दिल्ली उच्च न्यायालय ने चुनाव से पहले राजनीतिक दलों द्वारा मुफ्त योजनाओं और धनराशि से जुड़े वादों को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया.
अदालत ने कहा कि इस मामले पर पहले से ही उच्चतम न्यायालय में सुनवाई जारी है.
मुख्य न्यायाधीश डी. के. उपाध्याय और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की पीठ ने याचिकाकर्ता को सलाह दी कि वह इस मुद्दे को सर्वोच्च न्यायालय में उठाएं. अदालत ने स्पष्ट किया कि सुप्रीम कोर्ट दो महत्वपूर्ण पहलुओं पर पहले से सुनवाई कर रहा है. पहला, चुनावों से पहले मतदाताओं को मुफ्त योजनाओं का लाभ देना और दूसरा, क्या यह आचार संहिता के तहत भ्रष्टाचार की श्रेणी में आता है.
इस मामले में याचिकाकर्ता एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश हैं, जिन्होंने दलील दी थी कि चुनावी लाभ के लिए मुफ्त योजनाओं की घोषणा करना लोकतंत्र की निष्पक्षता पर प्रश्नचिह्न खड़ा करता है. हालांकि, दिल्ली हाईकोर्ट ने मामले को सुप्रीम कोर्ट के विचाराधीन बताते हुए हस्तक्षेप से इनकार कर दिया .
चुनावी वादों में मुफ्त योजनाओं की वैधता पर बहस लंबे समय से जारी है. यह मामला अब सर्वोच्च न्यायालय में विचाराधीन है, जहां इस पर अंतिम निर्णय लिया जाएगा.
हालांकि अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता ने एक ‘महत्वपूर्ण और बड़ा मुद्दा’ उठाया है. याचिकाकर्ता के वकील ने याचिका वापस लेने की मांग की और पीठ ने इसकी अनुमति दे दी.
दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश एस एन ढींगरा, जो याचिकाकर्ता हैं, ने राजनीतिक दलों द्वारा मुफ्त चीजें देने की घोषणा पर आपत्ति जताई और कहा कि पूरी चुनाव प्रक्रिया उच्चतम न्यायालय द्वारा निर्धारित कानून का उल्लंघन है. हालांकि, यह याचिका दिल्ली चुनाव से कुछ दिन पहले दायर की गई थी, लेकिन बुधवार को इस पर सुनवाई हुई.
उनके वकील ने कहा कि याचिका में राजनीतिक दलों द्वारा मुफ्त उपहार वितरित करने के उद्देश्य से मतदाताओं के डेटा एकत्र करने का मुद्दा भी उठाया गया है.
भारत निर्वाचन आयोग (ईसीआई) के वकील ने दलील दी कि उच्चतम न्यायालय अश्विनी कुमार उपाध्याय मामले में मुफ्त उपहारों के मुद्दे पर पहले से ही विचार कर रहा है.