अरे बाप रे! गर्मी से किसानों की हालत होगी पतली, 2030 तक 30% तक बढ़ सकता है कर्जा
बढ़ते तापमान और जलवायु परिवर्तन के बढ़ते खतरे के कारण अगले पांच वर्षों में कृषि और आवास ऋण खंड के 30 प्रतिशत में चूक का जोखिम बढ़ सकता है. बीसीजी द्वारा किए गए एक विश्लेषण में यह आशंका जताई गई है. रिपोर्ट के अनुसार, औसत वैश्विक तापमान पूर्व-औद्योगिक स्तर की तुलना में लगभग 1.2 डिग्री सेल्सियस बढ़ चुका है, जिसके कारण तटीय क्षेत्रों में बाढ़ आ रही है और कृषि उत्पादन में कमी आ रही है.
एक रीसेंट रिसर्च के अनुसार, बढ़ते ग्लोबल टेम्परेचर और क्लाइमेट चेंज के कारण भारतीय एग्रीकल्चरल सेक्टर पर गंभीर असर पड़ सकता है. इस अध्ययन में चेतावनी दी गई है कि यदि तापमान में वृद्धि इसी तरह जारी रही, तो 2030 तक कृषि लोन्स में 30 प्रतिशत तक चूक की संभावना बढ़ सकती है. यह रिसर्च एग्रीकल्चरल लोन देने वाली संस्थाओं, किसानों और नीति निर्माताओं के लिए एक गंभीर चिंता का विषय बन गया है.
जलवायु परिवर्तन और कृषि पर असर: रिसर्च में कहा गया है कि क्लाइमेट चेंज से होने वाली भारी बारिश, सूखा, और असामान्य मौसम परिवर्तन भारतीय कृषि की प्रोडक्टिविटी को प्रभावित कर रहे हैं. इससे किसानों की आय में कमी आएगी और उनके लिए लोन चुकाना मुश्किल हो जाएगा. जैसे-जैसे खेती पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव बढ़ेगा, वैसे-वैसे कृषि ऋणों की चुकता दर भी घटेगी, जो किसानों और लेंडर्स संस्थाओं के लिए एक बड़ा जोखिम उत्पन्न करेगा.
2030 तक चूक की संभावना में बढ़ोतरी:
अध्ययन के मुताबिक, 2030 तक तापमान में 1.5 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ोतरी होने पर कृषि क्षेत्र में लोन चूक की संभावना 30 प्रतिशत तक बढ़ सकती है. विशेष रूप से उन क्षेत्रों में, जो पहले से ही सूखा, बाढ़, या अन्य जलवायु घटनाओं से प्रभावित हैं, वहां यह असर अधिक देखने को मिलेगा. यह स्थिति किसानों को आर्थिक संकट में डाल सकती है, जिससे वे अपने लोन चुकाने में असमर्थ हो सकते हैं.
भारत में कृषि लोन एक महत्वपूर्ण वित्तीय सहारा है, जिससे किसान अपनी खेती के लिए जरूरी संसाधन प्राप्त करते हैं. लेकिन बढ़ते तापमान और जलवायु परिवर्तन के कारण फसल उत्पादन पर असर पड़ने से किसान अपनी लोन चुकाने की क्षमता खो सकते हैं. इसके परिणामस्वरूप, कृषि लोन के क्षेत्र में गंभीर वित्तीय संकट उत्पन्न हो सकता है, जो न केवल किसानों बल्कि पूरे कृषि अर्थव्यवस्था को प्रभावित करेगा.
सरकार और वित्तीय संस्थाओं के लिए सुझाव:
यह रिसर्च सरकार और वित्तीय संस्थाओं को सतर्क करने के लिए है, ताकि वे जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को ध्यान में रखते हुए कृषि लोन की नीति में बदलाव करें. सरकार को किसानों को क्लाइमेट चेंज के प्रभाव से बचाने के लिए बेहतर संरक्षण योजनाओं और समर्थन कार्यक्रमों पर ध्यान केंद्रित करना होगा. इसके अलावा, वित्तीय संस्थाओं को ऋण चुकाने की क्षमता को बढ़ाने के लिए किसानों के लिए बेहतर बीमा योजनाएं और अन्य राहत उपाय पेश करने होंगे.
यह अध्ययन यह स्पष्ट करता है कि जलवायु परिवर्तन के कारण भारतीय कृषि पर गंभीर असर पड़ेगा, और इससे कृषि लोन की चूक दर में बढ़ोतरी होगी. सरकार, वित्तीय संस्थाओं और कृषि विभाग को मिलकर इस चुनौती का समाधान खोजने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे, ताकि किसानों को भविष्य में जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से बचाया जा सके और कृषि लोन की चुकता दर को नियंत्रित किया जा सके.