अरविन्द केजरीवाल के लिए 2024 संघर्षपूर्ण साल रहा. साल की शुरुआत ही प्रीमियर एजेंसियों की पूछताछ की नोटिस की सीरीज के आगे बढ़ने से हुई. 21 मार्च को गिरफ्तारी और 10 दिन की पूछताछ के बाद 1 अप्रैल को जेल भेजने, फिर आम चुनाव के लिए 21 दिन की रिहाई और आगे 2 जून से 13 सितंबर तक तिहाड़ जेल में रहने के दौरान संघर्षपूर्ण दिन थे. इन संघर्षपूर्ण 177 दिनों में 21 दिन छोड़कर 156 दिन तो जेल में रहे अरविन्द केजरीवाल.
अरविन्द केजरीवाल से पूछताछ, छापेमारी, जेल, रिहाई...यानी कभी सुर्खियों से गायब नहीं रहे केजरीवाल. रिहाई ने बड़ा मरहम दिया क्योंकि अब तक एक पैसे की रिकवरी या मनी ट्रेल प्रीमियम एजेंसी नहीं दिखा सकी है. यह संघर्ष अपने आप में किसी भी चुनाव प्रचार और उसके प्रभाव से बड़ा है. अरविन्द केजरीवाल के अलावा उनके तमाम साथी जिनमें डिप्टी सीएम मनीष सिसौदिया, संजय सिंह, सत्येंद्र जैन व अन्य शामिल हैं, भी सरकार में रहते जनता के बीच संघर्ष करते हुए दिखे. इस दौरान हर किसी को पद छोड़ना पड़ा. ये तमाम संघर्ष औपचारिक चुनाव प्रचार से कहीं बढ़कर है.
अगस्त से ही शुरू हो गयी थी पदयात्रा
अरविन्द केजरीवाल की रिहाई से एक महीना पहले ही 17 अगस्त से मनीष सिसौदिया ने दिल्ली में पदयात्रा और जनसंपर्क शुरू कर दिया था. 17 महीने तक जेल में रहने के बाद सिसौदिया ने केजरीवाल की अनुपस्थिति में पार्टी के लिए चुनाव अभियान की एक तरह से शुरूआत कर दी थी. यह वो समय था जब राजनीतिक दलों का ध्यान हरियाणा और जम्मू-कश्मीर में होने वाले चुनाव पर था. सितंबर में चुनाव कार्यक्रम और अक्टूबर के पहले हफ्ते में चुनाव नतीजे आ गये. मगर, दिल्ली में मनीष सिसौदिया ने इस दौरान दिल्ली की गलियों की खाक छानीं.
आम आदमी पार्टी ने दिल्ली विधानसभा चुनाव को वरीयता दी और हरियाणा में सभी सीटों पर चुनाव लड़ने से खुद को रोक लिया. सीमित सीटों पर चुनाव लड़कर आम आदमी पार्टी ने खुद को दिल्ली के बाहर भी सक्रिय रखा. आम आदमी पार्टी चुनाव प्रचार में बढ़त ले चुकी थी. इसे इस बात से समझा जा सकता है कि दिल्ली में कांग्रेस ने 8 नवंबर से यात्रा शुरू की जिसे राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा की तर्ज पर बताया गया. 7 दिसंबर तक इस यात्रा में कांग्रेस ने सभी 70 विधानसभा को कवर कर लिया.
कांग्रेस ने भी नवंबर में यात्रा की मगर असरहीन
कांग्रेस की यात्रा का असर दिल्ली में नहीं दिखाई पड़ा तो इसकी सबसे बड़ी वजह थी कि इस यात्रा से बड़े-बड़े नेता दूर रहे. मीडिया ने भी इस यात्रा को तवज्जो नहीं दी. कब कांग्रेस की यात्रा शुरू हुई और कब खत्म हुई इसका पता भी नहीं चला. वहीं आम आदमी पार्टी की यात्रा कांग्रेस की यात्रा से बहुत पहले शुरू हो चुकी थी. मनीष सिसौदिया के अभियान को अरविन्द केजरीवाल ने जेल से बाहर निकलने के बाद आगे बढ़ाया.
बीजेपी हालांकि कांग्रेस के मुकाबले ज्यादा सक्रिय रही है लेकिन परिवर्तन यात्रा एलान के बावजूद समय पर शुरू नहीं हो सकी. यहां बीजेपी पिछड़ती दिखी. बीजेपी ने झुग्गी-झोपड़ी में रहने वालों के लिए पक्के मकान के वादे के साथ जनसंपर्क करती रही. आम आदमी पार्टी के समांतर पर विपक्ष की भूमिका में भी दिखी. मगर, आम आदमी पार्टी के चुनाव प्रचार के मुकाबले बीजेपी कहीं ठहरती नहीं दिखी.
सीटों के ऐलान में आम आदमी पार्टी सबसे आगे
आम आदमी पार्टी ने सभी 70 सीटों पर उम्मीदवारों का एलान कर दिया है. चार सूचियों में रणनीतिक तरीके से ये नाम सामने आए. पहले की दो सूचियों में ही जिन विधायकों के टिकट काटने थे और बीजेपी-कांग्रेस से आए जिन नेताओं को टिकट देने थे, आम आदमी पार्टी ने कर डाला. यह पार्टी के लिए संभावित असंतोष का थर्मामीटर भी था. मीडिया ने खूब प्रचारित किया कि आप में असंतोष हैं लेकिन यह प्रचार भी विफल हो गया. 15 दिसंबर आते-आते आम आदमी पार्टी पहली ऐसी पार्टी बन गयी जिसने सभी सीटों पर उम्मीदवारों के नाम का एलान कर दिया है.
आम आदमी पार्टी ने बीजेपी और कांग्रेस के कई नेताओं को पार्टी में शामिल कराया और टिकट भी दिए. शिक्षाविद् अवध ओझा को भी पार्टी में शामिल कराने क बाद पटपड़गंज से उम्मीदवार बनाया. 15 दिसंबर को अंतिम सूची जारी करने से पहले भी बीजेपी नेता रमेश पहलवान और उनकी पार्षद पत्नी कुसुम लता आम आदमी पार्टी में शामिल हुए. रमेश पहलवान के लिए टिकट की घोषणा कर दी गयी. आम आदमी पार्टी ने 31 उम्मीदवारों की दो सूचियों में 18 विधायकों के टिकट काटे. इनमें 8 सीटें बीजेपी की जीती हुई थीं. कृष्णा नगर और चांदनी चौक में मौजूद पार्टी विधायकों के बेटे को टिकट दिया गया है. दो विधायकों के टिकट भी बदल दिए गये.
आप का कॉन्फिडेंस हाई
आम आदमी पार्टी ने सभी 70 उम्मीदवारों में आधे से ज्यादा उम्मीदवारों को दोबारा चुनाव मैदान में उतारकर खुद पर विश्वास दिखाया है. 15 फरवरी को दिल्ली विधानसभा का कार्यकाल खत्म हो रहा है. ऐसे में उम्मीदवारों के नाम घोषित कर पार्टी ने कर्नाटक में कांग्रेस और मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ में बीजेपी की तर्ज पर दिल्ली में रणनीति अपनायी है. पहले उम्मीदवार घोषित करने का फायदा अब तक सभी पार्टियों को मिला है. आम आदमी पार्टी भी इसी रणनीति पर बनी हुई दिख रही है.
बीजेपी ने ‘अब नहीं सहेगे, बदल के रहेंगे’ का नारा दिया है. इस नारे की भी आम आदमा पार्टी के रणनीतिकारों ने धज्जियां उड़ाकर रख दी हैं. बहरहाल बीजेपी इस नारे पर टिकी हुई है. पार्टी ने जवाबी हमले में कहा है कि दिल्ली की जनता सह रही है. उसके हाथों चुनी हुई सरकार के अधिकार कम किए गये, उनके निर्वाचित मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री समेत तमाम नेताओं को जेल भेजा गया. कामकाज में बाधा डाले गये. ऐसे में सहन करने वाली जनता कह रही है कि अब नहीं सहेंगे.
आप का संदेश : बीजेपी को कांग्रेस नहीं रोक सकती
आम आदमी पार्टी ने लगातार इंडिया गठबंधन के साथ खड़े रहने की बात कहकर यह भी संदेश दिया है कि भले ही दिल्ली में कांग्रेस और आप एक-दूसरे के खिलाफ लड़ें लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर केंद्र की सत्ता के खिलाफ ये दोनों एकजुट संघर्ष जारी रखेंगे. अरविन्द केजरीवाल यह संदेश दे रहे हैं कि दिल्ली की जनता को और अधिक सहन नहीं करना पड़े इसके लिए केंद्र में बीजेपी की सरकार को उखाड़ फेंकने की लड़ाई लड़ना जरूरी है. हालांकि आम आदमी पार्टी यह भी कहती रही है कि बीजेपी को हराने का माद्दा तो उनके ही पास है.
कांग्रेस ने दिल्ली में अपनी 21 उम्मीदवारों की सूची जारी की है लेकिन बीजेपी की सूची का आना बाकी है. सभी 70 उम्मीदवारो की सूची जारी कर आम आदमी पार्टी ने बढ़त ले ली है. महिलाओं के अकाउंट में 1000 रुपये महीने देने और चुनाव जीतने के बाद इस राशि को बढ़ाकर 2100 रुपये कर देने के एलान के साथ ही आम आदमी पार्टी ने चुनावी एजेंडे पर भी लीड ले ली है. ऑटो ड्राइवरों के लिए मेडीक्लेम, उनके बच्चों की शिक्षा की जिम्मेदारी उठाने जैसी घोषणाएं, मोहल्ला बसें शुरू करते हुए पार्टी ने दिल्ली की जनता को लुभाने के लिए कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी है.
बीजेपी आयुष्मान योजना को लेकर दिल्ली सरकार पर हमले कर रही है कि राजनीति के कारण दिल्ली की जनता को केंद्र सरकार की इस योजना से दूर रखा जा रहा है. मगर, आम आदमी पार्टी ने जनता को लगातार बताया है कि दिल्ली का स्वास्थ्य मॉडल किसी भी प्रदेश के मुकाबले बेहतर है. सिर्फ 5 लाख तक की कवर देने वाली आयुष्मान योजना के मुकाबले दिल्ली मे 1 करोड़ रुपये तक का इलाज आम लोगों को फ्री में हो जाता है. इसमें अस्पताल में भर्ती होने की कोई अनावश्यक शर्त भी नहीं है. बीजेपी हो या कांग्रेस उन्हें अभी चुनाव कैंपेन में आम आदमी पार्टी से पीछे रहकर ही लड़ाई लड़नी होगी क्योंकि आम आदमी पार्टी लीड ले चुकी है.
रंजन कुमार, वरिष्ठ पत्रकार
(Former Associate Editor, Zee Media)