Haryana Assembly Elections 2024: जिस राज्य से राजनीति में 'आया राम, गया राम' की कहावत शुरू हुई थी, वहां दलबदलुओं ने राजनीतिक दलों के लिए सिरदर्द बढ़ा दिया है. फिलहाल, राजनीतिक पार्टियां अपने उम्मीदवारों की सूची तैयार करने में जुटी हैं. इस बीच टिकट के लिए उम्मीदवारों में होड़ भी मची हुई है, ऐसे में हरियाणा में दलबदलू नेताओं की तादात बढ़ने की पूरी उम्मीद है. पहले ही सत्तारूढ़ भाजपा और विपक्षी कांग्रेस के साथ-साथ जननायक जनता पार्टी यानी जेजेपी में बड़ी संख्या में दलबदल देखने को मिल चुका है.
हरियाणा में कई राजनीतिक नेता अपनी पार्टी की ओर से 'तवज्जो' न मिलने और टिकट न मिलने की आशंका को लेकर दलबदल की फिराक में तैयार बैठे हैं. इसका ताजा उदाहरण कुछ महीने पहले हुई लोकसभा चुनाव है, जब कुछ राजनेताओं ने अपनी पार्टी से टिकट न मिलने के बाद दूसरी राजनीतिक पार्टी को ज्वाइन कर लिया था. इनमें से कुछ नेताओं को टिकट भी मिल गया था. अब एक अक्टूबर को होने वाले हरियाणा विधानसभा चुनाव को देखते हुए कुछ नेता अपनी पुरानी पार्टी को छोड़ दूसरी पार्टी ज्वाइन करने और टिकट पाने की फिराक में हैं.
जून में कांग्रेस से 45 साल पुराना नाता खत्म करने वाली तोशाम की विधायक किरण चौधरी को भाजपा ने राज्य की खाली हुई राज्यसभा सीट के लिए उम्मीदवार बनाया. वहीं, बुधवार को दुष्यंत चौटाला की जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) के शाहबाद विधायक राम करण काला कांग्रेस में शामिल हो गए.
किरण चौधरी ने भाजपा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी और कई वरिष्ठ भाजपा नेताओं के साथ विधानसभा सचिवालय में अपना नॉमिनेशन दाखिल किया, जिसके बाद मुख्यमंत्री सैनी ने घोषणा की कि जेजेपी के दो बागी (नरवाना विधायक रामनिवास सुरजाखेड़ा और बरवाला विधायक जोगी राम सिहाग) चौधरी के नामांकन का समर्थन कर रहे हैं, जिससे उनके निर्विरोध जीतने की उम्मीद है. सुरजाखेड़ा और सिहाग दोनों के आने वाले दिनों में सत्तारूढ़ भाजपा में शामिल होने की संभावना है.
दलबदलने वाले नेताओं के कारण सबसे ज्यादा नुकसान जननायक जनता पार्टी को हुआ है. काला, सुरजाखेड़ा और सिहाग के भाजपा में शामिल होने के अलावा चार अन्य बागी (नारनौंद विधायक राम कुमार गौतम, उकलाना विधायक अनूप धानक, टोहाना विधायक देवेंद्र सिंह बबली और गुहला विधायक ईश्वर सिंह) ने अभी तक अपने अगले कदम की घोषणा नहीं की है.
टोहाना विधायक देवेंद्र सिंह बबली ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा कि मैं अपने समर्थकों की एक बैठक करूंगी और जल्द ही अपनी भविष्य की योजनाओं की घोषणा करूंगी. आज की तारीख में मैं अपने निर्वाचन क्षेत्र में लगातार काम कर रही हूं. हालांकि गौतम और धानक ने किरण चौधरी की राज्यसभा उम्मीदवारी का समर्थन किया है, लेकिन यह अभी देखा जाना बाकी है कि वे विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा में शामिल होंगे या नहीं.
लोकसभा चुनावों के दौरान भाजपा ने दलबदलुओं पर भारी दांव लगाया था. उद्योगपति और पूर्व कांग्रेस सांसद नवीन जिंदल मार्च में पार्टी में शामिल होने के बाद कुरुक्षेत्र से जीते. एक अन्य पूर्व कांग्रेस सांसद अशोक तंवर जनवरी में पार्टी में शामिल हुए, लेकिन सिरसा से हार गए. पूर्व निर्दलीय विधायक रंजीत चौटाला, जो पहले ओपी चौटाला के नेतृत्व वाली इंडियन नेशनल लोकदल (आईएनएलडी) में थे, मार्च में भाजपा में शामिल हुए, लेकिन हिसार से हार गए.
सत्तारूढ़ भाजपा भी दलबदल से अछूती नहीं रही है. पूर्व केंद्रीय मंत्री बीरेंद्र सिंह और उनके बेटे, हिसार के पूर्व सांसद बृजेंद्र सिंह अप्रैल में कांग्रेस में शामिल हो गए. बृजेंद्र हिसार लोकसभा सीट के लिए सबसे आगे चल रहे थे, लेकिन कांग्रेस ने जय प्रकाश को चुना, जिन्होंने भाजपा के रंजीत चौटाला को हराया. अब बृजेंद्र को कांग्रेस विधानसभा चुनाव में उतार सकती है.
भाजपा को रंजीत चौटाला की संभावित बगावत से भी जूझना पड़ रहा है, जिन्होंने 2019 से भाजपा में शामिल होने तक निर्दलीय विधायक के रूप में भाजपा का समर्थन किया था और पूर्व सीएम मनोहर लाल खट्टर और सैनी के कार्यकाल में मंत्री रह चुके हैं. मंगलवार को रंजीत ने कहा कि वे अपनी रानिया विधानसभा सीट से चुनाव लड़ेंगे, चाहे उन्हें भाजपा का टिकट मिले या न मिले. उन्होंने कहा कि मैं चौधरी देवी लाल का बेटा हूं. अगर भाजपा मुझे टिकट देती है, तो ठीक है. नहीं तो मैं निश्चित रूप से रानिया से चुनाव लड़ूंगा. भाजपा अपना खुद देख ले.
हिसार विधानसभा सीट पर भाजपा को अपने मौजूदा विधायक और हाल ही में पार्टी छोड़कर आए विधायक के बीच संतुलन बनाना है. नवीन जिंदल की मां सावित्री जिंदल भी मार्च में कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो गई थीं. हालांकि 2014 से इस सीट पर भाजपा के कमल गुप्ता काबिज हैं, लेकिन हिसार जिंदल परिवार की परंपरागत सीट रही है. परिवार के मुखिया ओपी जिंदल ने 1991, 2000 और 2005 में यह सीट जीती थी, जबकि सावित्री ने 2009 में जीत दर्ज की थी, लेकिन 2014 में गुप्ता से हार गईं. अब इस सीट पर भाजपा को फैसला लेना है कि आखिर टिकट किसे दिया जाए. सावित्री से कड़ी प्रतिस्पर्धा की आशंका के चलते गुप्ता हाल ही में केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान से मिलने नई दिल्ली गए थे, जो हरियाणा विधानसभा चुनावों के लिए भाजपा के प्रभारी हैं.
इस साल मई में तीन निर्दलीय विधायकों (दादरी से सोमबीर सांगवान, पुंडरी से रणधीर सिंह गोलेन और नीलोखेड़ी से धर्मपाल गोंडर) ने भाजपा से अपना समर्थन वापस ले लिया था और कांग्रेस को अपना समर्थन देने की घोषणा की. 2019 में, तीनों को भाजपा ने टिकट देने से मना कर दिया था, लेकिन उन्होंने निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. इस बार, वे अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्रों के लिए कांग्रेस से टिकट की उम्मीद कर रहे हैं. कांग्रेस के रोहतक सांसद दीपेंद्र हुड्डा ने कहा कि पिछले कुछ महीनों में 45 से अधिक मौजूदा और पूर्व विधायक पार्टी में शामिल हुए हैं.
जैसे-जैसे नामांकन की अंतिम तारीख यानी 12 सितंबर नजदीक आ रहा है और राजनीतिक पार्टियां उम्मीदवारों के नाम जारी करना शुरू कर रही हैं, वैसे-वैसे दलबदलू नेताओं की लिस्ट के और बढ़ने की उम्मीद है.