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India Daily

ED ने पिछले 10 सालों में 193 नेताओं के खिलाफ दर्ज किए केस, केवल 2 को मिली सजा: केंद्र सरकार का खुलासा

सीपीआई(एम) सांसद एए रहीम ने यह भी पूछा था कि क्या हाल के वर्षों में विपक्षी नेताओं के खिलाफ ईडी के मामलों में वृद्धि हुई है और यदि हां, तो इसके पीछे क्या कारण है.

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Edited By: Sagar Bhardwaj
ED cases against politicians and proven guilty CPIM MP AA Rahim Central Government in Parliament

केंद्र सरकार ने संसद में बताया है कि पिछले एक दशक में प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने नेताओं के खिलाफ 193 मामले दर्ज किए हैं. इनमें से केवल दो मामलों में सजा हो पाई है, जबकि किसी भी मामले में मेरिट के आधार पर बरी होने की जानकारी नहीं मिली है. यह जानकारी वित्त मंत्रालय ने राज्यसभा में सीपीआई(एम) सांसद एए रहीम के सवालों के जवाब में दी.

रहीम ने पिछले दस वर्षों में सांसदों, विधायकों और स्थानीय प्रशासन के सदस्यों के खिलाफ दर्ज ईडी मामलों की संख्या, उनकी पार्टी, राज्य और साल के हिसाब से विवरण मांगा था. जवाब में वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने कहा कि ईडी द्वारा सांसदों, विधायकों और स्थानीय प्रशासकों के खिलाफ दर्ज मामलों का पार्टी और राज्य के आधार पर डेटा अलग से नहीं रखा जाता. हालांकि, पिछले 10 सालों में मौजूदा और पूर्व सांसदों, विधायकों, एमएलसी और राजनीतिक नेताओं या किसी भी राजनीतिक दल से जुड़े लोगों के खिलाफ दर्ज मामलों का साल-दर-साल विवरण एक टेबल में प्रस्तुत किया गया.

डेटा से पता चलता है कि 2019-2024 की अवधि में ईडी के मामलों में तेजी आई, जिसमें सबसे अधिक 32 मामले 2023-2024 की अवधि में दर्ज किए गए. मंत्री ने बताया कि इनमें से दो मामलों में सजा हुई है- एक 2016-2017 में और दूसरा 2019-2020 में.

रहीम ने यह भी पूछा था कि क्या हाल के वर्षों में विपक्षी नेताओं के खिलाफ ईडी के मामलों में वृद्धि हुई है और यदि हां, तो इसके पीछे क्या कारण है. इस पर मंत्री ने जवाब दिया कि ऐसी कोई जानकारी मेंशन नहीं की जाती.

सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी और कम सजा दर
सुप्रीम कोर्ट ने कई मौकों पर मनी लॉन्ड्रिंग मामलों में कम सजा दर पर चिंता जताई है. पिछले साल नवंबर में टीएमसी विधायक पार्थ चटर्जी की जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने मौखिक रूप से कहा था कि ईडी की सजा दर बहुत कम है और पूछा था कि एक व्यक्ति को कब तक विचाराधीन रखा जा सकता है. इससे पहले कोर्ट ने यह भी रेखांकित किया था कि पिछले दस सालों में ईडी द्वारा दर्ज 5000 मामलों में केवल 40 में सजा हुई है. कोर्ट ने ईडी को गुणवत्तापूर्ण अभियोजन पर ध्यान देने की सलाह दी थी.

अरविंद केजरीवाल मामले में फैसले के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि पीएमएलए (मनी लॉन्ड्रिंग निवारण अधिनियम) के तहत शिकायतों और गिरफ्तारियों का डेटा "कई सवाल खड़े करता है" और गिरफ्तारी के लिए एक समान नीति की जरूरत पर जोर दिया था.

हालिया आंकड़े
दिसंबर 2024 में केंद्र सरकार ने संसद को सूचित किया कि 1 जनवरी, 2019 से 31 अक्टूबर, 2024 के बीच ईडी द्वारा मनी लॉन्ड्रिंग के अपराध के लिए दर्ज मामलों में 911 अभियोजन शिकायतें दायर की गईं. इनमें से 654 मामलों में सुनवाई पूरी हुई और केवल 42 में सजा मिली, यानी सजा दर 6.42% रही.

सुधारों पर सरकार का जवाब
रहीम ने यह भी पूछा था कि क्या सरकार ने ईडी जांच की पारदर्शिता और दक्षता बढ़ाने के लिए कोई सुधार किए हैं. इसके जवाब में मंत्री ने कहा, "प्रवर्तन निदेशालय भारत सरकार की एक प्रमुख कानून प्रवर्तन एजेंसी है, जिसे मनी लॉन्ड्रिंग निवारण अधिनियम, 2002 (PMLA), विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम, 1999 (फेमा) और भगोड़ा आर्थिक अपराधी अधिनियम, 2018 (FOMA) के प्रशासन और प्रवर्तन का जिम्मा सौंपा गया है. ईडी विश्वसनीय साक्ष्यों और सामग्री के आधार पर मामले उठाती है और राजनीतिक संबद्धता, धर्म या अन्य आधार पर भेदभाव नहीं करती. साथ ही, ईडी के कार्य हमेशा न्यायिक समीक्षा के दायरे में रहते हैं. यह एजेंसी विभिन्न न्यायिक मंचों जैसे अधिनिर्णय प्राधिकरण, अपीलीय न्यायाधिकरण, विशेष अदालतों, उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय के प्रति जवाबदेह है."