'मेरे चेहरे पर अंडा है', यूक्रेन युद्ध पर भारत के रुख का विरोध करने पर क्या बोले शशि थरूर!

कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने अपने बयान में 2022 की अपनी आलोचना को लेकर पश्चाताप जताया और कहा कि अब भारत एक ऐसी स्थिति में है, जहां वह शांति की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है. उनका यह बयान भारत के विदेश नीति की सफलता को दर्शाता है, जो रूस और यूक्रेन दोनों के साथ अच्छे संबंध बनाए हुए है.

X@ShashiTharoor

कांग्रेस के सांसद शशि थरूर ने मंगलवार (18 मार्च) को कहा कि जब रूस-यूक्रेन युद्ध 2022 में शुरू हुआ, तब भारत के रुख के खिलाफ उनकी आलोचना करने के बाद वह "अंडा मुंह पर लेकर रह गए थे." थरूर ने यह भी कहा कि जो नीति भारत ने अपनाई थी, उसके कारण अब भारत शांति स्थापित करने में एक अहम भूमिका निभाने की स्थिति में है. शशि थरूर ने 2022 में भारत के रुख की आलोचना करते हुए रूस के आक्रमण की निंदा करने की जरूरत बताई थी.

पीटीआई की रिपोर्ट के मुताबिक, शशि थरूर ने कहा था, "भारत ने यूक्रेन-रूस संकट पर अपना रुख तय करने में काफी कठिन समय बिताया. इसमें कोई संदेह नहीं है कि भारत की पहली टिप्पणी में यह स्पष्ट था कि वह रूस को नाराज नहीं करना चाहता था." उन्होंने यह भी कहा, "मैं अभी भी अपने चेहरे पर अंडा साफ कर रहा हूं क्योंकि मैं वह व्यक्ति था जिसने संसद में भारत के रुख की आलोचना की थी, जो फरवरी 2022 में था. थरूर ने बताया कि उनकी आलोचना यूएन चार्टर, सीमा की अतिक्रमण की अवमानना और यूक्रेन की संप्रभुता के उल्लंघन जैसे मुद्दों पर आधारित थी.

भारत की नीति ने किया शांति की दिशा में महत्वपूर्ण बदलाव- थरूर

कांग्रेस सांसद थरूर ने कहा, "तीन साल बाद, ऐसा लगता है कि मुझे ही अंडा मुंह पर लगा है, क्योंकि स्पष्ट रूप से भारत की नीति ने यह सुनिश्चित किया है कि अब हमारे पास एक ऐसा प्रधानमंत्री है जो दो हफ्ते के अंतराल में यूक्रेन और रूस दोनों के राष्ट्रपति को गले लगा सकता है और दोनों ही स्थानों पर उन्हें स्वीकार किया जाता है.

उन्होंने यह भी कहा कि भारत अब शांति स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है और इसके पास इसके लिए कई कारण हैं, जिनमें यूरोप से उसकी दूरी भी शामिल है. थरूर ने कहा, "इसलिए, भारत ऐसी शांति के लिए योगदान देने की स्थिति में है, जो बहुत कम देश कर सकते हैं.

शांति-सेना भेजने पर शशि थरूर का बयान

थरूर ने यह भी कहा कि अगर रूस और यूक्रेन के बीच शांति समझौता होता है और शांति-सेना की आवश्यकता होती है, तो भारत इस पर विचार कर सकता है, हालांकि उन्होंने स्पष्ट किया कि वह सरकार की ओर से नहीं बोल रहे हैं क्योंकि वह विपक्ष में हैं.

उन्होंने 2003 में इराक में शांति-सेना भेजने के प्रस्ताव का उदाहरण दिया, जब संसद ने इसे स्वीकार नहीं किया था, लेकिन उन्होंने कहा, "मुझे नहीं लगता कि यूक्रेन के मामले में ऐसा कुछ होगा. यदि शांति समझौता हुआ और आवश्यक हुआ, तो मुझे लगता है कि भारत इस पर विचार करने के लिए तैयार होगा.