Delhi Hospital Fire Case: विनोद शर्मा... दिलशाद गार्डन में गुरु तेग बहादुर (जीटीबी) अस्पताल में शवगृह के बाहर एक पत्थर पर चुपचाप बैठे थे. चेहरे पर कोई एक्सप्रेशन नहीं. उनका नवजात बेटा मोर्चरी के अंदर एक बैग में पड़ा था. एक दिन पहले ही विनोद और उनके परिवार ने नवजात के जन्म का जश्न मनाया था. रविवार तड़के विवेक विहार के बेबी केयर न्यू बोर्न हॉस्पिटल में आग लगने से मरने वाले बच्चों में विनोद का नवजात बेटा सबसे छोटा था.
हर माता-पिता का बच्चा उसके लिए खास होता है, लेकिन ऑनलाइन कारोबार करने वाले 32 साल के विनोद और उनकी पत्नी ज्योति के लिए उनका नवजात बच्चा दुनिया की किसी भी चीज़ से अधिक कीमती था. दंपत्ति के दो बच्चों की पहले ही मौत हो चुकी थी. काफी प्रयास के बाद ये उनका तीसरा बच्चा था, जिसकी मौत भी उसके जन्म के एक ही दिन बाद हो गई. विनोद ने कहा कि हम बहुत खुश थे क्योंकि इस बार हमें उम्मीद थी कि हमारा सपना पूरा होगा. उसे सांस लेने में दिक्कत थी, लिहाजा उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया था. डॉक्टरों ने कहा था कि वो कुछ दिनों में ठीक हो जाएगा.
विनोद के मुताबिक, उनके पहले बच्चे की मौत जन्म के कुछ घंटे बाद, जबकि दूसरे की मौत गर्भपात की वजह से हुई थी. उन्होंने कहा कि हमें नहीं पता था कि हमारी तीसरी खुशियां भी जल्द ही छीन जाएगी, जिस अस्पताल में हम उसकी सांस का इलाज कराने आए थे, वही अस्पताल उसकी सांसें छीन लेगा. उन्होंने कहा कि अभी तो हमने बेटे का नाम भी नहीं रखा था.
गुरु तेग बहादुर अस्पताल के मोर्चुरी के पास भीड़ थी. दो पुलिसकर्मी कुछ लोगों से बात कर रहे थे, उनके बयान दर्ज कर रहे थे. जिनके बयान दर्ज किए जा रहे थे, वे उन 7 बच्चों के पिता, चाचा, दादा और पड़ोसी थे, जो मोर्चुरी से 2 किलोमीटर दूर अग्निकांड के शिकार हो गए थे. मोर्चुरी में नवजातों की पहचान उनकी माताओं के नाम से की गई. कहा जा रहा है कि अधिकांश माताओं को अभी तक आग के बारे में पता नहीं है. उन्हें उनके परिवारों ने नहीं बताया क्योंकि दर्द असहनीय है और बताने के लिए कोई शब्द नहीं है.
विनोद शर्मा ने कहा कि मैं अपनी पत्नी को क्या बताऊंगा? वो दर्द बर्दाश्त नहीं कर पाएगी. जब मैंने आग के बारे में सुना, तो मैं अस्पताल भागा. किसी ने हमें नहीं बताया. मैंने सुबह टीवी पर आग के बारे में खबर देखी और घबरा गया. उन्होंने बताया कि बच्चे का जन्म विवेक विहार के लोक प्रिय अस्पताल में हुआ था और उसे निजी नवजात शिशु सुविधा केंद्र में भेजा गया था. उन्होंने बताया कि हमें लगा कि मेरी पत्नी को यहां बेहतर देखभाल मिलेगी. बच्चे का जन्म शुक्रवार को हुआ. हम उसे शनिवार को सुबह विवेक विहार (निजी नवजात शिशु स्थान) ले आए. उसे सुबह करीब 5 बजे भर्ती कराया गया.
विनोद शर्मा और उनकी पत्नी ज्योति अपने माता-पिता और बड़े भाई अमित (37) के साथ ज्वाला नगर मोहल्ले में रहते हैं. अमित ने बताया कि जब सुबह भाई घर से नवजात शिशु अस्पताल जाने के लिए निकले तो उन्होंने फोन किया. उन्हें पता चला कि बच्चों को पहले ही जीटीबी अस्पताल में शिफ्ट कर दिया गया है. अमित ने बताया कि हमें उम्मीद थी कि हमारा बच्चा जिंदा होगा. जब हम (जीटीबी) अस्पताल पहुंचे तो उन्होंने हमें मोर्चुरी जाने को कहा.
विनोद के भाई अमित ने बताया कि नवजात अस्पताल ने परिवार के किसी भी सदस्य को रात भर रुकने और बच्चों की देखभाल करने की अनुमति नहीं दी. वे हमें केवल दोपहर 1 बजे से शाम 4 बजे के बीच बच्चे से मिलने की अनुमति देते थे. उन्होंने हमें बताया कि अस्पताल का स्टाफ अच्छी देखभाल करेगा. अमित ने कहा कि हमें इस अस्पताल के बारे में कुछ भी नहीं पता था. हमने उस डॉक्टर पर भरोसा किया था, जिसने हमें इसके लिए रेफर किया था.
परिवार ने बच्चे के डिस्चार्ज होने के बाद पूजा की योजना बनाई थी. विनोद ने कहा कि हम मिठाई बांटने की योजना बना रहे थे. हम बहुत खुश थे. अस्पताल में लगी आग ने हमारा सबकुछ छीन लिया है. हमारे बच्चे को कौन वापस लाएगा. शायद बच्चा हमारे नसीब में ही नहीं है.
बाद में विनोद के परिवार की महिलाओं का एक समूह अस्पताल पहुंचा. एक महिला ने चिल्लाते हुए कहा कि हम डीएनए टेस्ट चाहते हैं. ये बच्चा शायद हमारा नहीं है. अस्पताल से किसी ने हमें आग के बारे में नहीं बताया. हमें नहीं पता कि शवगृह में रखा बच्चा हमारा है या नहीं.
62 साल की शहनाज़ खातून भी उत्तर पूर्वी दिल्ली के भजनपुरा से आई थीं. उनका पोता पांच दिन का था. उन्होंने अपने चेहरे का एक हिस्सा सफ़ेद दुपट्टे से ढका हुआ था, उनकी आंखें आंसुओं से सूजी हुई थीं. शहनाज ने कहा कि अगर हमें पता होता कि हमारे बच्चे को इस अस्पताल में मार दिया जाएगा, तो हम यहां कभी नहीं आते. हमें उम्मीद थी कि उसे दो दिन में छुट्टी मिल जाएगी. हमें नहीं पता था कि हम उसका शव घर ले जाएंगे.
शहनाज के साथ उनका बेटा मसीह आलम भी था, जिसके बेटे की अग्निकांड में मौत हुई थी. लेकिन मसीह किसी से बात नहीं करना चाहता था. एक अन्य नवजात के चाचा ऋतिक चौधरी भी अस्पताल में थे. चौधरी ने बताया कि मेरे पिता कल (शनिवार) दोपहर में अस्पताल आए थे.
उत्तर प्रदेश पुलिस में कांस्टेबल 35 साल के पवन कसाना ने बताया कि मेरा बेटा उनका पहला बच्चा था. बागपत में रहने वाले कसाना ने बताया कि डॉक्टर ने बताया कि उसे पेट में इन्फेक्शन है और उसे कुछ दिनों तक देखभाल की ज़रूरत है. वह पिछले छह दिनों से अस्पताल में था. उन्होंने बताया कि जब वह अपने नवजात शिशु को लेकर आए थे, तो डॉक्टर ने कहा था कि सब ठीक हो जाएगा. उन्होंने बताया कि मेरे बच्चे को पहले राजेंद्र नगर (गाजियाबाद) के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया था. वहां वेंटिलेटर नहीं था, इसलिए उन्होंने हमें इस अस्पताल में रेफर कर दिया.