति द्वारा अपनी पत्नी के साथ किया गया कोई भी यौन संबंध या यौन कृत्य बलात्कार नहीं कहा जा सकता, क्योंकि अप्राकृतिक कृत्य के लिए पत्नी की सहमति का अभाव अपना महत्व खो देता है. अभियोजन पक्ष के अनुसार, बस्तर जिले के मुख्यालय जगदलपुर के निवासी इस व्यक्ति को 11 दिसंबर, 2017 को एक कार्यकारी मजिस्ट्रेट के समक्ष दर्ज कराए गए उसकी पत्नी के बयान के आधार पर गिरफ्तार किया गया था, जिसके बाद उसी दिन उसकी सरकारी अस्पताल में मौत हो गई थी. 

क्या है पूरा मामला? 

11 दिसंबर 2017 को महिला ने दर्द की शिकायत की और अपने परिवार के सदस्यों को बताया कि उसके पति ने उसकी इच्छा के विरुद्ध उसके साथ अप्राकृतिक यौन संबंध बनाए. पीड़िता ने मजिस्ट्रेट के समक्ष मृत्यु पूर्व बयान दर्ज कराया जिसमें उसने कहा कि उसके पति द्वारा "जबरन यौन संबंध" बनाने के कारण वह बीमार हो गई. 11 फरवरी, 2019 को जगदलपुर के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश (फास्ट ट्रैक कोर्ट या एफटीसी) ने उस व्यक्ति को आईपीसी की धारा 377, 376 और 304 के तहत दोषी ठहराया और उसे 10 साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई. बाद में उस व्यक्ति ने निचली अदालत के फैसले को चुनौती देते हुए बिलासपुर उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया.

सुनवाई के दौरान, व्यक्ति के वकील ने दलील दी कि अपीलकर्ता के खिलाफ रिकॉर्ड में कोई कानूनी रूप से स्वीकार्य साक्ष्य उपलब्ध नहीं है और केवल पीड़िता के बयान के आधार पर उसके मुवक्किल को कई अपराधों के लिए दोषी ठहराया गया है.  उन्होंने तर्क दिया कि निचली अदालत ने दो गवाहों के बयानों पर विचार नहीं किया, जिन्होंने जगदलपुर की अदालत को बताया था कि महिला अपने पहले प्रसव के तुरंत बाद बवासीर से पीड़ित थी, जिसके कारण उसे रक्तस्राव होता था और पेट में दर्द होता था. उन्होंने मृत्युपूर्व दिए गए बयान पर ट्रायल कोर्ट के भरोसे को "संदिग्ध" बताया. 

उच्च न्यायालय ने क्या कहा? 

उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा, आईपीसी की धारा 375, 376 और 377 के अवलोकन से यह स्पष्ट है कि धारा 375 आईपीसी की संशोधित परिभाषा के मद्देनजर, पति और पत्नी के बीच आईपीसी की धारा 377 के तहत अपराध का कोई स्थान नहीं है और इसलिए बलात्कार का मामला नहीं बनाया जा सकता है.