Mumbai College Dress Code Row: मुंबई के एक कॉलेज में दो दिलचस्प विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं. पहला- एक जुलाई को कॉलेज के मेन गेट के बाहर एक दिवसीय प्रदर्शन, जबकि दूसरा उसी दिन से शुरू होकर 4 जुलाई को समाप्त होने वाला कॉलेज के अंदर चल रहा धरना. दोनों ही प्रदर्शन छात्रों के अपने पहनावे के अधिकार को लेकर हो रहे थे.
1 मई को, चेंबूर स्थित 'एनजी आचार्य और डीके मराठे कॉलेज ऑफ आर्ट्स, साइंस एंड कॉमर्स' के डिग्री कॉलेज के छात्रों के व्हाट्सएप ग्रुपों को एक संदेश मिला, जिसमें कहा गया था कि वे अब परिसर में बुर्का, नकाब, हिजाब या कोई अन्य धार्मिक पहचान जैसे बैज, टोपी या स्टोल नहीं पहन सकते. इस संबंध में 27 जून को कॉलेज के मेन गेट पर 'ड्रेस कोड और अन्य नियम' वाला एक लेमिनेटेड नोटिस लटका दिया गया.
नोटिस पर कॉलेज की प्रिंसिपल डॉ विद्यागौरी लेले के सिग्नेचर थे, जिसमें छात्राओं को जानकारी दी गई थी कि वे अब जींस, टी-शर्ट, खुले कपड़े और जर्सी नहीं पहन सकतीं. नोटिस के अनुसार, छात्राएं केवल शालीन पोशाक...हाफ-शर्ट या फुल-शर्ट और ट्राउजर...भारतीय या पश्चिमी पोशाक (लड़कियों के लिए) में कैंपस में एंट्री कर सकती हैं.
27 जून के नोटिस के खिलाफ 50-70 छात्राओं ने 1 जुलाई को कॉलेज के बाहर विरोध प्रदर्शन किया, वहीं कॉलेज में हिजाब पहनने की इच्छा रखने वाली करीब 20 छात्राएं 1 जुलाई से 4 जुलाई के बीच कैंपस में धरने पर बैठी रहीं. छात्राओं और प्रशासन के बीच चल रहे गतिरोध के चलते कॉलेज सुरक्षा कर्मचारियों के अलावा परिसर में कुछ पुलिस कर्मियों को भी तैनात किया गया है.
चेंबूर ट्रॉम्बे एजुकेशन सोसाइटी की ओर से 1978 में स्थापित, 2023 में डिग्री और पोस्ट ग्रैजुएशन के लिए 2100 से अधिक छात्रों ने कॉलेज में एडमिशन लिया था. प्रशासन ने दावा किया कि कैंपस में गैर-छात्रों के प्रवेश पर सुरक्षा चिंताओं के कारण ड्रेस कोड पेश किया गया था.
एक फैकल्टी मेंबर ने कहा कि गैर-छात्रों के कैंपस में एंट्री का मुद्दा गंभीर हो गया था और इसके कारण जूनियर कॉलेज (कक्षा 11 और 12) के छात्रों के लिए एक समान नीति बनाई गई. डिग्री कॉलेज के लिए भी एक समान नीति पर विचार किया जा रहा था, लेकिन प्रशासन ने इसके बजाय ड्रेस कोड लागू कर दिया.
छात्रों का दावा है कि उन्होंने प्रशासन से अनुरोध किया था कि कैंपस में पहचान पत्र अनिवार्य कर दिया जाए. हिजाब प्रतिबंध के खिलाफ विरोध करने वाली तीसरे वर्ष की छात्रा कहती है कि अगर उन्हें कॉलेज में गैर-छात्रों के प्रवेश की चिंता है, तो वे गेट पर आईडी कार्ड की जांच कर सकते हैं और पहचान की पुष्टि के लिए हमसे अपना चेहरा दिखाने के लिए कह सकते हैं. हिजाब पर प्रतिबंध लगाना कैसे समाधान है?
एक अन्य छात्रा ने कहा कि कॉलेज को उनमें से कुछ के स्ट्रेपी टी-शर्ट, क्रॉप टॉप और रिप्ड जींस जैसे उत्तेजक कपड़े पहनने से समस्या है. हिजाब पहनने वाली छात्राओं को कॉलेज के अंदर एक जगह आवंटित किया गया है, जो ग्राउंड फ्लोर पर केमिस्ट्री लैब के बगल में एक कॉमन रूम है, जहां उन्हें कैंपस में आने के बाद हिजाब हटाना होता है.
बुर्का पहनी एक तीसरे वर्ष की छात्रा ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “हमें खुले कपड़े न पहनने के लिए कहना एक बात है और हमें हिजाब या जींस और टी-शर्ट न पहनने के लिए कहना दूसरी बात है. प्रोफेसर हमें पढ़ाई पर ध्यान देने के लिए कह रहे हैं, विरोध प्रदर्शनों पर नहीं. हम जानते हैं कि हमारी पढ़ाई पहले आती है और यह भी कि हमारे कपड़े हमारी पढ़ाई को प्रभावित नहीं करते हैं. मेरी क्लास में मेरे समुदाय की कुछ छात्राएं जींस पहनती हैं, लेकिन वे बुर्का पहनने के मेरे फैसले का समर्थन करती हैं. मेरी तरह, वे भी मानते हैं कि कपड़े व्यक्तिगत पसंद का मामला हैं.
9 छात्राओं ने कॉलेज के हिजाब संबंधी नोटिस को बॉम्बे हाई कोर्ट में चुनौती दी थी, जिसने जून के अंतिम सप्ताह में उनकी याचिका खारिज करते हुए कहा था कि इसे जारी करने के पीछे उद्देश्य ये है कि किसी छात्रा के पहनावे से उसका धर्म उजागर नहीं होना चाहिए, जो यह सुनिश्चित करने की दिशा में एक कदम है कि छात्राएं ज्ञान और शिक्षा प्राप्त करने पर ध्यान केंद्रित करें, जो उनके व्यापक हित में है.
इस बीच, कॉलेज प्रशासन ने कहा कि हिजाब पहनकर छात्रों का विरोध प्रदर्शन कोर्ट के आदेश की अवमानना है. प्रिंसिपल डॉ. लेले कहते हैं कि ये ड्रेस कोड मई में घोषित किया गया था, एडमिशन शुरू होने से पहले. अगर हिजाब उनके लिए महत्वपूर्ण था, तो वे उस समय कॉलेज बदल सकते थे. हम कुछ छात्रों के माता-पिता से भी परामर्श कर रहे हैं जिन्होंने पहले हिजाब पहना था और हमसे मिलने की मांग की है.
उन्होंने कहा कि प्रशासन को संदेह है कि बाहरी लोग हिजाब पहने छात्रों को अपना विरोध जारी रखने के लिए उकसा रहे हैं. उन्होंने कहा कि हम धैर्यपूर्वक स्थिति से निपट रहे हैं क्योंकि वे (प्रदर्शनकारी छात्र) हमारे छात्र हैं. केवल 15-20 लड़कियां ही हिजाब को लेकर विरोध कर रही हैं; लगभग 70% ने ड्रेस कोड का पालन करने पर सहमति जताई है. कई लड़कियां हिजाब पहनकर कॉलेज में प्रवेश करती हैं, लेकिन लेक्चर में भाग लेने के लिए कॉमन रूम में इसे उतार देती हैं. वे कैंपस से निकलने से पहले इसे फिर से पहनती हैं.
इस बीच, छात्र संगठन प्रहार विद्यार्थी संगठन ने घोषणा की है कि यदि ड्रेस कोड वापस नहीं लिया गया तो वे कॉलेज के बाहर विरोध प्रदर्शन करेंगे. प्रिंसिपल ने कहा कि प्रशासन अपने छात्रों को कॉर्पोरेट जगत के लिए बस तैयार कर रहा है, जहां कर्मचारी औपचारिक कपड़े पहनते हैं.
वे आगे कहती हैं कि हमारे यहां पहले भी ऐसा ही नियम था, जिसमें छात्र हफ़्ते में एक बार फ़ॉर्मल कपड़े पहनते थे. अब सिर्फ़ एक ही फ़र्क है कि वे पूरे हफ़्ते फ़ॉर्मल कपड़े पहनेंगे, सिर्फ़ एक दिन को छोड़कर, जब वे कैज़ुअल कपड़े पहन सकते हैं.
पहले भी ऐसे कई मामले सामने आए हैं जब कॉलेजों ने नोटिस जारी कर अपने छात्रों के लिए ड्रेस कोड निर्धारित किया है. 2014 में बोरीवली के नालंदा कॉलेज ऑफ लॉ ने एक नोटिस जारी कर छात्राओं को स्कर्ट, शॉर्ट्स और स्लीवलेस टॉप पहनने से मना किया था. 2010 में, भांडुप में वीके कृष्ण मेनन कॉलेज ने कथित तौर पर फिगर-हगिंग जींस पर प्रतिबंध लगा दिया था, जबकि ठाणे में पार्श्वनाथ कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग ने अपने छात्रों पर टी-शर्ट और जींस पहनने पर प्रतिबंध लगा दिया था.