menu-icon
India Daily

दिल्ली की वो रिजर्व सीटें जिन पर AAP का किला नहीं भेद पाई बीजेपी

दिल्ली विधानसभा की 12 आरक्षित सीटों में से आम आदमी पार्टी ने 8 सीटों पर जीत हासिल की, जबकि भाजपा ने 4 सीटों पर कब्जा किया. 2013 में, जब आम आदमी पार्टी का गठन हुआ था, तब इन सीटों पर उसने शानदार प्रदर्शन किया था. 2015 और 2020 के चुनावों में भी AAP ने इन सीटों पर क्लीन स्वीप किया था.

auth-image
Edited By: Sagar Bhardwaj
delhi reserved seats on which BJP could not defeat AAP

दिल्ली विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी (AAP) को भारी नुकसान हुआ, और भाजपा (BJP) ने एक बार फिर से दिल्ली में अपनी सत्ता स्थापित कर ली. जहां बीजेपी ने 48 सीटों पर जीत हासिल की, वहीं आम आदमी पार्टी को 22 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा. इसके बावजूद, AAP ने दिल्ली की 12 आरक्षित सीटों में से 8 पर विजय प्राप्त की. हालांकि, BJP ने 4 आरक्षित सीटों पर अपना कब्जा जमाया, और AAP को इन सीटों पर जीतने में सफल नहीं हो पाई. आइए जानते हैं इन रिजर्व सीटों पर हुई राजनीति और AAP की हार की वजहें.

AAP का प्रदर्शन और आरक्षित सीटों पर जीत

दिल्ली विधानसभा की 12 आरक्षित सीटों में से आम आदमी पार्टी ने 8 सीटों पर जीत हासिल की, जबकि भाजपा ने 4 सीटों पर कब्जा किया. 2013 में, जब आम आदमी पार्टी का गठन हुआ था, तब इन सीटों पर उसने शानदार प्रदर्शन किया था. 2015 और 2020 के चुनावों में भी AAP ने इन सीटों पर क्लीन स्वीप किया था. लेकिन इस बार बीजेपी ने आम आदमी पार्टी की उस ताकत को चुनौती दी जो इन आरक्षित सीटों पर हमेशा मजबूत रही थी.

रिजर्व सीटों पर बीजेपी की जीत
बीजेपी ने जिन चार आरक्षित सीटों पर जीत हासिल की, वे थीं - बवाना, मंगोलपुरी, मादीपुर और त्रिलोकपुरी. इन सीटों पर कांग्रेस की स्थिति कमजोर रही और बसपा का कोई प्रभाव नहीं दिखा. विशेष रूप से त्रिलोकपुरी सीट पर, बीजेपी को महज 392 वोटों से जीत मिली, जबकि कांग्रेस को 6147 वोट मिले. इस सीट पर कांग्रेस ने भी बड़ी भूमिका निभाई, लेकिन AAP अपनी स्थिति बनाए रखने में असफल रही.

AAP का आधार क्यों कमजोर पड़ा?
आम आदमी पार्टी की हार के पीछे कई कारण थे, जिनमें सबसे प्रमुख था मध्यवर्ग का उनसे खिसकना. राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, 2020 में AAP ने दिल्ली के नागरिकों को अपनी मुफ्त सुविधाओं और कल्याणकारी योजनाओं के जरिए प्रभावित किया था, लेकिन इस बार उसका असर कमजोर पड़ा. विशेष रूप से, बीजेपी ने मध्यवर्गीय जनता के बीच अपनी पकड़ मजबूत की. इसके अलावा, एमसीडी (मुन्सिपल कॉर्पोरेशन ऑफ दिल्ली) में AAP का कामकाजी असफलता भी एक अहम कारण माना जा रहा है.

सोमनाथ भारती जैसे वरिष्ठ नेताओं ने भी स्वीकार किया कि एमसीडी में कोई ठोस काम न कर पाने के कारण पार्टी के कार्यकर्ताओं में नाराजगी बढ़ी और यह चुनावी नतीजों में दिखा. हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि आरक्षित सीटों पर AAP का प्रदर्शन यह दर्शाता है कि निम्न मध्यवर्गीय जनता और दलित समुदायों में पार्टी का आधार बना रहा.

बीजेपी की रणनीति और चुनावी रणनीतिक बदलाव
बीजेपी ने इस चुनाव में एक सशक्त रणनीति अपनाई, जिसमें उन्होंने मध्यवर्गीय जनता को अपने साथ जोड़ा और AAP की छवि को धूमिल किया. बीजेपी के केंद्रीय नेताओं ने आम आदमी पार्टी के कल्याणकारी योजनाओं का समर्थन करते हुए उन्हें आगे बढ़ाने का वादा किया. इसका फायदा बीजेपी को मिला और चुनावी परिणामों में इसका प्रभाव साफ दिखा. बीजेपी ने उन क्षेत्रों में जीत हासिल की जहां पर आम आदमी पार्टी का वोट बैंक पहले मजबूत था.

अगले चुनावों में AAP की चुनौती
आम आदमी पार्टी को आने वाले चुनावों में कई चुनौतियों का सामना करना होगा. पार्टी का मुख्य उद्देश्य अब यह रहेगा कि वह अपने पारंपरिक आधार को बनाए रखे, विशेष रूप से दलित और निम्न मध्यवर्गीय समुदायों में, जो हमेशा AAP के पक्ष में थे. इसके साथ ही, पार्टी को एमसीडी में अपने प्रदर्शन में सुधार करने की भी आवश्यकता है.

हालांकि, AAP की कमजोरियों को BJP ने अच्छे से समझ लिया है और इन सीटों पर अपना प्रभाव बढ़ाया है. अब यह देखना होगा कि AAP अपनी योजनाओं और कार्यशैली में क्या सुधार करती है, ताकि वह अगले चुनावों में अपनी खोई हुई जमीन को फिर से हासिल कर सके.