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उदारीकरण से लेकर अमेरिका के साथ असैन्य परमाणु समझौता करने तक...भारत की तकदीर बदलने वाले मनमोहन सिंह के दो बड़े फैसले

भारत के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का नाम भारतीय राजनीति और अर्थशास्त्र में स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाएगा. वह एक शांत स्वभाव वाले राजनेता के रूप में जाने जाते थे, जिन्हें अक्सर "मौनमोहन" के नाम से पुकारा जाता था. लेकिन उनके नेतृत्व में लिए गए दो ऐतिहासिक फैसलों ने न केवल भारत की अर्थव्यवस्था को नई दिशा दी, बल्कि भारत को वैश्विक मंच पर भी एक नई पहचान दिलाई.

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Edited By: Sagar Bhardwaj
From liberalization to civil nuclear agreement with America two big decisions of Manmohan Singh

भारत के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का नाम भारतीय राजनीति और अर्थशास्त्र में स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाएगा. वह एक शांत स्वभाव वाले राजनेता के रूप में जाने जाते थे, जिन्हें अक्सर "मौनमोहन" के नाम से पुकारा जाता था. लेकिन उनके नेतृत्व में लिए गए दो ऐतिहासिक फैसलों ने न केवल भारत की अर्थव्यवस्था को नई दिशा दी, बल्कि भारत को वैश्विक मंच पर भी एक नई पहचान दिलाई. यह फैसले थे – भारत का उदारीकरण और अमेरिका के साथ असैन्य परमाणु समझौता.

भारत का उदारीकरण: संकट से निकलकर विकास की ओर

1991 में जब मनमोहन सिंह भारत के वित्त मंत्री बने, तब देश गंभीर आर्थिक संकट से गुजर रहा था. विदेशी मुद्रा भंडार चौंका देने वाली स्थिति में था, जो मुश्किल से दो हफ्तों के आयात को कवर कर सकता था. ऐसे में देश को आवश्यक सुधारों की जरूरत थी, और यह जिम्मेदारी तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिंह राव और वित्त मंत्री मनमोहन सिंह ने उठाई.

मनमोहन सिंह ने भारतीय अर्थव्यवस्था में संरचनात्मक बदलाव लाने के लिए कई ऐतिहासिक कदम उठाए. उन्होंने लाइसेंस राज को समाप्त किया, जो उद्योगों पर सरकारी नियंत्रण को दर्शाता था, और विदेशी निवेश के लिए दरवाजे खोले. इसके अलावा, उन्होंने भारतीय बाजार को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए कई सुधार किए. इससे न केवल भारत की आर्थिक स्थिरता हासिल हुई, बल्कि आर्थिक वृद्धि की गति भी तेज हुई. उनके प्रधानमंत्री बनने तक, भारत की जीडीपी वृद्धि दर औसतन 7.7% प्रति वर्ष रही, जो पहले 3-4% के आसपास ही थी.

अमेरिका के साथ असैन्य परमाणु समझौता: भारत की वैश्विक ताकत के रूप में पहचान
मनमोहन सिंह का दूसरा बड़ा फैसला था भारत और अमेरिका के बीच असैन्य परमाणु समझौता. यह समझौता 2005 में शुरू हुआ, जब सिंह ने अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश के साथ इस मुद्दे पर बात की और इसे स्वीकार कराया. इस समझौते का उद्देश्य भारत को परमाणु तकनीकी सहायता प्रदान करना था, जो पहले तक उसे परमाणु अप्रसार संधि (NPT) के कारण नहीं मिल पाई थी.

इस समझौते के दौरान, सिंह ने विपक्षी दलों के विरोध के बावजूद दृढ़ कदम उठाए. उनका सामना भारतीय राजनीति में कई कठिनाइयों से हुआ, खासकर वामपंथी दलों और समाजवादी पार्टी के विरोध से. लेकिन उनके नेतृत्व में, सरकार ने विश्वास मत हासिल किया और इस समझौते को लागू किया. इस समझौते के कारण भारत को वैश्विक परमाणु शक्ति के रूप में सम्मान मिला और भारत को परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम में अमेरिका से तकनीकी सहायता प्राप्त हुई.

मनमोहन सिंह का नेतृत्व: राजनीति में स्थिरता और विवादों से बाहर
मनमोहन सिंह की राजनीति में स्थिरता के बावजूद उनके कार्यकाल के दौरान कुछ विवाद भी उठे. 2009 में उन्होंने लोकसभा चुनावों में कांग्रेस पार्टी को शानदार जीत दिलाई, लेकिन इसके बाद, उनका दूसरा कार्यकाल एक स्थिरता के दौर में बदल गया. सरकार पर कई घोटालों और नीतिगत जड़ता का आरोप लगा, और इसके कारण उनकी छवि पर असर पड़ा. लेकिन यह भी सच है कि उन्होंने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (MGNREGA) जैसी योजनाओं को लागू किया, जो किसानों और गरीबों के लिए वरदान साबित हुई.