Delhi High Court: दिल्ली हाई कोर्ट ने एक मामले पर फैसला सुनाते हुए कहा कि हाई स्पीड में गाड़ी चलाने का मतलब यह नहीं है कि चालक ने लापरवाही की हो. अदालत ने इस मामले में सुनवाई के बाद याचिकाकर्ता को बरी कर दिया, जिस पर आरोप था कि उसने 2012 में दो पैदल यात्रियों की हत्या कर दी.
इस मामले में 2022 में आरोपी को 18 महीने के लिए जेल की सजा दी गई थी, जिसके खिलाफ उसने दिल्ली हाई कोर्ट में अपील दायर की गई थी. इसी मामले पर सुनवाई के दौरान दिल्ली हाई कोर्ट ने यह बयान दिया है.
याचिकाकर्ता पर आरोप था कि उसने हाई स्पीड गाड़ी चलाते हुए नियंत्रण खोकर पैदल चल रहे दो यात्रियों को टक्कर मार दी. अपनी अपील में व्यक्ति ने दावा किया कि अचानक टायर फटने की वजह से नियंत्रण खो दिया. वहीं मामले की सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति बनर्जी ने गवाहों के बयान भी सुनें. सभी गवाहों के बयानों की जांच भी कई गई. जिसमें यह साबित नहीं किया जा सक है कि आरोपी ने कार को हाई स्पीड पर चलाया गया हो. जिसके बाद अदालत ने याचिकाकर्ता की अपील को स्वीकार लिया. केवल तेज गति से वाहन चलाने के मामले का उपयोग यह निष्कर्ष निकालने के लिए नहीं किया जा सकता कि याचिकाकर्ता तेज और लापरवाही से वाहन चला रहा था.
न्यायाधीश ने मामले में खामियों के लिए अभियोजन पक्ष को भी दोषी ठहराया और कहा कि वह उचित संदेह से परे यह साबित करने में सक्षम नहीं था कि व्यक्ति तेज और लापरवाही से वाहन चला रहा था, जिससे दो पैदल यात्रियों की मौत हो गई. अदालत ने यह भी देखा कि अभियोजन पक्ष ने इस मामले में अदालत को यह नहीं बताया कि दुर्घटना के समय, वाहन की स्थिति और याचिकाकर्ता द्वारा दावा किए गए अनुसार क्या वास्तव में टायर पंक्चर था या नहीं. न्यायाधीश ने स्पष्ट किया कि सजा या दोषसिद्धि को आकर्षित करने के लिए अभियुक्त का कार्य जो मृत्यु या चोट का कारण बनता है, वह तेज या लापरवाह व्यवहार के कारण होना चाहिए. इस प्रकार, इस अदालत को रिकॉर्ड पर ऐसा कोई सबूत नहीं मिला जो दर्शाता हो कि याचिकाकर्ता वास्तव में तेज और लापरवाही से कार चला रहा था.