हिमालय जिसे अक्सर 'एशिया का जल मीनार' कहा जाता है, एक बड़े बदलाव से गुजर रहा है. जैसे-जैसे धरती गर्म होती है, वैसे-वैसे हिंदू कुश-हिमालयन (HKH) पर्वतमाला की ऊंची चोटियां भी गर्म होती हैं. लगातार गर्म होती हिमालय की चोटी उन दो अरब लोगों के लिए विनाश का कारण बन सकती है जो इसकी बर्फ पर निर्भर हैं. इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट (ICIMOD) के हालिया डेटा ने जो तस्वीर पेश की है वह आपको परेशान कर सकती है.
गर्मी के प्रकोप के कारण 2024-25 में सर्दियों के दौरान HKH क्षेत्र में बर्फबारी 23 सालों में सबसे कम हुई है. वहीं बर्फ की स्थिरता (जिस समय तक बर्फ जमीन पर रहती है), सामान्य से 23.6 प्रतिशत कम थी. बर्ष की स्थिरता में गिरावट का यह लगातार तीसरा साल है, जो इस क्षेत्र के जल विज्ञान में एक खतरनाक बदलाव का संकेत देता है.
प्यासे मर जाएंगे लोग, कृषि पर गहरा संकट
हिमालय के ग्लेशियरों से एशिया की 12 प्रमुख नदियों को जल मिलता है, जिसमें गंगा, सिंधु, ब्रह्मपुत्र, मेकांग और अमु दरिया शामिल हैं. इन ग्लेशियरों से निकलने वाली बर्फ भारत, चीन, पाकिस्तान, नेपाल और बांग्लादेश जैसे देशों में कृषि, पीने और पन बिजली के लिए जरूरी पानी की आपूर्ति करती है. बर्फ कम होने से इन नदियों का पानी कम हो जाता है जिससे लाखों लोग प्रभावित होते हैं.
लगातार कम हो रही बर्फबारी
सर्दियों में बर्फबारी ना केवल अनियमित हो रही है बल्कि लगातार कम हो रही है, जिससे नदियों का प्रवाह कम होने की संभावना है. इसकी वजह से भूजल पर निर्फरता असीमित रूप से बढ़ सकती है और लाखों लोगों को सूखे का सामना करना पड़ सकता है. कुछ देशों ने पहले ही सूखे की चेतावनी जारी कर दी है जिसका कृषि क्षेत्र पर गहरा प्रभाव पडे़गा.
क्यों सिकुड़ रही है बर्फ
बर्फ के लगातार कम होने की वजह सीधे तौर पर जलवायु परिवर्तन है. हिमालय वैश्विक औसत से कहीं ज्यादा तेजी से गर्म हो रहा है. 2019 की ICIMOD रिपोर्ट ने चेतावनी दी है कि भले ही पेरिस समझौते के अनुसार वैश्विक तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस से कम रखने में हम कामयाब हो जाएं (जोकि फिलहाल असंभव दिख रहा है) लेकिन बावजूद इसक HKH क्षेत्र 0.3 डिग्री सेल्सियस गर्म होगा.
तत्काल कार्रवाई का आह्वान
पर्यावरणविदों और वैज्ञानिकों ने सरकार से नीति नियंताओं से बिना देरी के इस पर 'मिटिगेशन और एडप्टेशन' रणनीति अपनाकर एक्शन लेने की मांग की है. वैज्ञानिकों के अनुसार नीति निर्माताओं को बेहतर जल प्रबंधन, सूखे से बचाव वाली कषि और प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों को उन्नत करने में निवेश करने की जरूरत है.