SC-ST रिजर्वेशन में क्रीमी लेयर को मोदी सरकार की ना, आखिर क्या हैं इस फैसले के मायने?

मोदी सरकार ने साफ कर दिया है कि SC-ST के आरक्षण में क्रीमी लेयर के लिए कोई प्रावधान नहीं है. क्रीमी लेयर का मतलब अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के उन लोगों और परिवारों से है जो उच्च आय वर्ग में आते हैं. दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने कुछ दिनों पहले एससी और एसटी वर्ग के लिए आरक्षण में कोटा दिए जाने को मंजूरी दी थी. कोर्ट ने सब कैटगरी बनाने का सुझाव दिया था.

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से एक दिन पहले करीब 100 दलित सांसदों ने मुलाकात की थी. इस दौरान दलित सांसदों ने सुप्रीम कोर्ट की ओर से 1 अगस्त को दिए गए एक सुझाव पर चिंता जताई. दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने सुझाव दिया था कि अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति में भी क्रीमी लेयर लागू किया जा सकता है और केंद्र सरकार को इस पर विचार करना चाहिए. 9 अगस्त को जब पीएम मोदी से दलित सांसदों ने मुलाकात की तो उन्होंने आश्वासन दिया कि SC/ST के आरक्षण में क्रीमी लेयर लागू नहीं होगा. कुछ घंटे के बाद केंद्र सरकार की ओर से प्रेसवार्ता कर इसकी जानकारी भी दे दी गई. मोदी सरकार ने  अपने इस फैसले से दलित सांसदों के साथ-साथ इस वर्ग के वोटर्स को भी संदेश दे दिया कि भाजपा की मोदी सरकार दलितों के साथ खड़ी है.

दलित सांसदों की मुलाकात के कुछ घंटे बाद मोदी सरकार की कैबिनेट मीटिंग हुई. बैठक के बाद केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की, जिसमें उन्होंने कहा कि मोदी के नेतृत्व वाली NDA सरकार बीआर अंबेडकर के बनाए गए संविधान से बंधी है. उन्होंने कहा कि बाबा साहेब के बनाए गए संविधान में SC/ST के आरक्षण सिस्टम में मोदी सरकार कोई हस्तक्षेप नहीं करने वाली है.

आखिर मोदी सरकार के इस फैसले के क्या हैं मायने?

मोदी सरकार के इस फैसले को सियासी तौर पर बड़ी जीत माना जा रहा है. दरअसल, ये मुद्दा काफी संवेदनशील है और इस मुद्दे पर कई विपक्षी दल भी चुप ही रहना पसंद करते हैं. क्रीमी लेयर पर सुप्रीम कोर्ट की ओर से मिले सुझाव को दरकिनार करने और अपना स्टैंड क्लियर करने के मोदी सरकार के इस फैसले को विपक्ष पर बढ़त के रूप में देखा जा रहा है. कहा जा रहा है कि मोदी सरकार ने ये संदेश देने की कोशिश की है कि वो आरक्षण के मुद्दे पर दलितों, पिछड़ों के साथ मजबूती से खड़ी है.

मोदी सरकार ने इस फैसले से ये भी मैसेज देने की कोशिश की है कि बाबा साहेब के बनाए संविधान में दलितों के लिए जिन हितों का प्रावधान है, वो उसकी रक्षक है. मोदी सरकार ने ये फैसला ऐसे वक्त में लिया है, जब कुछ महीने पहले हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा को दलित और संविधान विरोधी बताया जा रहा था. कई विपक्षी पार्टियों ने मोदी सरकार पर संविधान से छेड़छाड़ करने का आरोप लगाया था. कहा जा रहा है कि इस फैसले को जरिए मोदी सरकार आने वाले विधानसभा चुनाव में राज्यों में जनता के बीच जाएगी.