Electoral bonds Revelations: चुनाव आयोग ने रविवार को चुनावी बॉन्ड योजना से जुड़े ताजा आंकड़ों का खुलासा किया है. चुनाव आयोग ने ये डिटेल्स सीलबंद कवर में सुप्रीम कोर्ट को सौंपे थे जिसे बाद में सर्वोच्च अदालत की ओर से सार्वजनिक करने का आदेश दिया गया था. अब चुनाव आयोग ने ये डेटा अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर अपलोड किया है.
चुनाव आयोग पर अपलोड की इस जानकारी के अनुसार यह डेटा 12 अप्रैल 2019 से पहले का है, जिसके तहत एमके स्टालिन के नेतृत्व वाली डीएमके को चुनावी बॉन्ड के माध्यम से ₹656.5 करोड़ प्राप्त हुए, जिसमें सैंटियागो मार्टिन की फ्यूचर गेमिंग कंपनी द्वारा खरीदे गए बॉन्ड भी शामिल हैं. आइये चुनाव आयोग की ओर से जारी किए गए इन आकंड़ों की 5 सबसे बड़ी बातों पर नजर डालते हैं:
चुनाव आयोग पर अपलोड किए गए डेटा के अनुसार बीजेपी ने 2019-20 के दौरान ₹2,555 करोड़ और 2017-18 में ₹1,450 करोड़ के चुनावी बॉन्ड भुनाए थे. यह भारी धन राशि बीजेपी को चुनावों में बाकी दलों के मुकाबले ज्यादा आर्थिक लाभ देती है. उदाहरण के लिए, 2024 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी ने ₹5,000 करोड़ से अधिक खर्च करने की योजना बनाई है, जो कि किसी भी अन्य पार्टी की ओर से खर्च किए जाने के प्लान से कई गुना ज्यादा है.
इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए भारी चुनावी चंदा प्राप्त करने वालों में कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस पार्टी भी ज्यादा पीछे नहीं हैं. जहां कांग्रेस ने 2019-20 में ₹1,334.35 करोड़ और 2017-18 में ₹1,084.25 करोड़ के चुनावी बॉन्ड भुनाए तो वहीं पर तृणमूल कांग्रेस ने 2019-20 में ₹1,397 करोड़ और 2017-18 में ₹472.5 करोड़ के चुनावी बॉन्ड भुनाए. चुनावी बॉन्ड भुनाने के मामले में जहां कांग्रेस दूसरे पायदान पर रही तो वहीं पर ममता बनर्जी की टीएमसी तीसरे नंबर पर रही और इन पैसों का इस्तेमाल अपने पॉलिटिकल कैंपेन को चलाने और चुनावों में प्रचार करने के लिए किया.
इलेक्टोरल बॉन्ड का फायदा सिर्फ राष्ट्रीय पार्टियों तक सीमित नहीं रहा बल्कि कई क्षेत्रीय पार्टियों ने भी इसका खूब लाभ उठाया, इसमें बीजेडी, वाईएसआर कांग्रेस, टीडीपी, और बीआरएस जैसे क्षेत्रीय दल शामिल रहे. जहां बीजेडी ने ₹944.5 करोड़ रुपए बॉन्ड से भुनाए तो वहीं पर वाईएसआर कांग्रेस ने भी ₹442.8 करोड़ के इलेक्टोरल बॉन्ड को कैश कराया. वहीं क्षेत्रीय दलों में सबसे ज्यादा चुनावी चंदा भुनाने के मामले में बीआरएस तीसरे पायदान पर रही जिसने ₹1322 करोड़ के इलेक्टोरल बॉन्ड भुनाए. यह धन इन दलों को अपने राज्यों में अपनी स्थिति को मजबूत करने और राष्ट्रीय राजनीति में अपनी भूमिका बढ़ाने में मदद करता है.
चुनावी बॉन्ड योजना के आने से पहले, राजनीतिक दल मुख्य रूप से व्यक्तिगत दान, पार्टी सदस्यता शुल्क, और निगमों से दान पर निर्भर थे. हालांकि चुनावी बॉन्ड योजना ने राजनीतिक दलों के लिए धन जुटाने का एक नया और अधिक सुविधाजनक तरीका प्रदान किया और राजनीतिक दलों के लिए धन जुटाने का तरीका बदल दिया. इसके तहत दानदाता गुमनाम रूप से बॉन्ड खरीदकर राजनीतिक दलों को दान कर सकते हैं.
भले ही सुप्रीम कोर्ट ने इसको लेकर तीखी टिप्पणी की है लेकिन काफी हद तक इस योजना से पारदर्शिता आई है. उदाहरण स्वरूप एमके स्टालिन के नेतृत्व वाली डीएमके को सैंटियागो मार्टिन की फ्यूचर गेमिंग कंपनी द्वारा खरीदे गए बॉन्ड से ₹509 करोड़ मिले. यह गुमनाम दान चुनावी बॉन्ड योजना के तहत संभव हुआ.
चुनावी बॉन्ड योजना के आंकड़े राजनीतिक दलों के वित्तपोषण में पारदर्शिता लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. यह डेटा हमें यह समझने में मदद करता है कि कौन से दल सबसे अधिक धन प्राप्त करते हैं, और यह धन कहां से आता है. हालांकि, इस योजना की कुछ कमियां भी हैं. सबसे बड़ी चिंता यह है कि यह योजना राजनीतिक दलों को गुमनाम दान प्राप्त करने की अनुमति देती है. इससे भ्रष्टाचार और धन शक्ति का प्रभाव बढ़ सकता है. यह महत्वपूर्ण है कि चुनाव आयोग चुनावी बॉन्ड योजना की निगरानी जारी रखे और इसे और अधिक पारदर्शी बनाने के लिए कदम उठाए.
आपको बता दें कि चुनावी बॉन्ड योजना 2017 में शुरू की गई थी जो कि राजनीतिक दलों को गुमनाम दान प्राप्त करने की अनुमति देती थी.हालांकि सुप्रीम कोर्ट की ओर से पिछले महीने इस कानून को असंवैधानिक बताने के बाद अब इस योजना को समाप्त कर दिया गया है और एसबीआई किसी भी तरह का कोई इलेक्टोरल बॉन्ड नहीं बेच सकती है.