सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कानूनी मसौदा तैयार करने में होने वाली गलतियों के को रेखांकित किया. शीर्ष अदालत ने कहा जब आप कोई याचिका दायर करते हैं तो उसमें गलती न करें. कोर्ट ने त्रुटियों और विसंगतियों से भरी एक खराब तरीके से तैयार की गई याचिका प्रस्तुत करने के लिए एक वकील को फटकार लगाई.
न्यायमूर्ति राजेश बिंदल और न्यायमूर्ति पीबी वराले की पीठ ने जमानत मामले में बहस कर रहे एक वकील से पूछा कि क्या किसी ने इस अदालत में याचिका दायर करने से पहले इसे पढ़ने की जहमत उठाई? क्या आपने एक बहस करने वाले और मसौदा तैयार करने वाले वकील के रूप में यह भी जांचा कि आप क्या दाखिल कर रहे हैं? क्या सुप्रीम कोर्ट में कोई कूड़ा फेंका जा सकता है?
पीठ याचिका की जांच करने के बाद निराशा दिखा. जो याचिका दायर की गई थी उसमें कई गलतियां थीं. साथ किसी अन्य मामले की नकल की गई थी. याचिका में याचिकाकर्ता के लिए नियमित जमानत की मांग की गई थी, लेकिन इसके बजाय अग्रिम जमानत का संदर्भ दिया गया था.
पीठ ने कहा हम आपकी याचिका का एक हिस्सा पढ़ रहे हैं? आपने 'बाउंड' को 'बॉन्ड' लिखा है. फिर आप कहते हैं कि आप अग्रिम जमानत के खिलाफ अपील कर रहे हैं. क्या आपकी याचिका अग्रिम जमानत की अस्वीकृति के खिलाफ है? पीठ ने कहा कि आप कैसे उम्मीद करते हैं कि आप अपनी याचिका के बारे में कुछ समझेंगे? याचिका का न तो कोई सिर है और न ही कोई पूंछ.
पीठ ने मसौदा तैयार करने की गुणवत्ता की तीखी आलोचना की तथा इस बात पर जोर दिया कि इस तरह की लापरवाही किसी भी कानूनी व्यवस्था में अस्वीकार्य है, सर्वोच्च न्यायालय की तो बात ही छोड़िए. पीठ ने टिप्पणी की, "जब इस तरह से याचिका दायर की जाती है तो कोई भी अदालत कुछ कैसे समझ सकती है?
याचिका दायर करने वाले वकील ने अपनी गलती मानी और अदालत माफी मांगी. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने अपना कड़ा रुख कायम रखते हुए याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया. सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों में न्यायमूर्ति बीआर गवई दलीलों की गुणवत्ता और उपयुक्तता को लेकर विशेष रूप से सतर्क रहे हैं. नवंबर 2022 में न्यायमूर्ति गवई की अगुवाई वाली पीठ ने एक एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड (एओआर) को अवमानना का कारण बताओ नोटिस जारी किया, जिसने एक याचिका पर हस्ताक्षर किए थे जिसमें एक उच्च न्यायालय के खिलाफ तीखी टिप्पणी की गई थी और वहां के न्यायाधीशों पर पक्षपात का आरोप लगाया गया था.