एग्जिट पोल में कांग्रेस-NC आगे; क्या खेला करेगी बीजेपी? LG का होगा अहम रोल

Jammu Kashmir Elections: जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल को विधानसभा में पांच सदस्यों को नामित करने का अधिकार है. अगर ऐसा होता है तो विधानसभा में सदस्यों की संख्या बढ़कर 95 हो जाएगी. इसके बाद सरकार बनाने के लिए 45 की जगह 48 विधायकों का समर्थन जरूरी होगा.

Social Media
Gyanendra Sharma

जम्मू-कश्मीर में 2014 के बाद विधानसभा चुनाव हुए. आठ अक्टूबर को चुनाव के नतीजों की घोषणा होगी. इसके बाद ये साफ हो जाएगा कि किसकी सरकार बनने जा रही है. हालांकि एग्जिट पोल में कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस गठबंधन सरकार बनने के संकेत मिले रहे हैं, लेकिन लड़ाई कांटे की दिख रही है. कोई भी पार्टी बहुमत पाती नहीं दिख रही है ऐसे में उपराज्यपाल मनोज सिन्हा का रोल अहम होने वाला है. 

जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल को विधानसभा में पांच सदस्यों को नामित करने का अधिकार है. अगर ऐसा होता है तो विधानसभा में सदस्यों की संख्या बढ़कर 95 हो जाएगी. इसके बाद सरकार बनाने के लिए 45 की जगह 48 विधायकों का समर्थन जरूरी होगा. जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम-2019 में संशोधन कर विधानसभा में सदस्यों को नामित करने का प्रावधान किया गया है. अगर उपराज्यपाल को लगता है कि विधानसभा में महिलाओं की भागीदारी कम है तो वो दो सदस्यों को नामित कर सकते हैं. 2023 में इसमें संशोधन कर दिया गया. इस संशोधन के बाद नई व्यवस्था में तीन नए सदस्यों को नामित करने का प्रावधान किया गया है. 

सराकर के गठन में मनोनीत विधानसभा सदस्यों की भूमिका अहम

अब उपराज्यपाल दो कश्मीरी प्रवासियों और पीओके से विस्थापित एक सदस्य को नामित कर सकते हैं. दो कश्मीरी प्रवासियों में से एक महिला होगी. उपराज्यपाल मनोज सिन्हा इस बार पांच विधायकों को नामित कर सकते हैं. ऐसे में कश्मीर में नई सराकर के गठन में मनोनीत विधानसभा सदस्यों की भूमिका अहम हो जाएगी. एग्जिट पोल में किसी दल को पूर्ण बहुमत मिलता नहीं दिख रहा है. उम्मीद जताई जा रही है कि जम्मू-कश्मीर में 8 अक्तूबर को मतगणना पूरी होने के बाद ही विधायकों का मनोनयन हो जाएगा.

अधिकांश एग्जिट पोल में जम्मू-कश्मीर में त्रिशंकु विधानसभा की भविष्यवाणी की गई है, पर्यवेक्षकों का मानना ​​है कि जम्मू संभाग, विशेष रूप से हिंदू बहुल जिले, केंद्र शासित प्रदेश (यूटी) के सत्ता के गलियारों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे. कश्मीर संभाग में मुकाबला मुख्य रूप से नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) के बीच है, जबकि जम्मू संभाग में कांग्रेस और बीजेपी मुख्य दावेदार हैं.

जम्मू में बीजेपी को मिलेगी बढ़त

बीजेपी ने जम्मू प्रांत की सभी 47 सीटों पर चुनाव लड़ा और उसे पहाड़ी जातीय समूह और पदारी जनजाति के वोटों पर भरोसा है, जिन्हें इस वर्ष की शुरुआत में अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा दिया गया था. केंद्र शासित प्रदेश (यूटी) में एसटी के लिए आरक्षित नौ सीटों में से छह जम्मू प्रांत में आती हैं, जिनमें से पांच राजौरी-पुंछ जिलों में आती हैं जबकि एक रियासी में है. यहां पहाड़ी मतदाता बहुसंख्यक हैं. यह पहली बार है कि जम्मू-कश्मीर में विधानसभा सीटें एसटी के लिए आरक्षित की गई हैं. जम्मू, सांबा, कठुआ और उधमपुर जैसे हिंदू बहुल जिलों में 24 विधानसभा सीटें हैं, जो सरकार गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं.

कांग्रेस-एनसी गठबंधन

कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस ने जम्मू में 30 और 17 सीटों पर चुनाव लड़ा और चार सीटों पर ‘दोस्ताना मुकाबला’ रहा.  पूर्व केंद्रीय मंत्री गुलाम नबी आज़ाद के नेतृत्व वाली डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आज़ाद पार्टी (डीपीएपी) ने आधा दर्जन सीटों पर चुनाव लड़ा और उसे उम्मीद है कि डोडा ईस्ट से उसके उम्मीदवार अच्छा करेंगे.