2050 तक लुप्त हो जाएगी गंगा नदी फिर कैसे लगेगा महाकुंभ? जानें क्या कहता है विज्ञान
गंगा नदी और अन्य नदियों के भविष्य के बारे में जो वैज्ञानिक अध्ययन सामने आए हैं, वे चिंता का विषय हैं. अगर जलवायु परिवर्तन पर काबू नहीं पाया गया, तो गंगा नदी के जल स्तर में भारी कमी आ सकती है, जिससे धार्मिक और पारिस्थितिकी तंत्र पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा. इस मुद्दे पर जल्द से जल्द कदम उठाने की आवश्यकता है ताकि भविष्य में महाकुंभ जैसे आयोजनों के लिए गंगा नदी के पानी का उपयोग किया जा सके और आने वाली पीढ़ियों को भी इसका लाभ मिल सके.
गंगा नदी, जिसे हम "मैया" के नाम से भी जानते हैं, भारतीय संस्कृति और धार्मिकता में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है. यह नदी न केवल हमारी धार्मिक मान्यताओं का हिस्सा है, बल्कि लाखों लोगों की जीवनरेखा भी है. लेकिन एक अध्ययन के अनुसार, गंगा नदी का भविष्य खतरे में है. वैज्ञानिकों के अनुसार, 2050 तक गंगा नदी का जल स्तर अचानक घट सकता है, जिससे न सिर्फ खेती, पीने का पानी, बल्कि बिजली उत्पादन भी प्रभावित हो सकता है. आइए जानते हैं इस रिपोर्ट के बारे में और कैसे इससे महाकुंभ और अन्य धार्मिक आयोजन प्रभावित हो सकते हैं.
जलवायु परिवर्तन और गंगा नदी पर असर
हाल ही में काठमांडू स्थित इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट (ICIMOD) ने एक अध्ययन जारी किया है, जिसमें कहा गया है कि 2050 तक गंगा, ब्रह्मपुत्र और सिंधु जैसी नदियों का जल स्तर घट सकता है. यह अध्ययन हिंदू कुश और हिमालय क्षेत्र के ग्लेशियरों के पिघलने और उनके प्रभाव पर आधारित है. इस अध्ययन के अनुसार, यदि वैश्विक तापमान 1.5°C बढ़ता है, तो इन नदियों का जल प्रवाह पहले बढ़ेगा, लेकिन 2050 के बाद अचानक घटने लगेगा.
गंगा नदी का जल स्रोत मुख्य रूप से हिमालय के ग्लेशियरों से आता है. जैसे-जैसे ये ग्लेशियर पिघलेंगे, नदी का जल प्रवाह बढ़ेगा, लेकिन कुछ दशकों बाद जब ग्लेशियर खत्म हो जाएंगे, तो यह प्रवाह घटने लगेगा. यह स्थिति "पीक वॉटर" कहलाती है, जहां ग्लेशियरों से आने वाले जल की मात्रा घटने लगेगी.
महाकुंभ पर असर
महाकुंभ जैसे धार्मिक आयोजन, जो गंगा नदी के किनारे होते हैं, नदी के जल स्तर पर निर्भर करते हैं. अगर नदी का जल स्तर घटता है तो इन आयोजनों में लोगों को स्नान के लिए कम पानी मिलेगा. साथ ही, गंगा नदी के किनारे बसे लाखों लोग, जो इस जल का उपयोग पीने, खेती और अन्य कार्यों के लिए करते हैं, उन्हें भी समस्या हो सकती है.
ग्लेशियरों का पिघलना और उसके परिणाम
ग्लेशियरों का पिघलना एक गंभीर समस्या बन सकती है. इस पिघलने से पहले कुछ समय तक नदी में जल प्रवाह बढ़ेगा, लेकिन जैसे-जैसे ग्लेशियरों की मात्रा घटेगी, वैसे-वैसे जल की कमी होनी शुरू हो जाएगी. इस प्रक्रिया को समझते हुए, वैज्ञानिकों ने कहा है कि 2100 तक ग्लेशियरों से मिलने वाला पानी लगभग खत्म हो सकता है.
इसके अलावा, हिमालय क्षेत्र में बर्फबारी में 30 से 70 प्रतिशत तक की कमी आ सकती है, जिससे नदियों का जल स्तर और भी घट सकता है. गंगा और अन्य नदियों के जल स्रोतों पर यह असर पड़ने से करोड़ों लोगों की जीवनशैली पर भी विपरीत प्रभाव पड़ेगा.
जलवायु परिवर्तन और अन्य समस्याएं
हिमालय क्षेत्र में ग्लेशियरों का पिघलना जलवायु परिवर्तन के कारण हो रहा है. अगर सरकारें समय रहते ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन नियंत्रित नहीं करतीं, तो इस क्षेत्र के ग्लेशियरों का 66 प्रतिशत तक हिस्सा समाप्त हो सकता है. इसके अलावा, यहां की वायु प्रदूषण और वनों की कटाई भी जलवायु परिवर्तन को बढ़ावा दे रही है, जिससे इन नदियों पर और भी दबाव बढ़ सकता है.
नदियों का भविष्य
अगर समय रहते जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को नहीं रोका गया, तो आने वाले दशकों में गंगा नदी और अन्य नदियों का अस्तित्व संकट में पड़ सकता है. इससे न केवल पर्यावरणीय संतुलन गड़बड़ाएगा, बल्कि लाखों लोगों की जीविका भी प्रभावित होगी.