MP-UP में डकैत जारी करते थे फरमान और बदल जाती थी चुनावी हवा, कहानी डकैतों के राजनीतिक दखल की

Lok Sabha Elections 2024: मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक दौर ऐसा भी था जब डकैतों के फरमान को मानकर वोटर चुनाव में मतदान करते थे. जिस पार्टी को चुनाव में डकैतों का समर्थन मिल जाता है वह जीत कर सरकार बना लेती थी. आज हम चुनावी किस्से में राजनीति में डकैतों के दखल की कहीना सुना रहे हैं.

Pankaj Soni

एक जमाना था जब मध्यप्रदेश के चंबल और यूपी के बीड़ में डकैत फरमान जारी कर लोगों को बताते थे कि इस चुनाव में वोट किस पार्टी को और किस नेता को देना. इसके लिए डकैत बकायदा फरमान जारी करते थे. डकैतों के इन्हीं फरमानों में एक फरमान... "मुहर लगेगी......में, नहीं गोली गलेगी छाती में और लाश मिलेगी घाटी में." यह नारा बड़ा चर्चित हुआ था. एक समय में इन इलाकों में डकैतों ने जिस नेता के सिर पर हाथ रख दिया वह चुनाव जीत जाता था.

ऐसा कहा जाता है, लेकिन आज बीहड़ और चंबल में न डकैतों के गैंग बचे हैं और न हीं फरमान जारी होते हैं. आज हम आपको चंबल और बीहड़ की राजनीति में डकैतों के दखल की कहानी सुना रहे हैं. 

चित्रकूट में रहा डकैत ददुआ का प्रभाव

चित्रकूट एक ऐसा जिला है जो मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश दो राज्यों में बंटा हुआ है. उत्तर प्रदेश में चित्रकूट एक जिला है और मध्यप्रदेश में एक विधानसभा सीट है, जो सतना जिले में आती है. मतबल कि चित्रकूट एमपी- यूपी का बॉर्डर है. यहां 1982 से साल 2007 तक के चुनावों डकैत ददुआ का प्रभाव देखने को मिलता था. ददुआ का यहां के 52 गावों में प्रभाव देखने के लिए मिलता था. शुरुआत में वह वामपंथियों का साथ देता था,लेकिन बाद में ददुआ ने अपने राजनीतिक गुरु के कहने पर बसपा को अपना समर्थन दिया, जिसके बाद बसपा की यूपी में सरकार भी बनी.

ददुआ ने भाई -बेटे को बनाया सांसद-विधायक

इसके बाद ददुआ ने बसपा से दूरी बना ली और 2004 में समाजवादी पार्टी के समर्थन में आ गया. इस चुनाव में ददुआ के दम पर सपा की क्षेत्र में राजनीति चमक गई. इतना ही नहीं ददुआ के भाई बाल कुमार पटेल, बेटा वीर सिंह पटेल और भतीजे राम सिंह पटेल सपा के टिकट पर सांसद-विधायक तक बने. 2007 में उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में बसपा की सरकार बन गई. अब क्या था मुख्यमंत्री की नजर में खटक रहे ददुआ के बुरे दिन शुरू हो गए. 22 जुलाई, 2007 को खबर आई का एसटीएफ ने मुठभेड़ में ददुआ को मौत के घाट उतार दिया.

चित्रकूट में इन डकैतों का रहा वर्चस्व

चित्रकूट में ददुआ के अलावा इनामी डकैत ठोकिया, रागिया, बलखड़िया, बबली कोल और गौरी यादव की खास प्रभाव था. इतना ही नहीं बांदा, फतेहपुर, सतना, रीवा, पन्ना और छतरपुर तक में इनका खासा प्रभाव रहता था.

फर्रुखाबाद, मैनपुरी और एटा के चुनावों में भी दखल

समाजवादी पार्टी के संयोजक मुलायम सिंह यादव के गढ़ मैनपुरी के डकैत छविराम यादव ने दो दशक तक बीहड़ में राज किया. इसका खौफ इतना था कि इटावा, मैनपुरी और कानपुर के अलावा तीन अन्य राज्यों के ग्रामीण खौफ खाते थे. 1970 से 1992 के बीच छविराम यादव का फर्रुखाबाद, मैनपुरी और एटा जैसे क्षेत्रों में दबदबा था. उसके एक फरमान से यहां राजनीतिक माहौल बदल जाता था. फर्रुखाबाद की मोहम्मदाबाद और एटा के अलीगंज क्षेत्र में यादवों का दखल था. छविराम यादव के मारे जाने के बाद पोथी यादव गैंग का मुखिया बना. कायमगंज विधानसभा क्षेत्र में गंगा की कटरी किंग के नाम से मशहूर डकैत कलुआ यादव का प्रभाव था.

चंबल भी नहीं रहा अछूता

उत्तर प्रदेश के अलावा मध्य प्रदेश का चंबल भी डकैतों से अछूता नहीं रहा. यहां के बीहड़ों में निर्भय गुर्जर, जगजीवन परिहार, राम आसरे फक्कड़, रामवीर सिंह गुर्जर, अरविंद गुर्जर, चंदन यादव, मंगली केवट, रघुवीर ढीमर जैसे बड़े डैकेतों के गिरोह समय-समय पर सक्रिय रहे. इन क्षेत्रों में चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवार खुद डकैतों से जाकर चुनाव में जीत के लिए मदद मांगते थे. उस जमाने में डकैतों ने जिस प्रत्याशी के पक्ष में फरमान जारी कर दिया वह चुनाव जीत जाता था. 

डकैतों का हुआ सफाया

अब 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए रणभेरी बज चुकी है और अब इन दोनों क्षेत्र डकैत विहीन हो चुके हैं. यहां कोई डकैतों का नाम लेने वाला नहीं है और जनता खुलकर मतदान में भाग लेती है. 

डकैत कैसे जारी करते थे फरमान

- बंदूकों पर पार्टी विशेष का झंडा लपेटकर गांव में भ्रमण करते थे, इससे लोगों को पता चल जाता था कि किस प्रत्याशी या उम्मीदवार को वोट देना है. 
- गांव के प्रभावशाली लोगों को मुखबिरों के जरिये संदेश भेजकर बता देते थे कि किसको वोट देना है. 
- टीलों पर खड़े होकर लाउडस्पीकर से फरमान जारी करते थे. 
- संबंधित पार्टी के पैम्फलेट और पोस्टर पर मुहर लगाकर गांव में भेजवा देते थे. 

चुनावों में डकैतों के क्या थे बोल?

'सेंट्रल यूपी और बुंदेलखंड से पचास विधायक बनवा सकता हूं : निर्भय गुर्जर

'वोट नहीं तो चोट के लिए हो जाओ तैयार : लालाराम श्रीराम

'रहना है तो फरमान मानो, नहीं तो छोड़ो घरबार : रामआसरे फक्कड़

'जो मेरे साथ नहीं, उसे भेजो ऊपर : चंदन यादव