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मुस्लिम महिलाओं के लिए बदलाव ला सकती है शिक्षा, इज्जतदार जिंदगी के लिए भी है जरूरी

बदलते समय के साथ-साथ शिक्षा बेहद जरूरी होती जा रही है. भारत में मुस्लिम समुदाय में शिक्षा का स्तर चिंता का विषय है. शिक्षा में सुधार के साथ-साथ महिलाओं की शिक्षा बेहद जरूरी है. इज्जतदार जिंदगी जीने के लिए यह बेहद जरूरी है कि महिलाएं शिक्षा हासिल करें और अपने पैरों पर खड़ी हों ताकि आर्थिक जरूरतों के लिए उन्हें अपने पिता, भाई, पति या फिर बेटे पर निर्भर न होना पड़े.

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Women Education
Courtesy: Social Media

इस्लाम में शिक्षा ग्रहण करने को बहुत अहमियत दी गई है. यह इस बात से भी स्पष्ट होता है कि अल्लाह ने पैगंबर मोहम्मद को जो पहला शब्द दिया, वह था 'इकरा'. इसका मतलब है, पढ़ो, दोहराओ और जोर से पढ़ो. अगर इसको और गहनता से देखें तो इकरा शब्द का मतलब है, समझना, विश्लेषण करना, परीक्षण करना, समझाना, पढ़ना आदि. कुरान भी पढ़ने की जरूरत पर जोर देता है. पढ़ना, छानबीन करना और जानना हर मुस्लिम के लिए जरूरी हुक्म है यानी शिक्षा ग्रहण करना एक पवित्र कर्तव्य है. एक मुस्लिम और कुरान के अनुयायी होने के नाते हमें अपने लिए यह जरूरी करना चाहिए कि हम जीवन के हर हिस्से में शिक्षा ग्रहण करें, ताकि हम दोनों दुनिया में सफल हो सकें.

जामिया मिल्लिया इस्लामिया में असिस्टेंट प्रोफेसर सदफ फातिमा अपने सफर को याद करते हुए कहती हैं, 'पितृसत्ता वाले इस समाज में एक मुस्लिम महिला होने के नाते अपने लिए जगह बना पाना मेरे लिए बेहद मुश्किल था. अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से पीएचडी करने के बाद मैंने जामिया मिल्लिया इस्लामिया में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर ज्वाइन किया. यह संभव हो पाया क्योंकि पिछले एक दशक में सरकार ने मुस्लिम महिलाओं पर विशेष ध्यान दिया है और अवसरों की समानता सुनिश्चित की है. मैंने अपने जीवन में यह महसूस किया है कि शिक्षित होना समाज में कितना जरूरी है.'

वह कहती हैं, 'मुझे ज्यादातर सामाजिक कार्यक्रमों से खुद को दूर करना पड़ा, कई रातें बिना सोए गुजारनी पड़ीं, इसके अलावा महिलाओं और पुरुषों दोनों से प्रतियोगिता करनी पड़ी, पुरुषों के दबदबे वाले समाज में उनके ईगो को झेलना पड़ा. इसके बावजूद, यह सफर अच्छा रहा है. मैं मानती हूं कि मेरा जीवन उन महिलाओं से काफी बेहतर रहा है जो अपनी आर्थिक जरूरतों के लिए दूसरों पर निर्भर रहती हैं. मैं खुद के लिए खड़ी हो सकती हूं और अगर कोई मेरा साथ ना भी दे तब भी मैं अपने फैसले खुद ले सकती हूं. समाज में मेरी खुद की पहचान है, जहां लोग मुझे मेरे नाम से जानते हैं ना कि किसी की पत्नी, बेटी या बहन के रूप में.'

'शिक्षा दिलाती है इज्जत'

सदफ आगे लिखती हैं, 'जब आप काम करते हैं और अपने लिए कमाते हैं तो लोग आपको इज्जत की नजर से देखते हैं. आप अपनी जरूरतों और इच्छाओं के लिए दूसरों पर निर्भर नहीं रहते हैं. आप अपने परिवार के फैसलों में शामिल हो सकते हैं और अपने साथ-साथ अपने परिवार के लोगों का भविष्य भी बेहतर बनाते हैं. आप अपनी इच्छा के अनुसार गर्व से अपना जीवन जी सकते हैं. मैंने कई महिलाओं को अपनी योग्यता साबित करने और अपनी जरूरतों के लिए लड़ते देखा है. अगर हमारे समाज की युवा लड़कियां कड़ी मेहनत करने और सभी चुनौतियां लेने के लिए तैयार हैं तो वे बड़े और संभव लक्ष्यों को अपना निशाना बना सकती हैं.'

उन्होंने आगे लिखा है, 'सीमा आसमान है वाली कहावत हर उस शख्स के लिए सही साबित होती है जो नजरअंदाज करने और धैर्य रखने की क्षमता रखता है. बच्चों की शिक्षा, खासकर बेटियों की शिक्षा के लिए कई चीजें जरूरी हैं. उदाहरण के लिए- बच्चे, परिवार, रिश्तेदार, स्कूल, शिक्षक और मोहल्ला. अगर कोई लड़की पढ़ना चाहती है और अपना करियर बनाना चाहती है तो उसे हर तरफ से मदद की जरूरत होगी. भारत की सरकार लड़कियों की शिक्षा को हर तरह से प्रोत्साहित करती है.  भारत की सरकार ने लड़कियों की शिक्षा को प्रोत्साहित करने और जरूरतमंदों की मदद के लिए कई योजनाएं चला रखी हैं.'

लड़कियों के लिए हैं ये योजनाएं

साल 2015 में लॉन्च की गई बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ (BBBP) योजना का लक्ष्य लड़कियों की शिक्षा को बढ़ावा देना है. इस योजना के तहत उन जिलों में काम किया जाता है, जहां लैंगिक अनुपात कम है. उन जिलों में लड़कियों की शिक्षा और स्वास्थ्य के लिए आर्थिक मदद भी दी जाती है.

समाज के कमजोर वर्ग की लड़कियों को शिक्षित करने के लिए साल 2004 में कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय (KGBV) योजना शुरू की गई थी. इस योजना के तहत उन इलाकों में लड़कियों के लिए आवासीय विद्यालय खोले जाते हैं, जहां महिला साक्षरता दर कम है. इन स्कूलों में लड़कियों को 8वीं तक पढ़ाया जाता है और उनके लिए हॉस्टल  का भी इंतजाम किया जाता है. इस योजना का लक्ष्य अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यक वर्ग और गरीबी रेखा से नीचे जीने वाले परिवारों की लड़कियों शैक्षिक सेवा देना है.

साल 2015 में शुरू की गई सुकन्या समृद्धि योजना लड़कियों के लिए एक छोटी बचत योजना है. इस योजना के तहत बेटियों के नाम पर उनके माता-पिता बचत खाते खोल सकते हैं जिनमें 7.6 प्रतिशत का ब्याज मिलता है. हर साल 24 जनवरी को भारत में नेशनल गर्ल चाइल्ड डे मनाया जाता है ताकि भारत में लड़कियों की शिक्षा और उनके सामने आने वाली चुनौतियों को लेकर जागरूकता फैलाई जा सके. 

नेशनल मीन्स-कम मेरिट स्कॉलरशिप (NMMS) योजना के तहत उन बच्चों को आर्थिक सहायता दी जाती है जो गरीब वर्ग से आते हैं, ताकि वे उच्च शिक्षा हासिल करें. इस योजना के तहत 8वीं कक्षा की परीक्षा में अच्छे नंबर लाने वाले विद्यार्थियों को स्कॉलरशिप दी जाती है.

राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान (RMSA) योजना साल 2009 में शुरू की गई थी. इसका लक्ष्य भारत के सेकेंडरी स्कूलों में दी जाने वाली शिक्षा में सुधार लाना था. इस योजना के तहत स्कूलों को आर्थिक सहायता दी जाती है, ताकि उनमें आधारभूत सुविधाएं बेहतर हो सकें, शिक्षकों को ट्रेनिंग मिल सके और लड़कियों के हिसाब से नीतियां बनाई जा सकें.

ऐसी ही एक योजना नेशनल स्कॉलरशिप फॉर हायर एजुकेशन ऑफ एसटी गर्ल्स है. इसके तहत, उच्च शिक्षा ग्रहण करने वाली आदिवासी लड़कियों को आर्थिक सहायता दी जाती है. यह स्कॉलरशिप उन लड़कियों को दी जाती है जिन्होंने 10वीं पास कर ली हो और उच्च शिक्षा के लिए एडमिशन ले लिया. यह लिस्ट और लंबी है लेकिन बात एकदम स्पष्ट है.

कितनी जरूरी है शिक्षा?

शिक्षा हमारे दैनिक जीवन में अहम भूमिका निभा सकती है. हालांकि, बीते समय में मुस्लिमों में साक्षरता दर उत्साहजनक नहीं रही है. नेशनल स्टैटिस्टिकल ऑफिस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 80.6 प्रतिशत मुस्लिम पुरुषों में साक्षरता दर SC/ST समुदाय के लोगों से कम थी. इसके अलावा, उच्च शिक्षा के लिए एडमिशन कराने वाले मुस्लिमों की संख्या भी घटती जा रही है. मुस्लिम महिलाओं की साक्षरता दर राष्ट्रीय औसत की तुलना में और बाकी किसी भी धर्म की महिलाओं की तुलना में भी कम थी. ये आंकड़े साफतौर पर बताते हैं कि मुस्लिमों में शिक्षा का स्तर बहुत कम है और यह राष्ट्रीय औसत से काफी नीचे है. शिक्षा में पढ़ाने या सीखने की प्रकिया, खासतौर पर स्कूल या कॉलेज में सीखने की प्रक्रिया या अन्य तरीकों से ज्ञान अर्जित करना शामिल है.

निजी या प्रोफेशनल जीवन में किसी भी तरह का कौशल सीखने या कुछ अन्य चीजें सीखना भी शिक्षा में ही आता है. लोगों को सभी प्रोफेशनल स्किल और योग्यताएं विकसित करनी चाहिए ताकि वे अपनी पसंद और क्षमता के मुताबिक, अपना करियर बना सकें. यह प्रक्रिया लोगों को अपने जीवन में बहुत पहले ही शुरू कर देनी चाहिए. स्कूल और कॉलेज से इतर देशभर में बहुत सारे सरकारी और निजी विश्वविद्यालय हैं जो लोगों को उच्च शिक्षा हासिल करने के लिए बेहतर मौके और उचित प्लेटफॉर्म देते हैं. 

हर इंसान को शिक्षा का अधिकार होना चाहिए. शिक्षा न सिर्फ उस शख्स के जीवन में बल्कि देश के विकास में भी अहम भूमिका निभाती है. शिक्षा की वजह से न सिर्फ उस शख्स का जीवन बेहतर होता है बल्कि यह उस शख्स के परिवार, समाज, देश और पूरी दुनिया के लिए फायदेमंद हो सकती है. किसी विषय विशेष में अच्छे से शिक्षित होने से एक शख्स को अच्छे पैसों वाली नौकरी मिलती है या फिर उसे अपने परिवार की आर्थिक जरूरतें पूरी करने के लिए एक अच्छा कारोबार खड़ा करने में मदद मिलती है.

अच्छे से शिक्षित एक शख्स एक सुरक्षित और स्थिर जीवन जी सकता है जिसमें उसकी सभी मूलभूत जरूरतें पूरी होती हैं जिससे उसी जिंदगी का स्तर बेहतर होता है. आत्मविश्वास से भरा ऐसा जीवन जीने से वह शख्स अपनी सेहत और भविष्य की बेहतरी के लिए अच्छे फैसले ले पाता है. इसके अलावा, यह हमारे लिए भी जरूरी है कि हम एक भावुक साक्षरता हासिल करें ताकि हम अच्छे रिश्ते बना सकें और अपने आसपास बेहतर माहौल बनाएं. 

पढ़ाई और नौकरी से इतर भी जरूरी है शिक्षा

यही नहीं, शिक्षा के जरिए लोगों को अपनी बुद्धिमत्ता और इंसानियत साबित करने वाला इंसान भी बनना चाहिए. जब हम हर शख्स के लिए चिंतित होते हैं, हम समाज की जरूरतों के बारे में सोचते हैं तब हम अपनी क्षमता और अपने कौशल को नए और प्रभावी तरीके से इस्तेमाल करते हैं और ऐसी समस्याओं का हल निकालते हैं. इससे रचनात्मकता आती है और नई-नई खोज होती हैं और एक राष्ट्र के निर्माण के लिए यही बेहद जरूरी है. जब हम अच्छे से शिक्षित होते हैं तब हमारे अंदर दुनिया को बदल डालने की क्षमता होती है और हम समाज और देश को कई अन्य तरीकों से भी फायदा पहुंचाते हैं. शिक्षित लोग कानून का पालन करना और कानून का राज बनाए रखते हुए समाज में शांति बनाए रखना जानते हैं. दुनिया में शांति स्थापित करने और युद्ध के साथ-साथ आतंकवाद रोकने के लिए शिक्षा एक अहम टूल है.

अब वह समय आ गया है जब लड़कियों को कम उम्र में ही स्वतंत्र जीवन की अहमियत सिखाई जाए. हमें एक ऐसा समाज बनाना होगा, जहां लड़कियां अपनी जरूरतों के लिए दूसरों पर निर्भर न रहें. हम महिलाओं को अपने भाई, पिता, पति या बेटों को आय के स्रोत के रूप में नहीं देखना चाहिए. नौकरी करने वाली एक महिला के रूप में मेरा संदेश साफ है कि खुद को शिक्षित करें और एक सम्मानजनक जीवन जिएं.


(यह लेख प्रोफेसर सदफ फातिमा ने लिखा है. वह जामिया मीलिया इस्लामिया में पढ़ाती हैं. वह इसी यूनिवर्सिटी के सबसे बड़े गर्ल्स हॉस्टल की वॉर्डन भी रह चुकी हैं.)