हरियाणा में 'दलित फैक्टर' संभालने में जुटी JJP, क्या चंद्रशेखर आजाद बदल देंगे दुष्यंत चौटाला की किस्मत? समझिए सियासी गणित

हरियाणा में दलित और जाट गठजोड़ अगर अस्तित्व में आता है तो सूबे की सियासत में दुष्यंत चौटाला और मजबूत बनकर उभर सकते हैं. भारतीय जनता पार्टी से दोस्ती तोड़ने के बाद अब नया गठजोड़, उन्हें फायदा मिल सकता है. हरियाणा में दलित आबादी 21 प्रतिशत है. अगर यह वोट बैंक, दुष्यंत चौटाला के साथ आता है तो वे एक बार फिर से किंग मेकर की भूमिका में आ सकते हैं.

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हरियाणा की सियासत में नया सियासी गठजोड़ चर्चा में है. दुष्यंत चौटाला के नेतृत्व वाली जन नायक जनता पार्टी (JJP) और भीम आर्मी चीफ चंद्रशेखर आजाद के नेतृत्व वाली आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) के बीच विधानसभा चुनावों में गठबंधन हो गया है. हरियाणा में 21 प्रतिशत दलित आबादी रहती है. इस नए सियासी गठजोड़ को जाट-दलितों का गठजोड़ कहा जा रहा है. अगर यह गठबंधन कामयाब रहता है तो दुष्यंत चौटाला की सियासत चमक सकती है. भीम आर्मी, भले ही पहली बार हरियाणा की सियासत में ताल ठोक रही है लेकिन उसके बढ़ते प्रभाव से इनकार भी नहीं किया जा सकता है. 

उत्तर प्रदेश की नगीना लोकसभा सीट से जीतकर आए चंद्रशेकर आजाद, दलित समुदाय के बीच तेजी से लोकप्रिय हो रहे हैं. उनका क्रेज, पश्चिमी उत्तर प्रदेश से लकेर हरियाणा, पंजाब और बिहार तक है. ऐसे में बहुजन राजनीति के नए चेहरे हैं, इसमें कोई शक नहीं है. जन नायक जनता पार्टी हरियाणा की 90 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ रही है, वहीं आजाद समाज पार्टी 20 सीटों पर चुनावी समर में उतरेगी.

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दुष्यंत चौटाला और चंद्रशेखर आजाद, दोनों युवा हैं, दोनों हमउम्र भी हैं. उन्होंने वादा किया है कि यह गठबंधन अगले 40 से 50 साल तक चलेगा. हरियाणा में दलितों और किसानों के लिए मिलकर काम करने का उन्होंने वादा किया है. दुष्यंत चौटाला, जाट नेता हैं. हरियाणा में जाट आबादी करीब 25 प्रतिशत है. 

परिवार के अंबेडकर प्रेम से राजनीति साध रहे दुष्यंत चौटाला

दुष्यंत चौटाला का सियासी कुनबा, दलित वोटरों को साथ लेकर चला है. खुद दुष्यंत चौटाला मानते हैं कि जब चौधरी कांशीराम ने दिल्ली में विरोध प्रदर्शन किया था तब चौधरी देवी लाल सबसे पहले आए और उनका समर्थन किया. उस समय कांशीराम ने मांग की थी कि बी आर अंबेडकर को भारत रत्न से सम्मानित किया जाए. जब ​​देवी लाल उप प्रधानमंत्री बने, तो बी आर अंबेडकर को न केवल भारत रत्न से सम्मानित किया गया, बल्कि संसद में उनकी प्रतिमा भी लगाई गई.

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दुष्यंत चौटाला ने चौधरी देवी लाल का जिक्र करते हुए कहा कि उन्होंने जब सीएम पद की कमान संभाली थी तब उन्होंने एससी चौपालें बनाई थीं. हरियाणा में ये चौपाल आज भी प्रासंगिक है. उन्होंने उसके विकास का काम किया था. अब दुष्यंत चौटाला, नए सिरे से जाट-दलित समीकरण साध रहे हैं.

क्या फिर किंग मेकर बनेंगे दुष्यंत चौटाला?

दुष्यंत चौटाला, राजनीति के नए प्रयोग थे. साल 2019 के विधानसभा चुनावों में वे मजबूत आवाज बनकर उभरे थे. हरियाणा में त्रिशंकु विधानसभा को सरकार तक पहुंचाने का श्रेय भी उन्हें जाता है. उनके पास 10 सीटें थीं, जिसके बाद दुष्यंत चौटाला किंग मेकर बन गए थे. दुष्ंयत चौटाला, किंग मेकर बन गए थे. बीजेपी के साथ होने और अलग होने, दोनों वजहों से दुष्यंत चौटाला की लोकप्रियता प्रभावित हुई है, ऐसे में नए सियासी गठजोड़ को लेकर वे आशावान हैं.

विधायक छोड़ बैठे साथ, नए चेहरे कहां से लाएंगे?

दुष्यंत चौटाला के 10 में से 7 विधायकों ने बीजेपी छोड़ दी है. एक विधायक कांग्रेस में शामिल हुए, दो बीजेपी में जाने के लिए तैयार हैं. हरियाणा की 26 प्रतिशत आबादी का यह नया प्रयोग, कितना असरदार होगा, यह देखने वाली बात होगी. साल 2019 के विधानसभा चुनाव में JJP ने अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित 4 आरक्षित सीटें जीत ली थीं. 

नए गठजोड़ का जवाब है आजाद-दुष्यंत का मेल

अभय चौटाला की इंडियन नेशनल लोक दल (INLD) से बागी होकर ही दुष्यंत चौटाला ने जन नायक जनता पार्टी बनाई थी. अब इसी INLD और बहुजन समाज पार्टी हो सकता है. नए गठजोड़ को इसी का जवाब माना जा रहा है. मायावती बहुजन आंदोलन का अतीत हैं, इसमें कोई शक नहीं हैं कि चंद्रशेखर आजाद बहुजन आंदोलन के वर्तमान हैं.

क्या दलित जाएंगे चंद्रशेखर के साथ?

हरियाणा में दलित एकजुट होकर वोटिंग नहीं करते हैं. ऐसा इतिहास रहा है. बसपा, साल 1998 से यहां चुनाव लड़ रही है लेकिन प्रमुख पार्टी नहीं बन पाई, जबकि दलित आबादी 21 प्रतिशत के करीब है. साल 1998 में ही बसपा और INLD का गठबंधन हुआ था. साल 2009 में बसपा ने कुलदीप बिश्नोई की पार्टी हरियाणा जनहित कांग्रेस के साथ गठबंधन किया था. इस गठबंधन की उम्र बहुत कम थी. कांग्रेस और बसपा ने 2019 के लोकसभा चुनाव में गठबंधन में जाने की बात की लेकिन बनी नहीं. बसपा फिर आईएनएलडी के साथ चली गई लेकिन चुनाव से पहले यह गठबंधन टूट गया.

बसपा ने नया गठबंधन, लोकतंत्र सुरक्षा पार्टी के साथ चुनाव लड़ा. दोनों दलों को कुल मिलाकर लगभग 6 प्रतिशत वोट मिले. बसपा के खाते में 3.6 प्रतिशत वोट मिले. बसपा ने 2019 में ही जेजेपी के साथ गठबंधन किया था लेकिन यह भी नहीं चला. ऐसे में अब दुष्यंत चौटाला ने बसपा का मोह छोड़कर, उभरती आजाद समाज पार्टी के रिश्ता जोड़ लिया है. 

क्या दुष्यंत चौटाला, आजाद तोड़ पाएंगे बीजेपी-कांग्रेस का वर्चस्व?

हरियाणा में आरक्षित वोट पर कांग्रेस और बीजेपी का दबदबा रहा है. साल 2019 के विधानसभा चुनाव में हरियाणा की 17 अनुसूचित सीटों में से बीजेपी ने 5 सीटों पर और कांग्रेस ने 7 सीटों पर जीत हासिल की थी, वहीं जेजेपी ने 4 सीटें और निर्दलीय उम्मीदवार ने 1 सीट जीत ली थी. यहां कांग्रेस और बीजेपी का दबदबा है, चंद्रशेखर आजाद और दुष्यंत चौटाला के सिर पर जिम्मेदारी ये है कैसे भी करके, इन पार्टियों के दबदबे को खत्म करें.

किन मुद्दों पर भारी पड़ सकता है यह गठजोड़?

विपक्ष, यह बात फैलाने में कामयाब रहा है कि बीजेपी सरकार, आरक्षण विरोधी है. इसका असर, लोकसभा चुनावों में भी नजर आया, बीजेपी पूर्ण बहुमत से दूर होकर, सहयोगियों के भरोसे सरकार चला रही है. अंबाला और सिरसा लोकसभा सीट कांग्रेस जीत ले गई. बीजेपी से किसान नाराज हैं. पहलवान नाराज हैं. सरकार के प्रति बेरोजगारी को लेकर भी गुस्सा है. दुष्यंत चौटाला और चंद्रशेखर आजाद, दोनों नए चेहरे हैं इसलिए  दोनों, युवाओं में खासे लोकप्रिय हैं. देखने वाली बात ये है कि हरियाणा की जनता, इस नए गठजोड़ को अपना समर्थन देती है या नहीं.