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वो प्वाइंट जिसने पलटा ट्रायल कोर्ट का फैसला! आखिर क्यों दिल्ली हाई कोर्ट से अरविंद केजरीवाल को नहीं मिली जमानत

Arvind Kejriwal:अरविंद केजरीवाल की मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही है. दिल्ली उच्च न्यायालय ने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की जमानत को रद्द कर दिया है. हाई कोर्ट ने लोअर कोर्ट के फैसले को पलट दिया. कोर्ट ने अपने आदेश में कई बातों को उल्लेख किया है. ऐसे में आइए जानते हैं कि आखिर किस वजह से दिल्ली हाई कोर्ट ने अरविंद केजरीवाल की जमानत रद्द की है?

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Gyanendra Tiwari
Arvind Kejriwal
Courtesy: Social Media

Arvind Kejriwal: दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल अभी जेल से बाहर नहीं आने वाले. ऐसा हम नहीं बल्कि दिल्ली हाई कोर्ट का फैसला कह रहा है. हाई कोर्ट ने लोअर कोर्ट के फैसले को पलटकर केजरीवाल की जमानत रद्द कर दी है. दरअसल, राउज एवेन्यू कोर्ट ने 20 जून को दिल्ली शराब नीति मामले के मनी लॉन्ड्रिंग केस में अरविंद केजरीवाल को जमानत दी थी. लोअर कोर्ट के फैसले को ईडी ने हाई कोर्ट में चुनौती दी थी.

21 जून को हाई कोर्ट ने सुनवाई करते हुए फैसले पर स्टे लगाते हुए कहा था कि जब तक फैसला नहीं दे देते तब तक लोअर कोर्ट के फैसले पर रोक लगी रहेगी. आज इसी मामले में हाई कोर्ट ने सुनवाई करते हुए फैसला सुनाया. कोर्ट ने कहा कि  याचिका पर सुनवाई के दौरान सामने मौजूद दस्तावेजों पर ध्यान नहीं दिया गया था. आइए जानते हैं कि आखिर किन दलीलों ने केजरीवाल की जमानत रद्द करवा दी.

PMLA की धारा 45 ने रोक दी कोर्ट की जमानत

न्यायालय ने कहा कि अवकाश न्यायाधीश जमानत आदेश पारित करते समय PMLA (Prevention of Money Laundering Act) की धारा 45 की आवश्यकता पर चर्चा करने में विफल रहे. ट्रायल कोर्ट को कम से कम विवादित आदेश पारित करने से पहले PMLA की धारा 45 की दो शर्तों की पूर्ति के बारे में अपनी संतुष्टि दर्ज करनी चाहिए थी.

क्या कहती है PMLA की धारा 45

PMLA की धारा 45 के अनुसार, धन शोधन के मामले में किसी आरोपी को जमानत तभी दी जा सकती है, जब  तक कि अदालत इस बात से संतुष्ट न हो जाए कि यह मानने के लिए उचित आधार हैं कि वह ऐसे अपराध का दोषी नहीं है और जमानत पर रहते हुए उसके द्वारा कोई अपराध करने की संभावना न हो.

PMLA की धारा 45 के अनुसार दो ही शर्तों पर जमानत मिल सकती है. पहली  जब मनी लॉन्ड्रिंग मामले में कोई आरोपी जमानत के लिए आवेदन करता है, तो अदालत को पहले सरकारी वकील को सुनवाई का अवसर देना होता है. दूसरी जमानत पर रहते हुए उसके द्वारा कोई अपराध करने की संभावना न हो.

HC ने फैसले में क्या-क्या कहा?

ED ने की थी जांच: अदालत ने कहा कि ED ने केजरीवाल की प्रतिनिधिक दायित्व की भूमिका के बारे में लोअर कोर्ट में मुद्दा उठाया था और उल्लेख किया था कि इसकी विशेष रूप से जांच की गई थी और इसे स्थापित किया गया था. लेकिन इस मुद्दे को जमानत के आदेश में कोई स्थान नहीं मिला.

न्यायमूर्ति सुधीर कुमार जैन ने इस  कहा, "यह समझ में नहीं आता है कि एक ओर अवकाश न्यायाधीश ने आदेश पारित करते समय हजारों पृष्ठों वाले समस्त दस्तावेजों को देखने में अपनी असमर्थता व्यक्त की है और दूसरी ओर, कैसे पैरा संख्या 36 में अवकाश न्यायाधीश ने उल्लेख किया है कि पक्षों की ओर से उठाए गए प्रासंगिक तर्कों और विवादों से निपटा गया है."

कोर्ट ने ED की नोट पर नहीं दिया ध्यान: कोर्ट ने कहा कि अवकाशकालीन न्यायाधीश ने ED द्वारा लिखित नोट में उल्लिखित मुद्दों पर विचार नहीं किया, जिसे ट्रायल कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत किया गया था.

ED को नहीं मिला पर्याप्त समय: प्रत्येक न्यायालय का यह दायित्व है कि वह अपने-अपने मामले को न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करने के लिए पर्याप्त और उचित अवसर प्रदान करना चाहिए. ED को अवकाश न्यायाधीश द्वारा जमानत आवेदन पर तर्क प्रस्तुत करने के लिए पर्याप्त अवसर नहीं मिला.