गले में मफलर, ढीला स्वेटर, जेब में बॉल पेन और नीली वैगन आर... जब अरविंद केजरीवाल ने राजनीति में कदम रखा, तो वे एक "आदर्श आम आदमी" की छवि लेकर आए. उन्होंने अपनी पार्टी का नाम भी इसी सोच के साथ "आम आदमी पार्टी" (आप) रखा, जिससे जनता का झुकाव उनकी ओर बढ़ा.
2013 में जब केजरीवाल ने राजनीति में प्रवेश किया, तो उन्होंने किसी स्थापित पार्टी से जुड़ने के बजाय ज़मीनी स्तर से खुद की पार्टी बनाई। आज 12 साल बाद, लगातार दो राज्यों में सरकार बनाने के बावजूद, उनकी राष्ट्रीय पहचान पर गंभीर सवाल उठने लगे हैं. दिल्ली में लगातार 10 सालों तक शासन करने वाली ‘आप’ को हालिया विधानसभा चुनावों में बड़ा झटका लगा। पार्टी सिर्फ 22 सीटों पर सिमट गई, जबकि भाजपा ने 48 सीटें जीतकर सरकार बनाई.
नई दिल्ली सीट से भी हार, केजरीवाल की साख पर असर
सबसे बड़ा झटका तब लगा, जब अरविंद केजरीवाल अपनी ही नई दिल्ली सीट भाजपा के प्रवेश वर्मा से हार गए. यह हार न सिर्फ उनकी पार्टी के भविष्य पर सवाल उठाती है, बल्कि उनके नेतृत्व पर भी संकट खड़ा कर रही है. 56 वर्षीय केजरीवाल की राष्ट्रीय राजनीति में बढ़ने की उम्मीदें अब धूमिल हो रही हैं। पार्टी के पास अभी सिर्फ पंजाब की सत्ता बची है, लेकिन दिल्ली की हार ने उनके राष्ट्रीय कद को कमजोर कर दिया है.
'आप' की मौजूदा राजनीतिक स्थिति
हालांकि, दिल्ली की हार के बावजूद ‘आप’ अभी भी राजनीतिक रूप से अस्तित्व में है. पार्टी के पास अभी भी पंजाब और दिल्ली से कुल 13 सांसद हैं. पंजाब से सात, दिल्ली से तीन राज्यसभा सदस्य और पंजाब से तीन लोकसभा सांसद.
केजरीवाल की राजनीतिक यात्रा: आम आदमी से मुख्यमंत्री तक
आईआईटी-खड़गपुर से स्नातक और पूर्व भारतीय राजस्व सेवा (IRS) अधिकारी अरविंद केजरीवाल ने 2013 में पहली बार चुनावी राजनीति में कदम रखा. उन्होंने तीन बार दिल्ली की मुख्यमंत्री रहीं शीला दीक्षित को हराकर कांग्रेस के मजबूत गढ़ में सेंध लगाई थी. 14 फरवरी 2014 को जब वह पहली बार दिल्ली के मुख्यमंत्री बने, तो महज 49 दिनों में ही इस्तीफा दे दिया। कारण था. उनकी सहयोगी कांग्रेस पार्टी का जन लोकपाल विधेयक का विरोध. हालांकि, 2015 के विधानसभा चुनावों में ‘आप’ ने जबरदस्त वापसी की और 70 में से 67 सीटें जीतकर सत्ता में लौटी.
2024 में ‘घोटाले’ का आरोप और इस्तीफा
2024 में केजरीवाल को दिल्ली आबकारी घोटाले में भ्रष्टाचार के आरोपों में जेल जाना पड़ा. उन्होंने तब दावा किया कि दिल्ली के लोग उन्हें विधानसभा चुनावों में "ईमानदारी का प्रमाण पत्र" देंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ और पार्टी सत्ता से बाहर हो गई.
अन्ना आंदोलन से राजनीति की ओर
वर्ष 2000 में आयकर विभाग की नौकरी छोड़ने के बाद, केजरीवाल ने एक RTI कार्यकर्ता के रूप में काम किया. 2010 तक उन्होंने दिल्ली की झुग्गियों में रहकर आम जनता की समस्याओं को समझा और 2011 में अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन का हिस्सा बने. इसी आंदोलन ने उनकी राजनीति की नींव रखी और आम आदमी पार्टी का जन्म हुआ. लेकिन आज, राष्ट्रीय राजनीति में खुद को स्थापित करने की उनकी महत्वाकांक्षा मुश्किल में पड़ती दिख रही है.