गुजरात सरकार ने 2002 के गोधरा दंगों के गवाहों, वकीलों और जजों को दी गई सुरक्षा वापस ले ली है. सुप्रीम कोर्ट ने इन लोगों को सुरक्षा प्रदान की थी, लेकिन अब इसे वापस ले लिया गया है.
इन लोगों में नरोदा पाटिया नरसंहार मामले की पूर्व मुख्य सत्र न्यायाधीश ज्योत्सना याग्निक भी शामिल हैं. याग्निक ने इस मामले में 32 आरोपियों को दोषी ठहराया था. याग्निक को कथित तौर पर धमकियां मिलती थीं, इसलिए उन्हें दो स्तर की सुरक्षा दी गई थी.
सरकार के इस फैसले पर कई लोगों ने असहमति जताई है. गुलबर्ग सोसायटी हत्याकांड के मुख्य गवाह इम्तियाज खान पठान ने कहा, "अगर हमें कुछ हो गया तो कौन जिम्मेदार होगा?अगर पुलिस सुरक्षा हटा दी जाए तो फिर हमें अपनी सुरक्षा के लिए हथियारों का लाइसेंस दिया जाना चाहिए.”
पठान ने कहा कि अधिकांश मामले अदालतों में लंबित हैं और अधिकांश आरोपी जमानत पर हैं. इसलिए, पुलिस सुरक्षा वापस लेना अनुचित है. कुछ हुआ तो कोर्ट, एसआईटी या पुलिस में कौन जिम्मेदार होगा.
दीपदा दरवाजा मामले के गवाह इकबाल बलूच ने कहा कि पुलिस स्टेशनों को उन पर और अन्य लोगों पर नजर रखने का निर्देश "अर्थहीन" है.
गौरतलब है कि गवाहों की पुलिस सुरक्षा रद्द करने का निर्णय 13 दिसंबर को आया था. अधिकारियों ने कहा कि गुजरात पुलिस ने एसआईटी प्रमुख बी सी सोलंकी की सिफारिश पर यह कदम उठाया है. इसके तहत सिक्योरिटी में तैनात सभी कर्मियों को वापस ले लिया गया है. हालांकि थाना प्रभारी को गवाहों की सुरक्षा का ख्याल रखना होगा.
2002 के गुजरात दंगों में 58 हिंदू तीर्थयात्रियों की मौत के बाद हिंसा भड़क गई थी. गोधरा कांड के बाद हुई हिंसा में कई लोगों की जान चली गई और अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय के लोगों को निशाना बनाया गया.