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कैसे परिवार की कलह ने डुबा दिया INLD और JJP का जहाज, चौटाला परिवार के अर्श से लेकर फर्श तक की कहानी

दुष्यंत चौटाला के करीब साढ़े चार साल तक राज्य का डिप्टी सीएम होने के दौरान पार्टी को उनका जनाधार बढ़ने की उम्मीद थी लेकिन ऐसा हो न सका. विवादित किसान कानूनों पर उन्हें हरियाणा के लोगों के गुस्से का सामना करना पड़ा, उनकी खुद की पार्टी के लोगों ने उनका विरोध किया. जेजेपी ने नवंबर 2023 में राजस्थान में हुए विधानसभा चुनाव में भी किस्मत आजमाने की कोशिश की और 19 सीटों पर उम्मीदवार उतारे, लेकिन सभी उम्मीदवारों को हार नसीब हुई. यही नहीं सभी उम्मीदवारों की जमानत तक जब्त हो गई.

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Edited By: India Daily Live
Chautala family
Courtesy: social media

Haryana Assembly Elections: एक पुरानी कहावत है कि एकता में शक्ति होती है और विभाजन हमें कमजोर बना देता है. हरियाणा के चौटाला परिवार के साथ कुछ ऐसा ही हुआ. बिखराव के बाद हरियाणा के सबसे राजनीतिक रसूख वाले परिवार की आज क्या हालत है यह हम सबके सामने है. परिवार की अंदरूनी कलह ने उनकी पार्टी इंडियन नेशनल लोक दल (INLD) को तोड़ दिया और उसके बाद दिसंबर 2018 में जननायक जनता पार्टी  (JJP) का उदय हुआ.

अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहीं JJP और INLD

INLD का नेतृत्व 89 ओम प्रकाश चौटाला और उनके बेटे अभय चौटाला कर रहे हैं जबकि जेजेपी का नेतृत्व  उनके बड़े बेटे अजय चौटाला और उनके बेटे दुष्यंत चौटाला कर रहे हैं. दुष्यंत चौटाला हरियाणा के डिप्टी सीएम भी रहे हैं. INLD की स्थापना दिग्गज जाट और पूर्व उप-प्रधानमंत्री देवी लाल ने की थी जो अपने समय के उत्तर भारत के सबसे बड़े किसान नेता माने जाते थे. आज हालत ये है कि हरियाणा में 1 अक्टूबर से होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले राज्य की सबसे मजबूत पार्टियां INLD और  JJP राज्य में बीजेपी के उदय और कांग्रेस के पुनरुत्थान के बीच आज अपने अस्तित्व बचाने की लड़ाई लड़ रही हैं.

INLD के नेता और देवी लाल के बेटे ओम प्रकाश सात बार के विधायक हैं और हरियाणा के 5 बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं. वहीं अभय चौटाला 4 बार के विधायक हैं  जबकि अजय चौटाला तीन बार के विधायक (एक बार हरियाणा और तीन बार राजस्थान) हैं और लोकसभा और राज्यसभा दोनों के सदस्य रह चुके हैं.

परिवार में कलह ने डुबो दिया जहाज

बिखराव के बाद से दोनों ही पार्टियों को राजनीतिक मोर्चे पर असफलता ही हाथ लगी है. 2019 के विधानसभा चुनाव में  INLD और JJP ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था. उस समय INLD केवल ने 90 में से 81 सीटों पर चुनाव लड़ा था और एक सीट (एलनाबाद सीट अभय चौटाला ने जीती थी) जीत पाई थी. जबकि जेजेपी ने 87 सीटों पर चुनाव लड़ा और 10 सीटों पर जीत दर्ज की थी.

2019 में किंग मेकर बनकर उभरे थे दुष्यंत चौटाला

2019 में बीजेपी 40 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी लेकिन किसी भी पार्टी को पूर्ण बहुमत न मिलने की स्थिति में जेजेपी नेता दुष्यंत चौटाला किंगमेकर बनकर उभरे और बीजेपी ने जेजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाई. मनोहर लाल खट्टर की सरकार में  दुष्यंत चौटाला को डिप्टी सीएम बनाया गया.

लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी ने छुड़ा लिया दामन

हालांकि मार्च में हुए लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी ने जेजेपी से रिश्ता तोड़ लिया और निर्दलीय विधायकों के सहयोग से सरकार बना ली. साथ ही मनोहर लाल खट्टर को सीएम पद से हटाकर नायब सिंह सैनी को सीएम बनाया गया.

सत्ता छिनने के बाद लगातार हो रहा जेजेपी का पतन

सत्ता से बाहर होने के बाद जेजेपी का लगातार पतन जारी है. अब इस पार्टी में केवल तीन विधायक रह गए हैं जिसमें खुद दुष्यंत चौटाला, मां नैना चौटाला, अमरजीत ढांडा शामिल हैं, बाकी सभी विधायकों ने पार्टी छोड़ दी है. इनमें से कुछ तो ऐसे भी हैं जो कांग्रेस या बीजेपी में शामिल होने वाले हैं. जेजेपी के राज्य अध्यक्ष निशान सिंह तो पार्टी छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गए हैं.

क्या कहते हैं दुष्यंत

हालांकि दुष्यंत का दावा है उन्हें लोगों के पार्टी से जाने का कोई दुख नहीं हैं. दुष्यंत कहते हैं, 'जेजेपी चौधरी देवी लाल की नर्सरी है, लोग यहां आते हैं, सीखते हैं, पद प्राप्त करते हैं और संघर्ष के समय छोड़कर चले जाते हैं.'

उन्होंने कहा जो सात विधायक पार्टी छोटकर गए हैं उनमें से 6 ने लोकसभा चुनाव के दौरान ही पार्टी से दूरी बना ली थी और केवल इस्तीफा देना बाकी रह गया था. उन्होंने कहा कि अभी चुनाव में 42 दिन का समय है और जेजेपी एक बार फिर से किंगमेकर बनकर उभरेगी.

आखिरी बार साल 2009 जब चौटाला परिवार एक साथ INLD के बैनर तले लड़ा था पार्टी ने 31 सीटों पर जीत हासिल की थी. उस समय ओम प्रकाश नेता प्रतिपक्ष थे, जबकि कांग्रेस ने 40 सीटें जीतकर निर्दलीय उम्मीदवारों की मदद से सरकार बनाई थी. बीजेपी को तब मात्र 4 सीटें मिली थीं.

2014 में प्रचंड बहुमत से जीती थी बीजेपी

साल 2014 में केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में जब बीजेपी ने हरियाणा का चुनाव लड़ा तो प्रचंड बहुमत से जीत दर्ज की. इस चुनाव में बीजेपी को 47 सीटें मिलीं. राज्य में अब तक किसी भी पार्टी को इतनी सीटें नहीं मिली थीं.

2014 के लोकसभा चुनाव में भी चौटाला परिवार एक साथ INLD के बैनर तले लड़ा था और इस चुनाव में पार्टी ने 19 सीटें हासिल की थीं. वहीं कांग्रेस ने 15 सीटें जीती थीं. उस वक्त ओम प्रकाश चौटाला के जेबीटी टीचर्स भर्ती घोटाले में जेल जाने के कारण अभय चौटाला को नेता प्रतिपक्ष चुना गया था.

दुष्यंत को सहना पड़ा जनता का गुस्सा

दुष्यंत चौटाला के करीब साढ़े चार साल तक राज्य का डिप्टी सीएम होने के दौरान पार्टी को उनका जनाधार बढ़ने की उम्मीद थी लेकिन ऐसा हो न सका. विवादित किसान कानूनों पर उन्हें हरियाणा के लोगों के गुस्से का सामना करना पड़ा, उनकी खुद की पार्टी के लोगों ने उनका विरोध किया. जेजेपी ने नवंबर 2023 में राजस्थान में हुए विधानसभा चुनाव में भी किस्मत आजमाने की कोशिश की और 19 सीटों पर उम्मीदवार उतारे, लेकिन सभी उम्मीदवारों को हार नसीब हुई. यही नहीं सभी उम्मीदवारों की जमानत तक जब्त हो गई.

लोकसभा चुनाव में सभी सीटों पर हार

2024 के लोकसभा चुनाव में जेजेपी ने हरियाणा की सभी 10 सीटों पर उम्मीदवार उतारे जबकि INLD ने सात सीटों पर चुनाव लड़ा लेकिन दोनों ही पार्टियों को एक भी सीट नहीं मिली जबकि बीजेपी और कांग्रेस को 5-5 सीटें मिलीं.

क्या कहते हैं परिवार के वफादार

हालांकि चौटाला परिवार के कुछ वफादारों को भरोसा है कि अगर JJP और INLD एकसाथ मिलकर लड़ते हैं तो उनका राज्य की राजनीति में फिर से उभार हो सकता है लेकिन इस समय दोनों का एक साथ आना दूर की कौड़ी नजर आ रहा है. रविवार को अभय चौटाला के एक ट्वीट ने भी इस बात की पुष्टि कर दी है जिसमें उन्होंने दुष्यंत चौटाला पर निशाना साधते हुए कहा था, 'हरियाणा का किंगब्रेकर... ट्रस्टब्रेकर की तरह! अपने दादा और किसानों का भरोसा तोड़ने से लेकर अब अपने ही विधायकों का भरोसा तोड़ने तक का दुष्यंत का सफर इतिहास की किताबों में से एक है. क्या वह कभी रुकेगा?'