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Farmers Protest 2024: सिर पर लोकसभा चुनाव 'वॉर', फिर भी किसान आंदोलन से क्यों बेफिक्र है मोदी सरकार?

Farmers Protest 2024: किसानों के मार्च को लेकर सत्तारूढ़ दल पर निशाना साधने वाली कांग्रेस पर पलटवार करते हुए, भाजपा किसान मोर्चा के अध्यक्ष राजकुमार चाहर ने कहा कि मोदी सरकार और भाजपा ने किसी अन्य की तुलना में किसानों के लिए अधिक किया है, कांग्रेस ने क्या किया है?

India Daily Live

Farmers Protest 2024: साल 202-21 में हुए किसान आंदोलन को देखते हुए केंद्र की मोदी सरकार ने तीन कृषि कानूनों को वापस ले लिया था और किसानों से घर लौटने की अपील की थी. हालांकि दो साल बाद एक बार फिर किसान दिल्ली की ओर कूच कर रहे हैं. ये सब ऐसे समय में हो रहा है, जब आने वाले दो से तीन महीनों में देश में आम चुनाव होने हैं. आम चुनाव के ठीक पहले किसान आंदोलन को लेकर भाजपा सरकार उतनी गंभीर नहीं दिख रही है, जितनी कि 2020-21 में थी.

पंजाब, यूपी और हरियाणा के किसान फिर से राष्ट्रीय राजधानी की ओर मार्च कर रहे हैं, लेकिन शायद भाजपा सरकार इस आंदोलन से बेफिक्र दिख रही है. भाजपा नेताओं ने स्वीकार किया कि विरोध प्रदर्शन से पंजाब में नुकसान हो सकता है, लेकिन पार्टी धीरे-धीरे सभी फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की गारंटी के लिए कानून की मांग की अतार्किकता को उजागर करेगी. भाजपा पदाधिकारियों का तर्क है कि जब संसद सत्र समाप्त हो गया है, लोकसभा भंग होने वाली है और चुनावों की घोषणा होने वाली है, तो कानून की मांग करने का कोई तर्क नहीं है.

भाजपा पदाधिकारियों के मुताबिक, अगर किसानों ने नई सरकार बनने के बाद विरोध किया होता तो इसका कोई मतलब होता. भाजपा के एक अन्य अंदरूनी सूत्र ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि अगर विरोध प्रदर्शन में कुछ तत्व किसान होने का मुखौटा पहने हुए हैं, तो उन्हें इसे हटा देना चाहिए और अपना असली एजेंडा बताना चाहिए. 

आखिर 2020-21 में हुए विरोध को लेकर क्यों चिंतित थी भाजपा?

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, 2020-21 के विरोध प्रदर्शनों के दौरान, भाजपा नेतृत्व कृषि विरोध प्रदर्शनों से घबराया हुआ था क्योंकि पार्टी उस दौरान होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले उत्तर प्रदेश में इसके प्रभाव को लेकर चिंतित था. शीर्ष भाजपा नेताओं ने माना था कि प्रदर्शनों से पश्चिम यूपी में उसके जाट समर्थन आधार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है. उस समय, भाजपा के शीर्ष नेताओं ने हरियाणा, पंजाब और यूपी को लेकर कहा था कि जाटों के बीच असंतोष से इन राज्यों में कम से कम 40 लोकसभा सीटों पर असर पड़ सकता है.

आखिर 2024 के किसान आंदोलन को लेकर क्यों बेफिक्र है भाजपा?

इस बार, विरोध प्रदर्शन के प्रभाव को कम होने के बारे में भाजपा नेताओं का तर्क है कि जयंत चौधरी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी) ने उसके साथ हाथ मिलाया है. जाटों के पितामह चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न देने से जाट किसानों में गुस्सा भी कम होगा. पार्टी को मौजूदा आंदोलन के वैसा प्रभाव पड़ने की कोई बड़ी संभावना नहीं दिख रही है, जो 2020-21 में था.

केंद्रीय कृषि मंत्री अर्जुन मुंडा ने भी मंगलवार को किसानों के आंदोलन के पहले दिन कहा कि आंदोलन में कुछ लोग ऐसे भी हो सकते हैं जो समाधान नहीं बल्कि इसे समस्या के रूप में देखना चाहते हैं. इसलिए, मैं किसानों से कहूंगा कि वे उन लोगों से सावधान रहें जो प्रतिकूल माहौल बनाना चाहते हैं. 

हरियाणा के मंत्री बोले- हो सकता है उनका इरादा कुछ और हो

हरियाणा के गृह मंत्री अनिल विज ने कहा है कि केंद्र किसानों से बात करने को इच्छुक है लेकिन शायद किसानों इरादा कुछ और है. उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार के मंत्री जब किसानों से बात करने चंडीगढ़ आ सकते हैं और अभी भी बात करना चाहते हैं, तो ये समझ से परे है कि किसान दिल्ली क्यों जाना चाहते हैं. हो सकता है कि उनका इरादा कुछ और हो.

बीजेपी के एक नेता ने कहा कि ऐसी खबरें हैं कि लोकसभा चुनाव के लिए शिरोमणि अकाली दल (SAD) और बीजेपी के बीच बातचीत चल रही है. ऐसे गठबंधन से पंजाब में अच्छे परिणाम सामने आ सकते थे. शायद ये आंदोलन इसलिए किया गया है कि भाजपा को इससे पंजाब में नुकसान हो. पंजाब के कुछ नेताओं ने स्वीकार किया कि विरोध प्रदर्शन से राज्य में भाजपा को नुकसान हो सकता है. 2020-21 के आंदोलन के दौरान भी शिरोमणि अकाली दल तीन कृषि कानूनों के खिलाफ NDA से बाहर हो गया था. 

आंदोलन को लेकर भाजपा ने तैयार किया ये प्लान

भाजपा के सूत्रों ने कहा कि पार्टी ने किसान आंदोलन को लेकर खास प्लान तैयार किया है. पार्टी की ओर से मतदाताओं को ये समझाया कि किसानों की मांगे अतार्किक हैं, क्योंकि MSP को कानूनी गारंटी देने से किसानों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा. सूत्रों ने बताया कि पंजाब में आम आदमी पार्टी समेत कोई भी राज्य सरकार इसे कानूनी गारंटी देने के लिए तैयार नहीं थी.

भाजपा के कुछ नेताओं का मानना है कि उत्तर प्रदेश में, जब जाट 2020-21 आंदोलन में शामिल हुए, तो गुर्जरों समेत अन्य वर्ग के लोगों ने 2021 के विधानसभा चुनावों में भाजपा को अपना समर्थन दिया. दो लोकसभा क्षेत्रों जहां सिखों की संख्या ज्यादा है, लखीमपुर और पीलीभीत में भी भाजपा ने सभी विधानसभा सीटें जीतीं. क्योंकि अन्य समुदायों को लगा कि वे (किसान आंदोलन में शामिल वर्ग) सरकार को धमकाने की कोशिश कर रहे हैं.

हरियाणा के एक बीजेपी नेता ने कहा कि 'जाट भी लोकसभा में बीजेपी के लिए बड़ी संख्या में वोट करते हैं. नहीं तो भूपेंदर सिंह हुडा और दीपेंद्र सिंह हुडा कैसे हार गए? और कभी-कभी, जब किसी राज्य में प्रमुख जाति की ओर से विरोध का दावा किया जाता है, तो अन्य जातियां अपनी असुरक्षाओं के कारण उनके खिलाफ ध्रुवीकृत हो जाती हैं. इसलिए, भाजपा अच्छा करेगी, हालांकि पार्टी ये भी चाहेगी कि ये आंदोलन जल्द और सौहार्दपूर्ण ढंग से समाप्त हो जाए.