PM मोदी के पांच मोहरे जिनके दम पर BJP ने जीत लिया ओडिशा का चुनाव, समझिए कहां चूक गए नवीन बाबू
हाल ही में संपन्न हुए ओडिशा विधानसभा चुनाव में भाजपा ने नवीन पटनायक और उनकी पार्टी को बीजू जनता दल को करारी शिकस्त दी. राज्य की 147 विधानसभा सीटों में से भाजपा ने 78 सीटों पर जीत दर्ज की. नवीन पटनायक पिछले 25 सालों से ओडिशा के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज थे. पटनायक के इस अभेद किले को भाजपा ने कैसे भेदा आइए समझते हैं.
Odisha News: तटीय राज्य ओडिशा में पहली बार भाजपा की सरकार बनने जा रही है. अब से कुछ ही देर में मोहन चरण माझी ओडिशा से सीएम पद की शपथ लेंगे. भाजपा की इस जीत के साथ ही ओडिशा में नवीन पटनायक का 24 साल पुराना किला ढह गया. पिछले 24 साल से बीजू जनता दल के प्रमुख पटनायक ही राज्य की सत्ता संभाल रहे थे. आखिर बीजेपी पटनायक के इतने मजबूत किले को ढहाने में कैसे कामयाब हुई. आइए जानते हैं...
पटनायक नहीं पांडियन को बनाया निशाना
इस बार ओडिशा के चुनाव में नवीन पटनायक का चेहरा कहीं पीछे छूटता जा रहा था. पटनायक के बेहद खास और पूर्व नौकरशाह वीके पांडियन ही इस पूरे चुनाव में बीजेडी की कमान संभाल रहे थे. भाजपा ने बहुत जल्दी भांप लिया था कि नवीन पटनायक के बाद पांडियन ही आगे चलकर बीजेडी की कमान संभालने वाले है, इसलिए भाजपा ने नवीन पटनायक के बजाय पांडियन को निशाना पनाया. भाजपा अपने चुनाव प्रचार अभियान में यही कहती रही ही पांडियन ने नवीन बाबू को कैप्चर कर लिया है, पांडियन नवीन बाबू को कंट्रोल कर रहे हैं. पांडियन पर हमले का बीजेपी को सीधा फायदा मिला.
पांडियन के खिलाफ गुस्सा
नवीन पटनायक ने पार्टी की सारी कमान पांडियन के हाथों में दे दी थी. हाल फिलहाल में ही आईएएस की नौकरी छोड़कर राजनीति में प्रवेश करने वाले शख्स को सारी जिम्मेदारी सौंपने से बीजेडी में अंदरखाने भी रोष था. चुनाव के दौरान पांडियन ने ही प्रत्याशियों का चयन किया था यही नहीं चुनाव प्रचार की सारी जिम्मेदारी भी उन्होंने अपने हाथों में ले ली थी. पार्टी और सरकार के सारे फैसले पांडियन ही लिया करते थे.
पांडियन के पार्टी की कमान संभालने की वजह से नवीन पटनायक लोगों की नजर से ओझल हो गए. उनके स्वास्थ्य और उनकी घटती लोकप्रियता का बाजार गर्म हो गया. भाजपा ने इसी बात का फायदा उठाया और चतुराई के साथ 'ओड़िया अस्मिता' को अपना चुनावी मुद्दा बना दिया. नरेंद्र मोदी और बीजेपी के स्टार प्रचारकों ने अपनी हर रैली में ओड़िया अस्मिता का मुद्दा जोर शोर से उठाया. उन्होंने यही बात दोहराई कि नवीन पटनायक ने ओडिशा के लोगों और पार्टी के नेताओं को नजरअंदाज कर तमिलनाडु में जन्मे एक आदमी को सत्ता सौंप दी. इस बात ने लोगों के दिमाग को क्लिक किया और पार्टी बुरी तरह से चुनाव हार गई.
रत्न भंडार की चाबी
भाजपा ने ओडिशा के प्रसिद्ध जगन्नाथ मंदिर के रत्न भंडार की चाबी को भी प्रमुख मुद्दा बनाया. रत्न भंडार की चाबी 6 साल पहले खो गई थी. बीजेपी के नेताओं ने अपने हर चुनाव प्रचार में कहा कि कही यह चाबी तमिलनाडू तो नहीं चली गई, जहां से पांडियन आते हैं. इससे लोगों के दिमाग में यह धारणा बनी कि कहीं रत्न भंडार से कुछ हीरे, जवाहरात गायब तो नहीं कर दिए गए. बता दें कि जगन्नाथ मंदिर का रत्न भंडार 1978 से कभी नहीं खोला गया, जबकि मंदिर कानून के तहत हर तीन साल में एक बार रत्न भंडार के जवाहरात की गिनती होना जरूरी है.
सत्ता विरोधी लहर
लगातार 24 साल से सत्ता में रही बीजेडी के खिलाफ राज्य में सत्ता विरोधी लहर थी, जिसका भाजपा को पूरा फायदा मिला. पटनायक के पिछले 5 बार से मुख्यमंत्री रहने के बावजूद बिजली, पानी, सड़क, बुनियादी सुविधाएं, भ्रष्टाचार जैसे ऐसे कई मुद्दे थे जिनको लेकर जनता में नाराजगी थी. इन मुद्दों को नजरअंदाज करना बीजेडी के लिए खतरनाक साबित हुआ.
अश्विनी वैष्णव ने लिखी जीत की इबारत
ओडिशा में भाजपा की इस रिकॉर्ड जीत में केंद्रीय रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है. वैष्णव करीब 28 साल पहले ओडिशा कैडर के प्रशासनिक अधिकारी थे. उन्होंने ओडिशा में जमीनी स्तर पर जमकर काम किया, लंबे समय तय यहां तैनाती से उनकी लोगों के बीच मजबूत पकड़ बन गई थी. ओडिशा में विधानसभा की एक-एक सीट के लिए अश्विनी वैष्णव के नेतृत्व में ही रणनीति बनाई गई.