Delhi Government School: आम आदमी पार्टी ने दिल्ली की स्कूली शिक्षा में कई बदलाव किए हैं. दिल्ली देश के उन राज्यों में शामिल है जहां सर्वाधिक खर्च शिक्षा पर की जाती है. दिल्ली में कुल बजट का करीब 25 फीसदी हिस्सा शिक्षा पर खर्च होता है जबकि केन्द्रीय बजट में शिक्षा पर खर्च बीते दस सालों में जीडीपी का 4.1 से 4.6 फीसदी के बीच रहा है. दस साल में दिल्ली में शिक्षा पर खर्च ढाई गुणा बढ़ा
दिल्ली सरकार के 2014-15 के शिक्षा के बजट से वर्ष 2024-25 की तुलना की जाए तो इसमें 9,896 करोड़ रुपए ज्यादा खर्च का प्रावधान है. दरअसल 2014-15 में शिक्षा पर खर्च 6500 करोड़ था जो 2024-25 में 16,396 करोड़ रुपए हो गया है. दिल्ली इकॉनोमिक सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली सरकार द्वारा प्रतिवर्ष प्रति छात्र शिक्षा पर किया जाने वाला व्यय जो 2016-17 में 50, 812 रुपए था वो 2020-21 में 78, 082 हो गया.
इसका असर भी धरातल पर दिख रहा है. सरकारी स्कूलों में बच्चों को फ्री ट्यूशन फीस, फ्री यूनिफॉर्म, फ्री किताबों के साथ-साथ खेलने-कूदने और दूसरी एक्टिविटी में शामिल होने का मौका मिल रहा है. ये बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए जरूरी भी है. यही वजह है कि सरकारी स्कूलों में एडमिशन के लिए लंबी लाइन लगी हुई है. पहले सिर्फ गरीब और कम आय वाले परिवार के बच्चे यहां जाते थे लेकिन अब मिडिल क्लास के लोग भी इन स्कूलों में अपने बच्चों का एडमिशन करा रहे हैं. खास कर स्कूल ऑफ एक्सीलेंस में. इन स्कूलों में फ्री कोचिंग की व्यवस्था भी सरकार ने की है.
12वीं से लेकर जेईई में सफलता के परचम लहराए
दिल्ली सरकार ने 2021-22 में स्कूल ऑफ एक्सीलेंस की शुरुआत की थी ताकि प्राथमिक शिक्षा के बुनियादी ढांचे में आमूलचूल परिवर्तन किया जाए. इन स्कूलों की संख्या बढ़ कर अब 38 हो गयी है. इन स्कूलों से बच्चे पढ़ाई के साथ साथ खेलकूद, कला और दूसरे क्षेत्र में अपना नाम रौशन कर रहे हैं. सिर्फ पेंटिंग में ही 2024 में 12वीं के 7 बच्चों ने 100 फीसदी अंक हासिल किए.
दिल्ली के सरकारी स्कूलों में सर्वाधिक 2020 में 442 बच्चों ने 12वीं में 95 से 100 फीसदी अंक हासिल किए थे. 2024 में भी इंजीनियरिंग की जेईई मेंस की परीक्षा पास कर करीब 300 बच्चों ने जेईई एडवांस का एग्जाम दिया. इनमें 4 बच्चों को 99.9 परसेंटाइल और 25 बच्चों को 99 परसेंटाइल आए. इंजीनियरिंग में इतने सरकारी स्कूल के बच्चों का नामांकन होना भी एक उपलब्धि है.
प्राइवेट स्कूलों के मुकाबले बचते हैं हर साल 70 हजार रुपये
वहीं 12वीं के बाद मेडिकल करने के लिए जरूरी परीक्षा नीट यूजी में दिल्ली के सरकारी स्कूलों के 1414 बच्चों ने अपनी कामयाबी का झंडा गाड़ा. हर साल इनकी संख्या बढ़ रही है. 2020 में मेडिकल प्रवेश परीक्षा यानी नीट यूजी में 569 बच्चे पास कर पाए थे जो चार सालों में दोगुना से ज्यादा हो गया है. ये उल्लेखनीय आंकडा है जिस पर आम आदमी पार्टी की सरकार इतरा सकती है. वहीं उन गरीब परिवारों के सपने भी पूरे होते दिखते हैं जो महंगे प्राइवेट स्कूलों में अपने बच्चों को न तो पढ़ा सकते हैं और न ही मोटी फीस देकर कोचिंग करा सकते हैं.
अगर एक बच्चे को प्राइवेट स्कूल में पढ़ाया जाए तो उसकी ट्यूशन फीस हर महीने कम से कम होंगे 5 हजार रुपए यानी पूरे साल में 60 हजार रुपए इसके अलावा सालाना चार्ज और बाकी खर्च 10 हजार तो होंगे ही. यानी 70 हजार की बचत सीधे. ये 12 साल तक लगातार चलेंगे. इसके अलावा किताब-कॉपी पर सालाना 2 से 5 हजार खर्च, गर्मी और जाड़े के अलग-अलग यूनीफॉर्म पर औसत 3000 खर्च. इसके बाद मेडिकल इंजीनियरिंग की कोचिंग कराने में दो साल में 4-5 लाख जरूर लगेंगे. इससे हिसाब लगाया जा सकता है कि गरीबों के लिए सरकारी स्कूल और फ्री कोचिंग कितना मायने रखता है?
दिल्ली में दस साल में 21 नए उच्च शिक्षण संस्थान
दिल्ली में जेएनयू, डीयू, एम्स, आईआईटी जैसी विश्वविख्यात उच्च शिक्षण संस्थान हैं. पिछले 10 सालों में 21 नए उच्च शिक्षण संस्थानों का निर्माण हुआ है जिसके बाद उच्च शिक्षण संस्थानों की संख्या 232 हो गई है. इनमें 48 फीसदी व्यावसायिक श्रेणी, 39 फीसदी सामान्य शिक्षा और 13 फीसदी विश्वविद्यालय या समकक्ष हैं. इनके लिए सरकार ने वर्ष 2023-24 के लिए 819.29 करोड़ रुपए का बजट में प्रावधान किया है.
बात करें दलितों की तो केजरीवाल ने दलित छात्रों के लिए अंबेडकर स्कॉलरशिप योजना की घोषणा की है. दलित छात्रों की पढ़ाई, पढ़ाई के बाद नौकरी की तैयारी और फिर विदेश जाकर पढ़ना हो तो पूरा खर्च दिल्ली सरकार देगी यानी छात्र जीवन के हर अहम पड़ाव पर केजरीवाल देंगे साथ.
आशुतोष भारद्वाज, वरिष्ठ पत्रकार