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हरियाणा में कुछ भी कर ले कांग्रेस, BJP बचा लेगी सरकार; आंकड़ों से जानें विपक्ष का खेल कैसे हुआ फेल

BJP Confident Saving Saini Government: हरियाणा में मार्च में भाजपा सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था, जो गिर गया था. टेक्निकल रूप से 6 महीने के बाद ही अविश्वास प्रस्ताव पेश किया जा सकता है. फिलहाल, जजपा और निर्दलीय विधायकों के बारे में स्थिति स्पष्ट नहीं है. इसलिए कांग्रेस अविश्वास प्रस्ताव के बारे में सोच तो रही है, लेकिन कुछ कर नहीं पा रही है. ऐसा इसलिए भी क्योंकि कांग्रेस का ध्यान फिलहाल लोकसभा चुनावों पर है.

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Edited By: India Daily Live
Haryana political crisis Why Haryana BJP confident saving Naib Singh Saini government

BJP Confident Saving Saini Government: हरियाणा में भाजपा सरकार के लिए स्थितियां और बिगड़ने वाली हैं? ये सवाल इसलिए भी क्योंकि तीन निर्दलीय विधायकों ने अपना समर्थन वापस ले लिया है, जिसके बाद जजपा (जननायक जनता पार्टी) की ओर से कहा गया है कि वो कांग्रेस की ओऱ से भाजपा सरकार को गिराने के किसी भी कदम का समर्थन करेगी. 

ये पूरा राजनीतिक घटनाक्रम ऐसे वक्त में आया है, जब 25 मई को हरियाणा की सभी 10 लोकसभा सीटों पर वोटिंग होनी है. साथ ही इस साल के आखिर में राज्य में विधानसभा चुनाव भी होने हैं. इन तमाम आशंकाओं और सवालों के बीच भाजपा नेताओं का कहना है कि मुख्यमंत्री नायब सैनी के नेतृत्व वाली उनकी सरकार को किसी तरह का कोई खतरा नहीं है. अब सवाल ये कि आखिर भाजपा के नेता इतने आत्मविश्वास में क्यों दिख रहे हैं. आइए, समझते हैं.

मुश्किल लग रहा है अविश्वास प्रस्ताव

हरियाणा में भूपिंदर सिंह हुड्डा के नेतृत्व वाली कांग्रेस ने हाल ही में यानी 13 मार्च को नायब सैनी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया था. मुख्यमंत्री सैनी ने ध्वनि मत से अविश्वास प्रस्ताव को जीत लिया था.

जननायक जनता पार्टी के 10 विधायकों के पूर्व की खट्टर सरकार से अलग हो जाने के बाद भाजपा के 41 विधायक थे. साथ ही 6 निर्दलीय विधायक और हरियाणा लोकहित पार्टी (HLP) के एक विधायक ने भाजपा को समर्थन दिया था, जिससे 90 सदस्यों वाली विधानसभा में नायब सैनी सरकार के समर्थन में विधायकों की संख्या 48 हो गई थी.

कांग्रेस के विधानसभा में 30 विधायक थे. इनेलो के एक विधायक और एक निर्दलीय विधायक बलराज कुंडू अविश्वास प्रस्ताव के दौरान वोटिंग से दूर रहे. जनता जननायक पार्टी की ओर से व्हिप जारी करने के बाद भी उसके किसी भी विधायक ने वोट नहीं दिया, जिससे नायब सिंह सैनी सरकार ने आसानी से अविश्वास प्रस्ताव जीत लिया.

नियमों के मुताबिक, अगर जनवरी में अविश्वास प्रस्ताव लाया जाता है, तो फिर छह महीने बाद यानी जून के बाद ही दोबारा अविश्वास प्रस्ताव लाया जा सकता है. मतलब मार्च में नायब सैनी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था, इस लिहाज से सितंबर के बाद यानी अक्टूबर में ही सैनी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया जा सकता है. 

इस बारे में पूछे जाने पर भूपिंदर सिंह हुड्डा ने कहा कि नियम के मुताबिक फिलहाल अविश्वास प्रस्ताव नहीं लाया जा सकता है, लेकिन मुख्यमंत्री को नैतिकता के आधार पर इस्तीफा देना चाहिए, क्योंकि उनकी सरकार बहुमत खो चुकी है.

मार्च के मुकाबले अब की क्या है स्थिति?

फिलहाल, 90 सदस्यों वाली विधानसभा में विधायकों की संख्या घटकर 88 हो गई है, क्योंकि मनोहर लाल खट्टर और रणजीत सिंह करनाल और रानिया के अपने-अपने विधानसभा क्षेत्रों से इस्तीफा देकर करनाल और हिसार से भाजपा के लोकसभा उम्मीदवार बन गए हैं.

मौजूदा ताकत के हिसाब से भाजपा को बहुमत के लिए 45 वोटों की जरूरत है. खट्टर के इस्तीफे के बाद भाजपा के विधायकों की संख्या 40 विधायक हैं. साथ ही दो निर्दलीय और एचएलपी विधायक का समर्थन है, जिससे उसकी कुल संख्या 43 हो गई है. भाजपा ने जेजेपी के 10 विधायकों में से तीन के समर्थन का भी दावा किया है, जिन्होंने खुद को दुष्यंत चौटाला से दूर कर लिया है. 

तीनों को मिलाकर बीजेपी सरकार के पास 46 विधायकों का समर्थन हो जाता है, जो सामान्य बहुमत से सिर्फ 1 ज्यादा है. अगर वे दलबदल के लिए अयोग्य घोषित भी हो जाते हैं, तो भी सदन की ताकत घटकर 85 रह जाएगी और बहुमत का आंकड़ा 43 हो जाएगा. बीजेपी के पास अभी 43 विधायकों का समर्थन है.

क्या विपक्ष सरकार बनाने का दावा ठोक सकता है?

सरकार बनाने का दावा पेश करने के लिए विपक्ष को पहले राज्यपाल से मिलने का समय लेना होगा. सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी होने के कारण कांग्रेस को ये करना ही होगा, लेकिन अभी तक उसने ऐसा कोई कदम नहीं उठाया है. बुधवार को कांग्रेस को ऐसा कदम उठाने पर अपना समर्थन देते हुए दुष्यंत चौटाला ने कहा कि सरकार को गिराने के लिए कदम उठाना विपक्ष के नेता हुड्डा पर निर्भर है.

उधर, हुडा ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा कि दुष्यंत भी पहल कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार में साढ़े चार साल रहने के बाद वे ये बातें कह रहे हैं. यदि वे भाजपा की बी-टीम नहीं हैं, तो उन्हें राज्यपाल से मिलना चाहिए और अपने 10 विधायकों की परेड करानी चाहिए और फिर मैं विधायक भारत भूषण बत्रा के नेतृत्व में अपने 10 विधायकों को राजभवन भेजूंगा.

मतलब, हर हाल में भाजपा सरकार बिलकुल सेफ है, कैसे?

भले ही कांग्रेस और जेजेपी दोनों राज्यपाल से मिलें और दावा पेश करने के लिए अपने-अपने विधायकों की परेड कराएं, लेकिन राज्यपाल क्या करेंगे, इसकी कोई गारंटी नहीं है. भले ही राज्यपाल राज्य सरकार को एक निश्चित समय अवधि के भीतर अपना बहुमत साबित करने का निर्देश देते हैं, फिर भी संभावना अधिक है कि जेजेपी के कुछ विधायक या तो दल बदल देंगे या मतदान से अनुपस्थित रहेंगे. दूसरे शब्दों में कहें तो बीजेपी फिर से बहुमत साबित करने में कामयाब हो सकती है.

कांग्रेस का पूरा ध्यान अब 25 मई को होने वाले लोकसभा चुनावों पर है. वर्तमान में सभी 10 सीटों पर भाजपा का कब्जा है और पार्टी इन सभी 10 सीटों को बरकरार रखने के लिए धुंआधार प्रचार कर रही है.

बीजेपी इस पूरे घटनाक्रम को कैसे देख रही है?

हरियाणा भाजपा के नेताओं को भरोसा है कि उनकी सरकार 'बरकरार' रहने वाली है और अगर जरूरत पड़ी तो अन्य विधायक भी उनका समर्थन करेंगे. खट्टर ने मीडियाकर्मियों से कहा कि कांग्रेस और जेजेपी को हमारी चिंता नहीं करनी चाहिए. इसके बजाय, उन्हें पहले अपना घर व्यवस्थित करना चाहिए. हमारी सरकार को कोई खतरा नहीं है. खट्टर ने कहा कि हम अगले विधानसभा चुनाव में पूर्ण बहुमत हासिल करेंगे, ताकि ऐसी स्थिति फिर कभी पैदा न हो.

विधानसभा अध्यक्ष का अविश्वास प्रस्ताव पर क्या है कहना?

विधानसभा अध्यक्ष ज्ञान चंद गुप्ता ने कहा कि आधिकारिक तौर पर मुझे किसी भी विधायक से कोई सूचना नहीं मिली है. मीडिया में ही ऐसी खबरें आ रही हैं कि तीन निर्दलीय विधायकों ने कांग्रेस को समर्थन देने का फैसला किया है. आमतौर पर, जब अविश्वास प्रस्ताव लाया जाता है, तो अगला प्रस्ताव केवल छह महीने के बाद ही पेश किया जा सकता है, हालांकि राज्यपाल संवैधानिक प्राधिकारी के रूप में जरूरत पड़ने पर कोई भी निर्णय ले सकते हैं. अगर वे हमें कोई निर्देश देंगे तो हम उसका पालन करेंगे.

भाजपा की ओर से खट्टर की जगह सैनी को लाने और सरकार में जगह नहीं मिलने के बाद से नाराज पूर्व गृह मंत्री अनिल विज ने कहा कि मुझे दुख है कि निर्दलीय विधायकों ने आज अपना समर्थन वापस ले लिया है, लेकिन ये हुडा साहब की इच्छा है, जो कभी पूरा नहीं होगा, क्योंकि हमारे तरकश में बहुत सारे तीर हैं.

लेकिन ये अभी भी भाजपा के लिए नुकसानदेह क्यों है?

भले ही भाजपा सरकार बच जाए, लेकिन ये भी तथ्य है कि विधायक भाजपा सरकार से अपना समर्थन कांग्रेस के लिए छोड़ रहे हैं. ऐसे में जनता यानी वोटर्स में ये धारणा बन सकती है कि झुकाव कांग्रेस की ओर बढ़ रहा है.