Supreme Court Reprimand NIA: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि आरोपों की गंभीरता के बावजूद हर आरोपी को जल्द सुनवाई का अधिकार है और गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के तहत आरोप लगाए जाने के बाद चार साल से जेल में बंद एक व्यक्ति की जमानत याचिका का विरोध करने के लिए राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को फटकार लगाई है.
दो न्यायाधीशों की बेंच की अध्यक्षता कर रहे न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला ने आरोपी जावेद गुलाम नबी शेख को जमानत देते हुए कहा,'न्याय का मजाक न उड़ाएं...आप राज्य हैं; आप एनआईए हैं...उसे (आरोपी को) जल्द सुनवाई का अधिकार है, चाहे उसने कोई भी अपराध किया हो. उसने गंभीर अपराध किया हो, लेकिन मुकदमा शुरू करना आपका दायित्व है. वह पिछले चार साल से जेल में है. आज तक आरोप तय नहीं हुआ है.'
यह देखते हुए कि केंद्रीय एजेंसी ने 80 गवाहों की जांच करने का प्रस्ताव दिया था, बेंच, जिसमें न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां भी शामिल थे, ने पूछा, "हमें बताएं कि उसे कितने साल जेल में रहना चाहिए?" हालांकि एनआईए के वकील ने और समय की मांग की, लेकिन अदालत ने सुनवाई स्थगित करने से इनकार कर दिया.
कोर्ट ने एजेंसी को डांटते हुए आरोपी की दी जमानत
बेंच ने अपने आदेश में कहा, "जैसा कि संविधान में निहित है, हर आरोपी को अपराध चाहे कितना भी गंभीर क्यों न हो, जल्द सुनवाई का अधिकार है." साथ ही कहा कि इस मामले में, उसे विश्वास है कि इस अधिकार का हनन किया गया है, जिससे अनुच्छेद 21 का उल्लंघन हुआ है.
सुप्रीम कोर्ट ने इस तथ्य पर भी ध्यान दिया कि मामले में दो सह-आरोपियों को पहले ही जमानत मिल चुकी है. एक गुप्त सूचना के आधार पर, मुंबई पुलिस ने 9 फरवरी, 2020 को शेख को गिरफ्तार किया और उसके पास से कथित तौर पर पाकिस्तान से आने वाली नकली मुद्रा बरामद की. इस साल फरवरी में, बॉम्बे हाई कोर्ट ने उसकी जमानत याचिका खारिज कर दी, जिसके बाद उसने सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया.