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'देश में नरेंद्र, महाराष्ट्र में देवेंद्र', मोदी-शाह भी पांच सालों तक नहीं हिला पाएंगे CM फडणवीस की कुर्सी, क्यों हैं BJP के दूसरे योगी?

Devendra Fadnavis: देवेंद्र फडणवीस ने कहा था कि वह समंदर हैं लौटकर आएंगे. वह आ भी गए. महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के रूप में तीसरी बार शपथ भी ले ली. उनके साथ अजित पवार और एकनाथ शिंदे ने भी उपमुख्यमंत्री पद की शपथ ली.

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Edited By: Gyanendra Tiwari
Devendra Fadnavis
Courtesy: India Daily

Devendra Fadnavis: "मेरा पानी उतरता देख, मेरे किनारे पर घर मत बना लेना. मैं समंदर हूं लौटकर वापस आउंगा." ये शब्द महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने वाले देवेंद्र पडणवीस के हैं. 2019 में जब उनकी सरकार गिरी थी तो उन्होंने विधानसभा में शायरना अंदाज में अपने भाषण को विराम दिया था. 4 दिसंबर गुरुवार को तीसरी बार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेकर अपने कहे हुए वाक्य को फडणवीस ने चरितार्थ कर दिया है. 

विधानसभा के चुनावी नतीजों के बाद सीएम पद पर सस्पेंस बरकार था लेकिन बाजी बीजेपी ने ही मारी. महायुति गठबंधन में सबसे ज्यादा सीटे बीजेपी ने जीती थी. उसे 132 सीटों पर जीत मिली थी. जबकि, एकनाथ शिंदे की शिवसेना 57 और अजित पवार की एनसीपी को 41 सीटों पर विजय प्राप्त हुई थी. बीजेपी की इस बंपर जीत के हीरो देवेंद्र फडणवीस ही रहे. संगठन ने उनपर जो विश्वास जताया वह उस पर खरे उतरे. 

देवेंद्र फडणवीस महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री तो बन गए हैं लेकिन सवाल यह है कि क्या वह 5 सालों तक सुनिश्चित रूप से अपनी सरकार चल पाएगा? क्या वह 5 सालों तक मुख्यमंत्री बने रहेंगे? क्योंकि हरियाणा, उत्तराखंड, गुजरात जैसे राज्यों में बीजेपी ने चुनाव से पहले  मुख्यमंत्री बदले थे. वहीं, चुनाव जीतने के बाद कुछ राज्यों में जैसे मध्य प्रदेश और राजस्थान में बीजेपी ने मुख्यमंत्री का नया चेहरा देकर सभी चौंका दिया था. यूपी में भी कुछ इसी प्रकार करने की कोशिश थी लेकिन सीएम योगी की कुर्सी बच गई. क्या सीएम योगी की तरह ही फडणवीस की कुर्सी बची रहेगी या जाएगी. आइए जानने की कोशिश करते हैं. 

क्यों देवेंद्र फडणवीस की कुर्सी अगले पांच सालों तक सेफ रहेगी?

संघ के करीबी:  देवेंद्र फडणवीस बचपन से ही संघ के बहुत करीब रहे हैं. उनके पिता गंगाधर फडणवीस आरएसएस और बीजेपी से जुड़े रहे.  इसी कारण देवेंद्र का भी शुरुआत से ही बीजेपी और संघ की झुकाव रहा. ऐसे में केंद्र की बीजेपी अगर महाराष्ट्र का सीएम पद बदलने की सोचता भी है तो आरएसएस ऐसा नहीं करने देगा. संघ की नजरों में वह एक कद्दावर नेता हैं. 

नागपुर में आरएसएस का मुख्यायल है और देवेंद्र फडणवीस वहीं से विधायक है. उन्होंने नागपुर की दक्षिण पश्चिम सीट से कांग्रेस के उम्मीदवार प्रफुल्ल गुडधे को 38941 मतों के अंतर से हराया था. 

महाराष्ट्र बीजेपी के बड़े नेता: देवेंद्र फडणवीस महाराष्ट्र में बीजेपी के बड़े नेता हैं. विधानसभा चुनाव की जीत में उनकी अहम भूमिका रही. उन्हें ही जीत का क्रेडिट दिया गया. चुनाव जीतने के लिए उन्होंने जो रणनीति बनाई वह सफल रही. राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि देवेंद्र फडणवीस के सामने इस समय महाराष्ट्र में कोई बड़ा नेता नहीं है. ऐसे में वह आराम से अगले पांच सालों तक अपनी सरकार चला सकते हैं. 

किंग मेकर है देवेंद्र फडणवीस: 2019 में शिवसेना ने बीजेपी का साथ छोड़ दिया था जिसके चलते देवेंद्र फडणवीस की सरकार गिर गई थी. एनसीपी के साथ मिलकर उद्धव ठाकरे ने सरकार बना ली थी. इसके बाद देवेंद्र फडणवीस ने शिवसेना में दो फाड़ करके 2022 में एकनाथ शिंदे को लेकर फिर से महाराष्ट्र में बीजेपी की  सरकार बनवाई थी. शिवेसने के बाद उन्होंने एनसीपी में भी दो फाड़ कर दी और अजित पवार को भी सरकार में शामिल कर लिया था. ऐसे में उन्हें किंग मेकर कहना गलत नहीं होगा. देवेंद फडणवीस को बखूबी पता है कि उन्हें 5 साल तक संतुलित सरकार कैसे चलानी है. 

योगी की तरह फडणवीस को भी हिलाना मुश्किल: यूपी में खबरे चलीं थी कि बीजेपी योगी आदित्यनाथ को हटाकर किसी नए चेहरे को मुख्यमंत्री बना सकती है. लेकिन योगी ने ऐसा होने नहीं दिया. राजनीतिक विश्लेषक अभी भी कहते हैं कि यूपी बीजेपी की अंदरूनी कलह अभी समाप्त नहीं हुई. लेकिन इससे सीएम योगी की कुर्सी पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा. क्योंकि उनका प्रभाव अन्य नेताओं से कहीं ज्यादा है. अगर इस तरह के हाल महाराष्ट्र में भी बनते हैं तो बीजेपी के अधिकतर विधायक देवेंद्र फडणवीस के साथ ही जाएंगे. ऐसें में महाराष्ट्र से देवेंद्र फडणवीस की कुर्सी हिला आसान नहीं होगा. यानी उन्हें महाराष्ट्र का दूसरा योगी कहा जा सकता है. 

अगर नाराज हो गए शिंदे और अजित तो क्या होगा?

एक संभवना यह है कि अगर अजित पवार और एकनाथ शिंदे बगावत कर देतें हैं क्या होगा? महाराष्ट्र में वैसे अकेले किसी भी पार्टी के पास बहुमत का आंकड़ा नहीं है. 288 विधानसभा सीटों वाले राज्य में किसी भी पार्टी को सरकार बनाने के लिए कम से कम 145 सीटों की आवश्यकता होती है. जो किसी के पास नहीं. बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी है, उसके पास 132 सीटें हैं. अजित और शिंदे अगर बगवात भी करते तो भी कांग्रेस के साथ मिलकर भी वह सरकार नहीं बना पाएंगे. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अजित पवार और एकनाथ शिंदे ये नहीं चाहेंगे कि राज्य में दोबारा से विधानसभा चुनाव हों. दोनों को इस बात से भय हो सकता है कि अभी उपमुख्यमंत्री का जो पद मिला है शायद चुनाव होने पर नतीजें उनके खिलाफ आएं और उनसे यह पद भी छिन जाए. इसलीए मुश्किल है कि वह बगावत करेंगे.