Morarji Desai Death Anniversary: मोरारजी देसाई, जिनका प्रधानमंत्री पद का कार्यकाल भले ही छोटा था, लेकिन उनका योगदान भारतीय राजनीति में हमेशा याद रखा जाएगा. वे पहले गैरकांग्रेसी प्रधानमंत्री थे और उनकी सरकार ने इमरजेंसी के खौफ से मुक्ति दिलाई, संविधान के मूल ढांचे को बहाल किया, और अदालतों को उनकी ताकत वापस दी. पद से हटने के बाद, मोरारजी ने कभी भी अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं किया और सरकारी सुविधाओं को ठुकराकर मुंबई के निजी फ्लैट में शांतिपूर्वक जीवन बिताया.
पंडित नेहरू के निधन के बाद, मोरारजी ने प्रधानमंत्री पद के लिए अपनी दावेदारी स्पष्ट रूप से पेश की थी. हालांकि पार्टी के प्रभावशाली वर्ग ने लाल बहादुर शास्त्री के पक्ष में समर्थन दिया, लेकिन मोरारजी ने कभी अपनी उम्मीदवारी को छिपाया नहीं. शास्त्री के निधन के बाद, मोरारजी और इंदिरा गांधी के बीच चुनाव हुआ, लेकिन पार्टी सांसदों ने इंदिरा गांधी का समर्थन किया और मोरारजी को उपप्रधानमंत्री पद पर संतुष्ट होना पड़ा.
1974 में गुजरात में छात्रों द्वारा चिमन भाई पटेल की सरकार की बर्खास्तगी की मांग की गई, और मोरारजी ने इस आंदोलन में भाग लिया. 12 मार्च 1975 को उन्होंने आमरण अनशन शुरू किया, जो इंदिरा गांधी के लिए एक चुनौती बन गया. चंद्रशेखर ने इंदिरा गांधी से मोरारजी को मनाने की कोशिश की, लेकिन मोरारजी अपनी जिद पर अड़े रहे और कहा कि यदि भगवान उन्हें इस तरीके से ले जाएगा तो वह ऐसा ही चले जाएंगे.
इमरजेंसी के बाद, मोरारजी देसाई ने 19 महीने जेल में बिताए. अपनी आत्मकथा में उन्होंने लिखा था कि ऐसा देश, जहां के लोग डर के साए में रहते हैं, उसका कोई भविष्य नहीं हो सकता. उन्होंने हमेशा स्वतंत्रता के महत्व को समझा और उसे बहाल करने के लिए संघर्ष किया.
इमरजेंसी के बाद 1977 में मोरारजी ने विपक्षी दलों को एकजुट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और जनता पार्टी की सरकार की स्थापना की. इस चुनाव में कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा और मोरारजी के नेतृत्व में गैरकांग्रेसी सरकार बनी.
मोरारजी देसाई की सरकार लगभग सवा दो साल चली, लेकिन इसके दौरान आपसी मतभेदों और महत्वाकांक्षाओं ने सरकार की स्थिरता को प्रभावित किया. चौधरी चरण सिंह, जो मोरारजी के साथ थे, बाद में सरकार के खिलाफ हो गए. उनके कारण सरकार कमजोर पड़ी और अंततः मोरारजी को पद छोड़ना पड़ा.
मोरारजी देसाई की सरकार ने इमरजेंसी के दौरान किए गए 42वें संशोधन के प्रभाव को समाप्त किया. 44वें संशोधन के माध्यम से संविधान की सर्वोच्चता की बहाली की गई और आपातकाल लागू करने के लिए नए प्रावधान बनाए गए. इस सुधार से संविधान को फिर से मजबूत किया गया.
मोरारजी देसाई का निजी जीवन बेहद संयमित और अनुशासित था. उन्होंने हमेशा अपने सिद्धांतों पर अडिग रहते हुए किसी भी प्रकार की आलोचना की परवाह नहीं की. उन्होंने स्वमूत्र पान को अपनी सेहत के लिए फायदेमंद माना, भले ही इस पर लोग उनका मजाक उड़ाते रहे. उन्होंने कभी सत्ता में बने रहने के लिए जोड़-तोड़ की राजनीति नहीं की और गरिमापूर्ण तरीके से इस्तीफा दिया.
मोरारजी देसाई ने अपने जीवन में कई संघर्षों का सामना किया, लेकिन हमेशा अपने सिद्धांतों के प्रति ईमानदार रहे. उनका कार्यकाल भले ही छोटा था, लेकिन उनकी राजनीतिक यात्रा और योगदान भारतीय राजनीति में हमेशा याद रहेगा. 10 अप्रैल 1995 को उनका निधन हुआ, लेकिन उनका जीवन और उनका संघर्ष आज भी प्रेरणा का स्रोत है.