आतंकियों का नया ग्रुप... काम करने का तरीका भी अलग; आतंकी हमलों को कैसे अंजाम दे रहे दहशतगर्द

Doda Attack: एक अधिकारी ने कहा कि दोनों समूहों ने बॉडी कैमरों का उपयोग करके हमलों के वीडियो बनाए हैं और एक बैकएंड टीम प्रचार के लिए टूटी-फूटी अंग्रेजी में पोस्ट डालती है. वे कभी-कभी रॉबर्ट फ्रॉस्ट जैसे प्रसिद्ध लेखकों के कोट्स का भी यूज करते हैं. एक अधिकारी ने आतंकियों तक पहुंच न पाने के पीछे की वजहों के बारे में बताया कि वे अक्सर हमलों को अंजाम देकर जंगलों में भाग जाते हैं.

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Doda Attack: जम्मू इलाके में हाल ही में हुए आतंकी हमलों के पीछे पिछले 6 महीनों में घुसपैठ करने वाले 'आतंकवादियों के नए समूह' का हाथ होने का संदेह है. इनमें पाकिस्तान के पंजाब और खैबर पख्तूनख्वा क्षेत्रों से आए लड़ाके शामिल हैं. सूत्रों के अनुसार, जहां पहले पुंछ-राजौरी में हुए हमलों की जिम्मेदारी 'पीपुल्स एंटी-फासीस्ट फ्रंट' ने ली थी, वहीं बाद में हुए हमलों की जिम्मेदारी 'कश्मीर टाइगर्स' ने ली. सूत्रों ने बताया कि इन दोनों समूहों के पीछे जैश-ए-मोहम्मद का मुखौटा होने का संदेह है.

सूत्रों ने बताया कि आतंकियों के ये नए ग्रुप अत्यधिक ट्रेंड हैं और खैबर पख्तूनख्वा क्षेत्र के लोगों को अफगानिस्तान समेत अन्य जगहों पर हमलों को अंजाम देने का अनुभव भी हो सकता है. सूत्रों ने बताया कि इनमें पाकिस्तान सेना के भूतपूर्व सैनिक भी शामिल हो सकते हैं. इस साल अब तक छह अलग-अलग हमलों में ऐसे ग्रुपों की जानकारी सामने आई है, जिनमें आमतौर पर तीन से पांच दहशतगर्द शामिल होते हैं. 

2021 से अब तक करीब 40 जवान शहीद

हाल की घटनाएं अक्टूबर 2021 से जम्मू क्षेत्र में हुए कई सटीक हमलों के बाद हुई हैं. इस साल जून-जुलाई में हुए हमलों से पहले, सेना 2021 से अब तक करीब 40 कर्मियों को खो चुकी है. हालांकि, पहले के हमले नियंत्रण रेखा (एलओसी) के पास पुंछ-राजौरी सेक्टर में केंद्रित थे. लेकिन हाल के हमले डोडा, कठुआ और रियासी जैसे क्षेत्रों में और भी आगे बढ़ गए हैं.

जम्मू-कश्मीर में एक अधिकारी ने कहा कि ये आतंकवादियों का एक अलग समूह है जो पिछले छह महीनों में घुसपैठ कर चुका है. हमें संदेह है कि पुंछ-राजौरी सेक्टर के आतंकवादी उस क्षेत्र में हमलों को अंजाम दे रहे हैं. नए समूह को चार-पांच छोटे समूहों में विभाजित किया गया है, जो काफी गुप्त तरीके से काम कर रहे हैं और अत्यधिक ट्रेंड हैं. हालांकि, क्षेत्र में एंटी टेररिस्ट ऑपरेशन में लगी सुरक्षा एजेंसियों का मानना ​​है कि वे सभी एक ही समूह से आये हैं.

पुंछ-राजौरी और डोडा-कठुआ-रियासी हमलों में काफी समानता

जम्मू-कश्मीर के एक अन्य अधिकारी ने कहा कि पुंछ-राजौरी और डोडा-कठुआ-रियासी दोनों ही हमलों की कार्यप्रणाली एक जैसी है. उनके पास मिलिट्री ट्रेनिंग, टोही क्षमता, तकनीक या सार्वजनिक संपर्क के इस्तेमाल से परहेज़ और गुरिल्ला युद्ध की रणनीति का एक ही स्तर है. दोनों के पास एक जैसे अत्याधुनिक हथियार हैं और वे हमलों के वीडियो बना रहे हैं. हमलों की प्रकृति को देखते हुए, खैबर पख्तूनख्वा क्षेत्र के पठान लड़ाकों की मौजूदगी से इनकार नहीं किया जा सकता है, जिन्होंने पहले तालिबान के साथ मिलकर लड़ाई लड़ी है.

सुरक्षा बलों की ओर से आक्रामक जवाबी कार्रवाई के बावजूद लगातार हो रहे हमलों ने सरकार को चिंतित कर दिया है. हालांकि दोनों क्षेत्रों में समूहों की संख्या 20 से अधिक नहीं होने का अनुमान है, लेकिन सुरक्षा बलों को ज्यादा सफलता नहीं मिली है.

आखिर आतंकियों का पता क्यों नहीं लगा पा रही सेना?

सशस्त्र बलों के एक अधिकारी ने बताया कि हमलों के बाद वे घने जंगलों में गायब हो जाते हैं. ऐसे पहाड़ी जंगलों में उनका पीछा करना या उनका पता लगाना बहुत मुश्किल है. हाल ही में, जब सेना अपनी गतिविधियों के बारे में अधिक सतर्क हो गई, तो उन्होंने पुंछ में इंडियन एयरफोर्स की एडमिनिस्ट्रेटिव यूनिट की गाड़ी पर हमला कर दिया. सूत्रों ने बताया कि कई हमलों में, जैसे कि हाल ही में कठुआ में सेना के काफिले पर घात लगाकर किया गया हमला, उन्होंने सुरक्षा बलों के हथियार और बुलेटप्रूफ जैकेट भी लूट लिए.

सूत्रों ने बताया कि सुरक्षा बलों को जवाबी कार्रवाई में अतिरिक्त हताहतों का सामना करना पड़ा. उदाहरण के लिए, अक्टूबर 2021 में पुंछ के देहरा की गली में घात लगाकर किए गए हमले में पांच सैनिक मारे गए और हमलावरों का पीछा करते समय पांच अन्य शहीद हो गए.

मई 2023 में राजौरी के कंडी जंगलों में पांच पैरा कमांडो मारे गए थे, जब वे संदिग्ध आतंकवादियों के भोजन लेने का इंतजार कर रहे थे. हाल ही में डोडा हमले में भी खुफिया इनपुट के बाद तलाशी अभियान के दौरान सेना के पांच जवान मारे गए थे.

फोन का यूज नहीं करते, गांवों में नहीं जाते...

इन समूहों पर नज़र रखने में आने वाली कठिनाइयों के बारे में बताते हुए जम्मू-कश्मीर पुलिस के एक अधिकारी ने कहा कि वे फ़ोन का इस्तेमाल नहीं करते हैं. वे गांवों में नहीं जाते और स्थानीय लोगों के साथ नहीं रहते. वे जंगलों में या गुफाओं में रहते हैं. वे या तो जंगल में बकरवाल की ओर से लाए गए भोजन को खरीदते हैं, या अपने संपर्कों से एक चेन के ज़रिए इसे प्राप्त करते हैं जो उन तक नहीं जाती. कभी-कभी जंगल में भोजन गिरा दिया जाता है, जिसे इच्छानुसार उठाया जाता है.

अगर उन्हें कोई संदेश भेजना होता है, तो वे रेडियो फ़्रीक्वेंसी मैसेंजर का इस्तेमाल करते हैं जिसे इंटरसेप्ट नहीं किया जा सकता. इसलिए हम सिर्फ़ ह्यूमन इंटेलिजेंस पर ही निर्भर रह सकते हैं. सुरक्षा बलों को स्थानीय समर्थन पर भी संदेह है. अधिकारी ने कहा कि आप स्थानीय समर्थन के बिना महीनों, यहां तक ​​कि सालों तक काम नहीं कर सकते. उन्हें सुरक्षा बलों की गतिविधियों के बारे में सटीक जानकारी मिल रही है. वे लगातार आगे बढ़ रहे हैं. स्थानीय लोगों ने भी इस पर नज़र रखी है और उन्हें कुछ सफलता भी मिली है. लेकिन हमें अभी तक कोई बड़ी सफलता नहीं मिली है.